अयोध्या में पिछले दिनों हुई धर्म सभा में बड़ी संख्या में नौजवान मौजूद थे और आरएसएस नेता बार-बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि देश का नौजवान मंदिर के लिए ‘कुछ भी कर सकता है.’
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इन नेताओं की इस बात में जोर दो बातों पर था- एक तो ये कि बड़ी संख्या में नौजवान आरएसएस के इस अभियान के समर्थन में आए हैं और दूसरा ये कि इसके लिए वो अपना सब कुछ छोड़ सकते हैं. धर्म सभा में नौजवान बड़ी संख्या में आए थे, इसमें कोई दो राय नहीं और समूह में चल रहे नौजवानों का जोश उनसे कुछ भी कराने का संकेत न दे रहा हो, ऐसा संभव नहीं.
लेकिन, सबसे ज्यादा हैरान करने वाली मौजूदगी कुछ ऐसे नौजवानों की रही जो कि अच्छे करियर और अच्छे भविष्य की गारंटी छोड़कर भी मंदिर निर्माण में अपना योगदान देने के लिए लालायित दिख रहे थे.
बस्ती के रमेंद्र प्रताप सिंह अपने करीब सौ साथियों के साथ मोटरसाइकिल से अयोध्या आए थे. मोटरसाइकिल उन लोगों ने अयोध्या से लगभग दस किलोमीटर दूर अपने किसी जानने वाले के घर पर खड़ी कर दी थी और फिर वहां से पैदल ही रविवार की सुबह चल पड़े थे.
अयोध्या: कब क्या हुआ
भारतीय राजननीति में अयोध्या एक ऐसा सुलगता हुआ मुद्दा रहा है जिसकी आग ने समाज को कई बार झुलसाया है. जानिए, कहां से कहां तक कैसे पहुंचा यह मुद्दा...
तस्वीर: dpa - Bildarchiv
1528
कुछ हिंदू नेताओं का दावा है कि इसी साल मुगल शासक बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी.
तस्वीर: DW/S. Waheed
1853
इस जगह पर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई.
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1859
ब्रिटिश सरकार ने एक दीवार बनाकर हिंदू और मुसलमानों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया.
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1949
मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी गई. आरोप है कि ऐसा हिंदुओं ने किया. मुसलमानों ने विरोध किया और मुकदमे दाखिल हो गए. सरकार ने ताले लगा दिए.
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1984
विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया जिसे रामलला का मंदिर बनाने का जिम्मा सौंपा गया.
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1986
जिला उपायुक्त ने ताला खोलकर वहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
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1989
विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद से साथ लगती जमीन पर मंदिर की नींव रख दी.
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1992
वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी नेताओं की अगुआई में सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई की और उसे गिरा दिया.
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जनवरी 2002
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया. शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
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मार्च 2002
गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को जलाकर मारे जाने के बाद भड़के दंगों में हजारों लोग मारे गए.
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अगस्त 2003
पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं.
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जुलाई 2005
विवादित स्थल के पास आतंकवादी हमला हुआ. जीप से एक बम धमाका किया गया. सुरक्षाबलों ने पांच लोगों को गोलीबारी में मार डाला.
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2009
जस्टिस लिब्रहान कमिश्न ने 17 साल की जांच के बाद बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया.
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सितंबर 2010
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्थल को हिंदू और मुसलमानों में बांट दिया जाए. मुसलमानों को एक तिहाई हिस्सा दिया जाए. एक तिहाई हिस्सा हिंदुओं को मिले. और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. मुख्य विवादित हिस्सा हिंदुओं को दे दिया जाए.
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मई 2011
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित किया.
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मार्च 2017
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को यह विवाद आपस में सुलझाना चाहिए.
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मार्च, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पांचू और जस्टिस खलीफुल्लाह इस समिति के सदस्य थे. जून में इस समिति ने रिपोर्ट दी और ये मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझ सका. अगस्त, 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज इस मामले की सुनवाई शुरू की.
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नवंबर, 2019
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया कि विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनेगा जबकि अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुहैया कराएगी.
