अफगान राष्ट्रपति चुनावों के आवेदन
९ अक्टूबर २०१३चुनाव प्रक्रिया का चक्का फिलहाल रुका हुआ है. नामांकन के अंतिम दिन उम्मीदवारों की लाइन लग गई. कुछ ने तो एकदम अंतिम क्षण में पर्चा भरा. आखिर में अगले साल वसंत में होने वाले चुनावों की लिस्ट पर 27 उम्मीदवारों के नाम थे. प्रमुख उम्मीदवारों में पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह, राष्ट्रपति करजई के भाई कयूम करजई, हाल ही में इस्तीफा देने वाले विदेश मंत्री जलमाई रसूल, इस्लामी कट्टरपंथी अब्दुल रसूल सैयाफ और पूर्व वित्त मंत्री अशरफ गनी अहमदजई शामिल हैं.
समर्थक और सहबंध
बॉन के इंटरनेशनल सेंटर ऑफ कंवर्जन के कोनराड शेटर कहते हैं कि अफगानिस्तान में जोरदार स्थानीय समर्थन के बिना कुछ भी नहीं होता. "इसलिए सबसे ज्यादा संभावना राष्ट्रपति के बड़े भाई कयूम करजई की है, जिनका दक्षिण अफगानिस्तान में अच्छा खासा आधार है. इसका मतलब है कि वे करजई के शासन को जारी रखने के लिए गंभीर दावेदार हैं."
जलमाई रसूल उनकी राह में बाधा बन सकते हैं, जो नामांकन करने तक करजई के विदेश मंत्री थे. रसूल करजई की ही तरह पश्तून शाही परिवार से हैं, जिसकी वजह से उन्हें वोट मिल सकते हैं. उनके साथ उत्तरी अलायंस के मारे गए नेता अहमद शाह मसूद के भाई जिया मसूद और इस समय देश की एकमात्र महिला गवर्नर हबीबा सराबी उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार हैं. पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह एक बार फिर उम्मीदवार हैं. चुनावों में धांधली के आरोपों वाले 2009 के चुनाव में वे करजई से पिछड़ गए थे. उन्हें ताजिकों का वोट मिलना तय है.
दुश्मन बने दोस्त
अफगानिस्तान के सत्ता संघर्ष में पुराने दुश्मन अचानक दोस्त बने नजर आते हैं. अब्दुल्लाह की टीम में हिज्बे इस्लामी के मुहम्मद खान हैं, जो पंरपरागत रूप से अब्दुल्लाह की जमाते इस्लामी पार्टी के विरोधी हैं. जमात और हिज्ब ने सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद एक दूसरे के खिलाफ बहुत संघर्ष किया था. एक और अजीब सा मोर्चा है, अत्यंत पढ़े लिखे अशरफ गनी अहमदजई और उज्बेक नेता और बदनाम वारलॉर्ड रशीद दोस्तम का. वर्ल्ड बैंक में काम कर चुके अहमदजई को ब्रिटिश बौद्धिक पत्रिका प्रॉस्पेक्ट ने हाल ही में हमारे समय का चोटी का दार्शनिक चुना था. उनका अपना कोई जनाधार नहीं है.
कोनराड शेटर कहते हैं कि पश्तून उम्मीदवार अब्दुल रसूल सैयाफ इस्लाम के नाम पर वोट पाने की कोशिश करेंगे. उनके उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार हेरात के वारलॉर्ड इस्माइल खान हैं, जिनका पश्चिमी अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर नियंत्रण है. सैयाफ ने 2003 में मनवाया कि अफगानिस्तान संवैधानिक तौर पर इस्लामी गणतंत्र है. आतंकवाद विशेषज्ञों के अनुसार 80 और 90 के दशक में उनका अल कायदा संस्थापक ओसामा बिन लादेन के साथ गहरा संपर्क था. प्रेक्षकों का मानना है कि राजनीतिक पद का प्रलोभन मिलने के बाद ज्यादातर उम्मीदवार अपना नाम वापस ले लेंगे.
महिलाएं निराश
बहुत से अफगान उम्मीदवारों की सूची से निराश हैं. एक दूसरे का विरोध करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए साथ आने को वे विश्वसनीय नहीं मानते. काबुल निवासी हमीदुल्लाह कहते हैं, "हमें अगले साल होने वाले चुनावों से बड़ी उम्मीद थी, लेकिन अब उम्मीदवारों का नाम देखने के बाद स्थिति अच्छी नहीं लगती. सारे उम्मीदवार वारलॉर्ड हैं, जो एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं." चुनाव से महिलाओं की राजनीतिक भूमिका को भी कोई बल मिलने की उम्मीद नहीं है. महिला सांसद शुक्रिया बरकजई को आशंका है कि महिला सांसदों की स्थिति और कमजोर होगी.
राजनीतिक गतिविधियों के साथ जुड़े खतरों का सामना करने के लिए बहुत कम महिलाएं तैयार दिखती हैं. राष्ट्रपति पद के 27 उम्मीदवारों में सिर्फ एक महिला है. अगले साल होने वाले प्रांतीय परिषद के चुनावों के लिए 2360 उम्मीदवारों में 273 महिलाएं हैं. काबुल में फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन की आड्रिएने वोल्टर्सडॉर्फ का कहना है कि ऐसा नहीं है कि महिलाएं महात्वाकांक्षी नहीं है, "उन्हें व्यवस्थित रूप से इससे दूर रखा जा रहा है. प्रांतीय परिषदों में महिलाओं की सीट पुरुष बहुमत ने घटा दी है." वोल्टर्सडॉर्फ की राय में अफगान महिलाओं के सकारात्मक विकास की अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उम्मीद पूरी नहीं हुई है.
रिपोर्ट: वसलत हसरत नाजिमी/एमजे
संपादन: आभा मोंढे