रातों रात 15 लाख घटी जर्मन आबादी
८ जून २०१३दरअसल एकीकरण के बाद पहली बार जर्मनी में जनगणना हुई है. दो साल बाद जब सेनसस 2011 के नतीजे सामने आए तो पता चला कि जर्मनी की आबादी असल में 8 करोड़ 17 लाख नहीं, बल्कि 8 करोड़ 2 लाख ही है. इस जनगणना में 70 करोड़ यूरो का खर्च आया है. एकीकरण के बाद जर्मनी में पहली बार ऐसा हुआ कि लोगों से फॉर्म भरवा कर उनकी सारी जानकारी जमा की गयी. इसमें उनकी उम्र, पते के साथ साथ स्कूल पास करने की तारीख, पेशा, पति पत्नी और माता पिता की जानकारी और प्रवास की जानकारी भी शामिल है.
अब तक जो आंकड़े मौजूद थे वे पश्चिमी जर्मनी के 1987 और पूर्वी जर्मनी (जीडीआर) के 1981 की जनगणना पर आधारित थे. उसके बाद से जैसे जैसे नए जन्म और मौत रजिस्टर होती रहीं, सूची को अपडेट किया जाता गया.
गायब हुए विदेशी
जर्मनी के कोबलेंस में स्टेटिस्टिक्स के प्रोफेसर गेर्ड बोजबाख ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "दो जनगणनाओं के बीच आंकड़ों में हमेशा गड़बड़ी हो जाती है और वे जनसंख्या को हमेशा ज्यादा ही आंकते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि कई लोग (एक जगह से दूसरी जगह जाने के बाद) खुद को नई जगह पर रजिस्टर तो करवा लेते हैं, पर पुरानी जगह से अपना नाम हटवाना भूल जाते हैं". यानी कई लोगों की गिनती दो या उस से भी अधिक बार हो जाती है.
सबसे बड़ा फर्क देखने को मिला है जर्मनी में रह रहे अप्रवासियों की तादाद में. पुराने आंकड़ों के अनुसार देश में 73 लाख विदेशी रहते हैं, लेकिन नए आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 62 लाख है. इसकी भी वजह यही है कि लोग देश छोड़ते वक्त अधिकारियों को सूचित नहीं करते.
बर्लिन को झटका
जर्मनी के अलग अलग राज्यों की बात की जाए, तो सबसे बड़ा झटका बर्लिन को लगा है. दिल्ली की ही तरह बर्लिन देश की राजधानी भी है और सबसे अहम राज्य भी. 35 लाख की आबादी के साथ बर्लिन को यूरोप के तेज रफ्तार वाले शहरों में गिना जाता है. माना जा रहा था कि जिस तेजी से बर्लिन प्रगति कर रहा है, जल्द ही वहां की आबादी 40 लाख को पार कर जाएगी. लेकिन असल में यह पहले से भी कम हो गयी है. जनगणना से पता चला है कि बर्लिन में 1.8 लाख लोग कम रहते हैं, यानी वहां की आबादी अभी करीब 33 लाख ही है. इसी तरह आखेन की आबादी 8.5 फीसदी कम हुई है और मानहाइम की 7.5.
अर्थव्यवस्था पर असर
जनसंख्या के कम होने का असर केवल स्कूली किताबों पर ही नहीं पड़ेगा. न्यूरेमबर्ग के प्रोफेसर हेरबर्ट ब्रुएकर ने इस बारे में डॉयचे वेले को बताया, "इसका मतलब यह हुआ कि जितना हम आंक रहे थे, जनसंख्या उस से भी ज्यादा तेजी से सिकुड़ रही है. इसका असर सबसे बढ़ कर तो देश के सोशल सिक्यूरिटी सिस्टम पर पड़ेगा". उनका कहना है कि जर्मनी को अब और विदेशी कुशल कामगारों को बुलाने पर काम करना होगा, "ना केवल जर्मनी की अर्थव्यवस्था को, बल्कि यहां के लोगों को भी इसकी जरूरत है. आखिर किसी को तो लोगों की पेंशन भी भरनी है, और उसके लिए हमें और कामगार चाहिए".
भारत में हर दस साल पर जनगणना होती है, पर जर्मनी में ऐसा नहीं. दरअसल यहां के इतिहास को देखा जाए तो इस बात का डर खड़ा हो जाता है कि नागरिकों की जानकारी का गलत उपयोग हो सकता है. इसी को देखते हुए सरकार सेनसस करवाने से बचती रही. लेकिन नए आंकड़े शायद चांसलर मैर्केल को जल्द होने वाले चुनावों के लिए एजेंडे की तैयारी करने में मदद कर सकें.
रिपोर्ट: मार्कुस लुएटिके/ ईशा भाटिया
संपादन: एन रंजन