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अगस्त, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
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गले में केसरिया रंग का रामनामी दुपट्टा डाले और हाथ में भगवा झंडा लिए इन युवकों ने धर्म सभा में संतों और अन्य वक्ताओं का भी जमकर जोश बढ़ाया. रमेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उनका मुंबई में ट्रांसपोर्ट का पुश्तैनी व्यवसाय है और उनके साथ आए हुए सभी लड़के या तो अभी पढ़ाई कर रहे हैं या फिर कोई कारोबार. रमेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, "मंदिर बनाने के लिए मुझे अपना व्यवसाय भी छोड़ देना पड़े तो मुझे गम नहीं होगा.”
रमेंद्र के साथ ही उनके पड़ोसी दिनेश सिंह कहते हैं कि वो एक सरकारी कॉलेज से बीफार्मा की पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन पिछले एक हफ्ते से अपने गांव के आस-पास के लोगों को धर्म सभा में चलने के लिए प्रेरित कर रहे थे. दिनेश के मुताबिक गांव से ज्यादा लोग तो नहीं आए, फिर भी हम जब घर से चले तो लगभग चालीस मोटरसाइकिलों में सौ के आस-पास युवक इकट्ठा हो गए थे.
इन मंदिरों पर चले अदालती आदेश
भारत में धार्मिक स्थल और इससे जुड़ी मान्यताओं को लोगों की आस्था के साथ जो़ड़ कर देखा जाता है. लेकिन देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जो किसी न किसी कारण अदालती मामलों में उलझे तो किसी पर अदालत ने कोई आदेश दिया.
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राम जन्मभूमि
एक लंबे अरसे से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर 2019 को आदेश दिया था कि विवादित स्थल पर राम मंदिर ही बनेगा और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए कहीं ओर पांच एकड़ भूमि दी जाएगी. अदालत ने यह भी कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद का गिराया जाना गैर कानूनी था.
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केरल का सबरीमाला मंदिर
केरल के सबरीमाला मंदिर का मामला प्रवेश मान्यताओं से जुड़ा था. यहां 10-50 साल की उम्र वाली महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मामला लंबे समय से उच्चतम न्यायालय में है, जिसे हाल में उच्चतम न्यायलय ने संवैधानिक बेंच को भेजा है.
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हाजी अली दरगाह, मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में स्थित हाजी अली दरगाह का मसला भी बंबई उच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है. दरगाह में पहले महिलाओं का प्रवेश वर्जित था लेकिन न्यायालय ने अगस्त 2016 में इस प्रतिबंध को महिलाओं के मौलिक अधिकारों के खिलाफ मानते हुए राज्य को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया. साथ ही हाजी अली ट्रस्ट को भी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के आदेश दिये.
तस्वीर: picture alliance/dpa/EPA/D. Solanik
शनि सिंगनापुर मंदिर
महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित इस शनि मंदिर में पिछले साल तक महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, जिसके चलते मामला बंबई उच्च न्यायालय पहुंचा. न्यायालय ने आदेश दिया कि पूजा स्थलों में जाना महिलाओं का मौलिक अधिकार है. अदालत के इस फैसले के बाद मंदिर ट्रस्ट ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी.
तस्वीर: Reuters/N. Chitrakar
त्रयंबकेश्वर मंदिर, नासिक
देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. लेकिन बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि अगर महिलाओं को मंदिर के भीतरी भाग में प्रवेश की अनुमति नहीं है तो वहां पुरूषों का प्रवेश भी वर्जित होना चाहिए. जिसके बाद से अब महिलाएं और पुरुष दोनों ही मंदिर के भीतरी भाग में नहीं जाते.
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर देश का सबसे अमीर मंदिर है. इस मंदिर का रखरखाव त्रावणकोर का पूर्व शाही परिवार करता है. पूरा मसला इसकी दौलत से जुड़ा है. मंदिर ट्रस्ट धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए इसकी तिजौरी खोलने के पक्ष में नहीं है, लेकिन सरकार इसकी दौलत का ब्यौरा चाहती है.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
ज्ञानवापी मस्जिद
अप्रैल 2021 में बनारस के जिला सिविल कोर्ट ने पुरातत्व विभाग को मस्जिद का विस्तार से सर्वेक्षण करने के लिए कहा और एक पांच सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया जिसका काम यह पता लगाना होगा कि मस्जिद जहां है वहां उसके पहले कोई हिन्दू मंदिर था या नहीं. मस्जिद को लेकर एक याचिका दायर कर दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि वो जिस भूमि पर स्थित है वो मूल रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा थी.
