अयोध्या में जमीन का एक टुकड़ा दो करोड़ रुपयों में बिका और दस मिनट बाद राम मंदिर ट्रस्ट ने उसे 18.5 करोड़ में खरीद लिया. ट्रस्ट और उसके सचिव चंपत राय पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं.
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उत्तर प्रदेश में विपक्षी पार्टियों आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाए हैं कि कुछ जमीन व्यापारियों ने जमीन के उस टुकड़े को दो करोड़ में खरीदा और फिर 18.5 करोड़ रुपयों में ट्रस्ट को बेच दिया. इतना ही नहीं दोनों सौदों के मुद्रांक शुल्क यानी स्टैम्प ड्यूटी कागजों पर ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा और अयोध्या के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय का नाम बतौर गवाह लिखा हुआ है.
आरोप लगाने वाले पवन पांडेय समाजवादी पार्टी के नेता, अयोध्या के पूर्व विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री हैं. ऐसे ही आरोप आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह ने भी लगाए हैं और पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग की है. पवन पांडेय ने यहां तक कहा है कि ट्रस्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए अयोध्या में जितनी जमीन खरीदी है उन सभी सौदों की जांच की जाए.
मामले पर ट्रस्ट का बचाव करते हुए ट्रस्ट के सचिव और विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय ने किसी भी घोटाले से इनकार किया है. उन्होंने कहा है कि जमीन के इस टुकड़े की खरीद का जो पहला सौदा है उसका मूल्य 2019 में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले के दामों पर तय हुआ था. राय का दावा है कि फैसला आने के बाद से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अयोध्या में काफी जमीन खरीदे जाने की वजह से वहां जमीन के दाम बढ़ गए. इसलिए जब ट्रस्ट ने उस जमीन को खरीदा तो उसे ज्यादा मूल्य देना पड़ा.
लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं कि दाम में 10 मिनट में 16 करोड़ की बढ़ोतरी कैसे हो सकती है? संजय सिंह ने यह भी आरोप लगाया है कि उस जमीन के पुराने दामों पर हुए करार को लेकर चंपत राय जो दावे कर रहे हैं वो झूठे हैं.
पूरे मामले में दोनों गवाहों की भूमिका भी संदेह के दायरे में है. इनमें से ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा आरएसएस के प्रांत कार्यवाह हैं और अयोध्या के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय भाजपा के स्थानीय नेता हैं. अनिल मिश्रा ने मामले पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है, बल्कि जब पत्रकारों ने उनकी प्रतिक्रिया मांगी तो वो बिना जवाब दिए वहां से चले गए. महापौर उपाध्याय ने कहा है कि बतौर महापौर वो मंदिर से संबंधित सभी जमीनी सौदों के गवाह हैं.
लेकिन इसके बावजूद भ्रष्टाचार का आरोप तूल पकड़ता जा रहा है. कांग्रेस पार्टी ने भी राम मंदिर के नाम पर घोटाले के आरोप लगाए हैं और मामले में जांच की मांग की है. देखना होगा कि मामले में राज्य सरकार या केंद्र सरकार किसी जांच के आदेश देती है या नहीं.
इन मंदिरों पर चले अदालती आदेश
भारत में धार्मिक स्थल और इससे जुड़ी मान्यताओं को लोगों की आस्था के साथ जो़ड़ कर देखा जाता है. लेकिन देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जो किसी न किसी कारण अदालती मामलों में उलझे तो किसी पर अदालत ने कोई आदेश दिया.
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राम जन्मभूमि
एक लंबे अरसे से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर 2019 को आदेश दिया था कि विवादित स्थल पर राम मंदिर ही बनेगा और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए कहीं ओर पांच एकड़ भूमि दी जाएगी. अदालत ने यह भी कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद का गिराया जाना गैर कानूनी था.
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केरल का सबरीमाला मंदिर
केरल के सबरीमाला मंदिर का मामला प्रवेश मान्यताओं से जुड़ा था. यहां 10-50 साल की उम्र वाली महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मामला लंबे समय से उच्चतम न्यायालय में है, जिसे हाल में उच्चतम न्यायलय ने संवैधानिक बेंच को भेजा है.
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हाजी अली दरगाह, मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में स्थित हाजी अली दरगाह का मसला भी बंबई उच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है. दरगाह में पहले महिलाओं का प्रवेश वर्जित था लेकिन न्यायालय ने अगस्त 2016 में इस प्रतिबंध को महिलाओं के मौलिक अधिकारों के खिलाफ मानते हुए राज्य को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया. साथ ही हाजी अली ट्रस्ट को भी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के आदेश दिये.
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शनि सिंगनापुर मंदिर
महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित इस शनि मंदिर में पिछले साल तक महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, जिसके चलते मामला बंबई उच्च न्यायालय पहुंचा. न्यायालय ने आदेश दिया कि पूजा स्थलों में जाना महिलाओं का मौलिक अधिकार है. अदालत के इस फैसले के बाद मंदिर ट्रस्ट ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी.
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त्रयंबकेश्वर मंदिर, नासिक
देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. लेकिन बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि अगर महिलाओं को मंदिर के भीतरी भाग में प्रवेश की अनुमति नहीं है तो वहां पुरूषों का प्रवेश भी वर्जित होना चाहिए. जिसके बाद से अब महिलाएं और पुरुष दोनों ही मंदिर के भीतरी भाग में नहीं जाते.
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर देश का सबसे अमीर मंदिर है. इस मंदिर का रखरखाव त्रावणकोर का पूर्व शाही परिवार करता है. पूरा मसला इसकी दौलत से जुड़ा है. मंदिर ट्रस्ट धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए इसकी तिजौरी खोलने के पक्ष में नहीं है, लेकिन सरकार इसकी दौलत का ब्यौरा चाहती है.
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ज्ञानवापी मस्जिद
अप्रैल 2021 में बनारस के जिला सिविल कोर्ट ने पुरातत्व विभाग को मस्जिद का विस्तार से सर्वेक्षण करने के लिए कहा और एक पांच सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया जिसका काम यह पता लगाना होगा कि मस्जिद जहां है वहां उसके पहले कोई हिन्दू मंदिर था या नहीं. मस्जिद को लेकर एक याचिका दायर कर दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि वो जिस भूमि पर स्थित है वो मूल रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा थी.