भारत को राफाल लड़ाकू विमान बेचने वाली फ्रांस की कंपनी दास्सो के खिलाफ समझौते की सभी शर्तों को अभी तक पूरा नहीं करने पर सवाल उठ रहे हैं. दास्सो द्वारा ऑफसेट की शर्तें पूरी ना करने की बात सीएजी ने एक ताजा बयान में कही है.
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सीएजी का बयान सरकार की ऑफसेट नीति के बारे में था, जिसमें दास्सो का उदाहरण देते हुए कहा गया कि ऑफसेट नीति की कमजोरी की वजह से अक्सर विदेशी विक्रेता शुरू में तो कई वादे कर देते हैं, लेकिन बाद में उन वादों को पूरा नहीं करते. सीएजी के अनुसार, "36 मध्यम बहु भूमिका वाले लड़ाकू विमान खरीदने के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट में विक्रेता दास्सो एविएशन और एमबीडीए से सितंबर 2015 में ही प्रस्ताव दिया था कि वो 30 प्रतिशत ऑफसेट की शर्तों को डीआरडीओ को उच्च तकनीक दे कर पूरा करेंगे."
बयान में आगे कहा गया, "डीआरडीओ चाहती थी हल्के लड़ाकू विमान के लिए कावेरी नामक इंजन को भारत में ही बनाने के लिए तकनीकी सहायता मिल जाती. विक्रेता ने आज तक इस तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की है." ये बयान सीएजी ने संसद में उसकी कई रिपोर्टें प्रस्तुत किए जाने के बाद दिया. बयान में उस 50 प्रतिशत ऑफसेट शर्त का कोई जिक्र नहीं है जिसे लेकर विपक्ष ने राफाल समझौते में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे.
बयान में सीएजी ने आगे कहा है कि 2005 से मार्च 2018 तक विदेशी विक्रेताओं से 66,427 करोड़ रुपयों के 46 ऑफसेट कॉन्ट्रैक्टों पर हस्ताक्षर किए गए थे. इनके तहत दिसंबर 2018 तक विक्रेताओं को 19,223 करोड़ रुपयों के मूल्य के ऑफसेट उपलब्ध कराने थे, लेकिन उपलब्ध हुए सिर्फ 11,396 करोड़ रुपयों के मूल्य के ऑफसेट. यह वादा की हुई राशि का सिर्फ लगभग 59 प्रतिशत के बराबर है. इनमें से भी सिर्फ 48 प्रतिशत, यानी 5457 करोड़ रुपयों के मूल्य के, दावों को रक्षा मंत्रालय ने स्वीकार किया.
भारत ने यह ऑफसेट नीति 2005 में लागू की थी, जिसके तहत आयात के जरिए हर 300 करोड़ रुपयों से ज्यादा की खरीद पर विदेशी विक्रेता खरीद के मूल्य का 30 प्रतिशत भारत के रक्षा क्षेत्र या ऐरोस्पेस में लगाएगा. यह शर्त कई तरीकों से पूरी की जा सकती है, जिनमें से तकनीक का हस्तांतरण भी एक रास्ता है. लेकिन सीएजी के अनुसार भारत को तकनीक के हस्तांतरण में विफलता ही हाथ लगी है.
सीएजी के मुताबिक, "विक्रेताओं द्वारा निवेश का 90 प्रतिशत भारतीय कंपनियों से सीधे खरीद में किया गया है...बल्कि एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें विदेशी विक्रेता ने भारतीय कंपनी को उच्च तकनीक दी हो." सीएजी इस निष्कर्ष पर भी पहुंचा है कि यह नीति की ही गड़बड़ है क्योंकि इसे लागू करने के एक दशक बाद इसके लक्ष्यों को अभी भी पाया नहीं जा सका है.
यह भारत के रक्षा इतिहास का यह सबसे बड़ा सौदा था लेकिन आठ साल तक अटका रहा. आखिर क्या खासियत है राफाल में जो इस पर इतनी मशक्कत हुई.
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फ्रांस में राजनाथ सिंह
भारत ने 2012 में फ्रांस से 126 राफाल लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया. लेकिन सौदा तकनीकी मामलों में उलझकर फंस गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दखल के बाद मामला आगे बढ़ा. अक्टूबर 2019 में राजनाथ सिंह पहली डिलीवरी के लिए फ्रांस पहुंचे.
