राज्य सभा ने दी तेलंगाना को मंजूरी
२० फ़रवरी २०१४तेलंगाना मुद्दे पर राजनीतिक विरोधों के बावजूद राज्य सभा ने तेलंगाना राज्य के गठन के विधेयक को पारित कर दिया. विधेयक पर वोटिंग के कुछ देर पहले तक बिल का विरोध कर रहे सांसदों ने "नहीं नहीं" के नारे लगाए और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी बात कहने का मौका भी नहीं दिया. लेकिन कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर बीजेपी सांसद विधेयक को पारित करवाने में सफल रहे. मंगलवार को लोक सभा में तेलंगाना के गठन को मंजूरी मिली और विधेयक पर बुधवार को ही राज्य सभा में वोटिंग होनी थी लेकिन संसद में हंगामे और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी के पद और कांग्रेस से इस्तीफे के बाद मामले को गुरुवार को लिए टाल दिया गया.
बिल पारित होने से पहले गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि इसके जरिए तेलंगाना इलाके में रह रहे लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि विधेयक में सारे भागीदारों की जरूरतों पर ध्यान दिया गया है. शिंदे ने कहा, "आप को याद होगा कि यह इलाका, जो आंध्र प्रदेश राज्य में है, उसकी एक अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान है. तेलंगाना और आंध्र के बाकी इलाकों में भी अलग राज्य के गठन के लिए आंदोलन हुए हैं जो 1960 और 1970 के दशक में चरम पर थे. बहस और समझौते के जरिए इन आंदोलनों को शांत किया गया."
तेलंगाना के समर्थकों का कहना है कि वह 50 से ज्यादा सालों से अपने राज्य के लिए लड़ रहे हैं. आंध्र प्रदेश की सरकारों ने उनकी जरूरतों की अनदेखी की है. हैदराबाद में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और डेल जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की भारतीय शाखाओं के मुख्यालय हैं. तेलंगाना के बनने के बाद अगले 10 सालों तक हैदराबाद सीमांध्र और तेलंगाना की राजधानी रहेगा. माना जा रहा है कि आंध्र प्रदेश के बंट जाने से राज्य की अर्थव्यवस्था को धक्का लगेगा. सीमांध्र इलाके में भी हिंसा होने की आशंका है.
एमजी/एमजे(एपी, पीटीआई)