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सबसे हैरान करनी वाली मुलाकात सेना में मेजर के पद पर कार्य कर रहे एक नौजवान व्यक्ति से हुई. हाथ में माला जपते हुए संतों का भाषण बड़ी गंभीरता से सुन रहे थे. बीच-बीच में जोशीला अंदाज उनके हाव-भाव में दिख रहा था लेकिन नारेबाजी या फिर इस तरह का कोई और काम नहीं कर रहे थे. बड़ी मुश्किल में बात करने के लिए तैयार दिखे और फिर उन्होंने बताया कि वो सेना में अधिकारी हैं और छुट्टी लेकर पिछले तीन दिनों से अयोध्या में ही डटे हैं.
नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, "मेरा किसी राजनीतिक पार्टी की ओर तो झुकाव नहीं है लेकिन मंदिर निर्माण के लिए यदि ये लोग पहल कर रहे हैं तो मैं तन-मन-धन से इनका साथ देने को तैयार हूं. मेरी उम्र 35 साल की है और मैंने शादी नहीं की है. घर वाले शादी करना चाहते हैं लेकिन मैं आजीवन भजन करना और भगवान राम के चरणों में रहना चाहता हूं.”
न सिर्फ युवक, बल्कि बड़ी संख्या में युवतियां भी धर्म सभा में मौजूद थीं जो या तो अभी कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं या फिर अच्छी-खासी नौकरी. इन सभी लोगों का यही कहना था कि राम लला के दर्शन करने के बाद उनकी स्थिति देखकर बड़ा कष्ट हुआ और वो चाहते हैं कि जल्द से जल्द मंदिर का निर्माण हो.
आखिर ऐसा क्या है कि ये युवा सबकुछ छोड़कर मंदिर निर्माण के लिए इतने समर्पित दिख रहे हैं, इस सवाल के जवाब में वीएचपी के प्रदेश प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं, "देखिए, युवा के भीतर जोश भी होता है तो संवेदनशीलता भी सबसे ज्यादा होती है. आस्थावान परिवार के युवा ये देखकर हैरान हैं कि भगवान राम की जन्मभूमि में उनके लिए एक मंदिर की जगह नहीं मिल रही है. इसीलिए अब युवा कुछ भी करने को तैयार हो चला है.”
देखिए अयोध्या की दिवाली
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लेकिन वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि दो-चार ऐसे युवाओं की मौजूदगी से जरूरी नहीं कि देश का हर युवा यही चाहता है. वो कहते हैं, "बड़ी संख्या आपको ऐसे युवाओं की ही दिखेगी जिनके पास कोई काम-धाम नहीं है या फिर ऐसे युवा जिनके परिवार के बड़े सदस्य राजनीति में हैं या फिर वीएचपी से जुड़े हुए हैं. यही लोग अपने साथ तमाम दूसरे युवकों को भी लाए होंगे. हां, कुछ हाईप्रोफाइल युवा भी भावनाओं में बहकर आ गए होंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन ये पूरे देश के या प्रदेश के युवाओं की भावना का द्योतक है, ऐसा नहीं है.”
वहीं इसका एक अलग पहलू अयोध्या के स्थानीय युवाओं में दिखा. हनुमानगढ़ी का दर्शन करने आए सर्वेश अग्रहरि ने बताया कि वो अवध विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई कर रहे हैं. धर्म सभा में जाएंगे या नहीं, इस सवाल के जवाब में सर्वेश का कहना था, "हमारे पास इतना समय नहीं है. पढ़ाई के बाद जो समय बचता है दुकान में बिताता हूं. हमारी किराने की दुकान है जिसे मेरे पिता और बड़े भाई चलाते हैं. राम लला और उनके नाम पर अयोध्या में जितनी राजनीति हुई है उससे हम लोग यहां आजिज आ चुके हैं.”
