245 सदस्यों की राज्य सभा में बीजेपी के पास 92 सीटें आ गई हैं, हालांकि बहुमत के लिए उसे अभी भी 31 सीटें और चाहिए. राज्य सभा में बहुमत हासिल करने के बाद बीजेपी के लिए दोनों सदनों में बिल पास कराना आसान हो जाएगा.
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सोमवार दो नवंबर को राज्य सभा की 11 सीटों के लिए चुनाव हुए थे, जिनमें से बीजेपी ने नौ सीटें जीत लीं. इनमें से आठ सीटें उत्तर प्रदेश में हैं और एक उत्तराखंड में. इस जीत के साथ ऊपरी सदन में बीजेपी के पास कुल 92 सीटें हो गई हैं. जेडीयू और आरपीआई जैसे घटक दलों के सदस्यों को मिला कर सत्तारूढ़ गठबंधन की 98 सीटें हैं.
ये पहली बार है जब बीजेपी और एनडीए राज्य सभा में बहुमत के इतने करीब पहुंच गए हैं. लोक सभा में पहले से ही सरकार के पास बहुमत है, जिसकी वजह से वह अपना कोई भी विधाई कार्य लोक सभा से आसानी से पास करा लेती है. बस राज्य सभा में सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं क्योंकि वहां अभी भी विपक्ष का संख्या बल ज्यादा है और वो सरकार के एजेंडा को रोकने में सक्षम है.
लेकिन बीजेपी धीरे धीरे राज्य सभा में भी अपनी संख्या बढ़ाती जा रही है और विपक्ष की सीटें घटती जा रही हैं. चुनिंदा मुद्दों पर एनडीए का सहयोग करने वाली एआईएडीएमके और एजीपी, एमएनएफ, एनपीपी, एनपीएफ, पीएमके और बीपीएफ जैसी कुछ छोटी पार्टियों को भी अगर मिला लें तो एनडीए का संख्याबल 110 के आस पास पहुंच जाता है.
सरकार को कई और पार्टियों का समर्थन
इनके अलावा बीजेडी, टीआरएस और वाईएसआरसीपी पार्टियां भी चुनिंदा मुद्दों पर बीजेपी को समर्थन देती हैं, जिससे सरकार को 22 और वोट मिल जाते हैं. सदन में बहुमत के लिए 123 सीटें चाहिए होती हैं. कांग्रेस राज्य सभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन इतिहास में पहली बार उसकी सीटें 40 से भी नीचे जाने वाली हैं.
25 नवंबर को एक साथ 11 सदस्यों का कार्यकाल खत्म होगा, जिनमें से दो सांसद कांग्रेस के हैं. इनके सदन से चले जाने के बाद कांग्रेस की संख्या 38 हो जाएगी. सोमवार को इन्हीं सीटों के लिए चुनाव हुए थे. राज्य सभा को राज्यों की परिषद कहा जाता है और यहां आने वाले सदस्यों को सीधे जनता की जगह राज्यों के विधायक और पार्षद चुनते हैं.
सीटों का बंटवारा राज्यों की आबादी के अनुसार किया हुआ है, लेकिन बंटवारे का फार्मूला ऐसा है जिससे छोटे राज्यों को नुकसान ना हो, बल्कि वो आगे ही रहें. जैसे तमिलनाडु की आबादी बिहार से कम है लेकिन राज्य सभा में बिहार के मुकाबले तमिलनाडु की सीटें ज्यादा हैं.
राज्य सभा में तीन घंटों में सात विधेयकों का पास हो जाना अपने आप में एक नई घटना है. यह तब संभव हुआ जब विपक्ष ने उसकी बात ना सुने जाने के विरोध में सदन का बहिष्कार कर दिया. जानिए क्या है इन विधेयकों में.
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बहिष्कार
मानसून सत्र 2020 के दौरान राज्य सभा से विपक्ष के आठ सांसदों के निलंबन के बाद, अधिकतर विपक्षी दलों ने सदन का बहिष्कार कर दिया. लेकिन इसके बावजूद सदन की कार्रवाई चलती रही और साढ़े तीन घंटों में ही एक के बाद एक सात विधेयक पारित हो गए.
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आईआईटीयों पर विधेयक
इनमें सबसे पहले पास हुआ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान विधियां (संशोधन) विधेयक, 2020. इसके तहत पांच नए आईआईटीयों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित किया जाना है. इसके अलावा बाकी छह विधेयक भी लोक सभा से पहले ही पारित हो चुके थे.
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आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक
यह उन कृषि संबंधी विधेयकों में से एक है जिनका किसान और विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को निकालना और उन पर भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना है.
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बैंककारी विनियमन (संशोधन) विधेयक
इस बिल का उद्देश्य सहकारी बैंकों को आरबीआई की देखरेख में लाना है. 2019 में पीएमसी सहकारी बैंक में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया था, जिससे आम खाताधारकों की जमापूंजी के डूब जाने का खतरा पैदा हो गया था.
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कंपनी (संशोधन) विधेयक
कंपनी अधिनियम, 2013 का और संशोधन करने वाले इस विधेयक का उद्देश्य है पुराने कानून के तहत कुछ नियमों के उल्लंघन के लिए सजा को कम करना. विपक्ष की आपत्ति थी कि सजा कम करने से कंपनी मालिकों को लगेगा की वे वित्तीय अनियमितताओं के दोषी पाए जाने पर भी बच जाएंगे.
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राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य गुजरात स्थित गुजरात न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय बनाना और उसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देना है.
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राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य है गुजरात में ही स्थित रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय बनाना और उसे भी राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देना.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/J. Yuchen
कराधान संबंधी विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य कराधान यानी टैक्सेशन संबंधी नियमों में कुछ संशोधन करना था, जिससे कंपनियों को कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुए नुक्सान को देखते हुए कर संबंधी नियमों के पालन और भुगतान आदि के लिए अतिरिक्त समय दिया जा सके. यह एक धन विधेयक यानी 'मनी बिल' था, इसलिए इसे लोक सभा वापस लौटा दिया गया.
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पहले भी हुआ
शोरगुल के बीच बिलों को पास कराने का काम पहले भी हुआ है. 2008 में लोक सभा में शोरगुल के बीच 17 मिनटों में आठ विधेयक पास करा लिए गए थे.