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ऊंचे इलाकों का मशीनी परिंदा
सैन्य क्षमता के मामले में भारत अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से बहुत आगे है. लेकिन नई दिल्ली का चीन के साथ भी सीमा विवाद है. भारत और चीन के बीच हिमालय का ऊंचा इलाका है. राफाल ऊंचे इलाकों में लड़ने में माहिर है.
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राफाल की क्षमता
किसी चपल बाज की तरह राफाल एक मिनट में 60,000 फुट की ऊंचाई तक जा सकता है. हालांकि यूरोफाइटर टायफून इस मामले में राफाल से आगे है, लेकिन टायफून राफाल से महंगा भी है.
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रफ्तार और बारीकी
भारतीय वायुसेना ने लंबे टेस्ट के बाद वित्तीय कारणों से राफाल को चुना. उड़ान भरते वक्त राफाल की उच्चतम रफ्तार 2130 किलोमीटर प्रति घंटा है. वायुसेना के मुताबिक हवा से जमीन में मार करने में राफाल टायफून से ज्यादा कारगर दिखा.
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राफाल बनाम टायफून
राफाल जहां हवा से जमीन पर मार करने में अचूक है. वहीं जबरदस्त रडार वाला यूरोफाइटर टायफून हवा से हवा में मार करने के मामले में अब तक सबसे उन्नत विमान है. एविशन क्षेत्र के जानकार दोनों विमान में 19-20 का ही फर्क करते हैं.
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भरोसेमंद राफाल
जर्मनी और ब्रिटेन ने लगातार यूरोफाइटर को बेचने की कोशिशें जारी रखी हैं. घातक दांव पेंचों के मामले में नए टायफून का कोई तोड़ नहीं है. लेकिन राफाल जांचा परखा और विश्वसनीय लड़ाकू विमान है.
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फ्रांस पर भरोसा
राफाल सौदे का आधार भारत और फ्रांस की दोस्ती भी है. 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर पश्चिमी देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए. लेकिन यूरोपीय संघ और अमेरिका के निकटता के बावजूद फ्रांस ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध नहीं लगाए.
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मिराज अपग्रेड
भारतीय वायुसेना राफाल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासो के मिराज 2000 विमान पहले से इस्तेमाल कर रही है. कारगिल युद्ध में मिराज विमानों की काफी तारीफ हुई. बाद में दासो ने मिराज को अपग्रेड करने में भी आनाकानी नहीं की.
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परमाणु प्रतिरक्षा में सक्षम
राफाल हथियारों के एक अत्याधुनिक पैकेज के साथ आता है जिसमें मेटोर मिसाइलें भी शामिल हैं. इन्हें दुनिया की सबसे आधुनिक मिसाइलों में गिना जाता है. ये विमान वायु रक्षा, इंटरसेप्शन, ग्राउंड सपोर्ट, अंदर जाकर हमले, पैमाइश, एंटी-शिप स्ट्राइक और परमाणु प्रतिरक्षा में सक्षम है.
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किससे जीता राफाल
अमेरिका भारत को एफ-16 और एफ-18, रूस मिग-35, जर्मनी और ब्रिटेन यूरोफाइटर टायफून और स्वीडन ग्रिपन विमान बेचना चाह रहे थे. लेकिन बाजी राफाल ने मारी.
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10 अरब डॉलर का सौदा
राफाल एक ट्विन-जेट एयरक्राफ्ट होता है जो हर तरह के लड़ाकू अभियान को अंजाम दे सकता है. भारत को ये लड़ाकू विमान देने की प्रक्रिया के पूरा होने में लगभग साढ़े पांच साल लगेंगे. 2012 में दासो ने भारत से 126 लड़ाकू विमानों का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था और ये सौदा लगभग 10 अरब डॉलर का था.
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36 पर सहमति
बीते बीस साल में भारत का यह सबसे बड़ा लड़ाकू विमान खरीद सौदा है. इसके पहले भारत ने 1996 में रूस के साथ सुखोई विमानों के लिए बड़ी डील की थी. लेकिन फिर कीमत और विमानों की एसेंबलिंग को लेकर विवाद हो गया और दोनों पक्ष राफाल जेट्स की संख्या घटाकर 36 करने पर सहमत हुए.