सर्वेश की तरह ही अयोध्या के दूसरे युवकों की भी यही सोच है. ये सभी लोग ऐसे हैं जो अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पैदा हुए हैं लेकिन उसके बाद की घटनाओं और दंगों के बारे में अपने बुजुर्गों से सुना है.
मुगलपुरा के रहने वाले कुछ मुस्लिम युवकों का तो यहां तक कहना था कि कोर्ट से निर्णय आ जाए तो जहां चाहें मंदिर बनवा लें. बीएससी में पढ़ने वाले इरफान कहते हैं, "मंदिर बनाने से कौन रोक रहा है या कौन रोकेगा ये तो मुझे नहीं पता लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि अयोध्या के मुसलमानों की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. जब बाबरी मस्जिद ढहा ही दी गई तो वहां मंदिर बने या फिर कुछ और, क्या फर्क पड़ता है.”
इन मुस्लिम देशों में हैं हिंदू मंदिर
दुनिया में भारत और नेपाल ही हिंदू बहुल देश हैं, लेकिन हिंदू पूरी दुनिया में फैले हैं. मुस्लिम देशों में भी उनकी अच्छी खासी तादाद है. डालते हैं एक नजर मुस्लिम देशों में स्थित मंदिरों पर.
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पाकिस्तान
पाकिस्तान के चकवाल जिले में स्थित कटासराज मंदिर का निर्माण सातवीं सदी में हुआ था. इस मंदिर परिसर में राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शिव मंदिर खास तौर से देखे जा सकते हैं. पुरातात्विक विशेषज्ञ इसके रखरखाव में जुटे हैं.
तस्वीर: Ismat Jabeen
मलेशिया
मलेशिया में हिंदू तमिल समुदाय के बहुत से लोग रहते हैं और इसलिए यहां बहुत सारे मंदिर हैं. गोमबाक में बातु गुफाओं में कई मंदिर हैं. गुफा के प्रवेश स्थल पर हिंदू देवता मुरुगन की विशाल प्रतिमा है.
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इंडोनेशिया
आज इंडोनेशिया भले ही दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, फिर भी वहां की संस्कृति में हिंदू तौर तरीकों की झलक दिखती है. वहां बड़ी संख्या में हिंदू मंदिर हैं. फोटो में नौवीं सदी के प्रामबानान मंदिर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को देखा जा सकता है.
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बांग्लादेश
बांग्लादेश की 16 करोड़ से ज्यादा की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगभग दस फीसदी है. राजधानी ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में और भी कई मंदिर हैं.
तस्वीर: DW/M. Mamun
ओमान
फरवरी 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ओमान पहुंचे तो वह राजधानी मस्कट के शिव मंदिर में भी गए. इसके अलावा मस्कट में श्रीकृष्ण मंदिर और एक गुरुद्वारा भी है.
तस्वीर: PIB
यूएई
संयुक्त अरब अमीरात में अभी सिर्फ एक मंदिर है जो दुबई में है. इसका नाम शिव और कृष्ण मंदिर है. जल्द ही अबु धाबी में पहला मंदिर बनाया जाएगा जिसकी आधारशिला प्रधानमंत्री मोदी ने रखी.
तस्वीर: Imago/robertharding
बहरीन
काम की तलाश में बहुत से लोग भारत से बहरीन जाते हैं, जिनमें बहुत से हिंदू भी शामिल हैं. उनकी धार्मिक आस्थाओं के मद्देनजर वहां शिव मंदिर और अयप्पा मंदिर बनाए गए हैं. (तस्वीर सांकेतिक है)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Made Nagi
अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की संख्या अब लगभग 1000 ही बची है. इनमें से ज्यादातर काबुल या अन्य दूसरे बड़े शहरों में रहते हैं. अफगानिस्तान में जारी उथल पुथल का शिकार हिंदू मंदिर भी बने. लेकिन काबुल में अब भी कई मंदिर बचे हुए हैं.
तस्वीर: DW
लेबनान
लेबनान के जाइतून में भी हिंदू मंदिर मौजूद है. वैसे लेबनान में रहने वाले भारतीयों की संख्या ज्यादा नहीं है. 2006 के इस्राएल-हिज्बोल्लाह युद्ध के बाद वहां भारतीयों की संख्या में कमी आई.