साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगा और लोग घरों में कैद हो गए. इस दौरान महिलाओं के लिए मुश्किलें और बढ़ीं और उन्हें पहले से ज्यादा हिंसा का सामना करना पड़ा. घरेलू हिंसा के मामलों की भी शिकायतें दर्ज की गईं.
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राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) को साल 2020 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की 23,722 शिकायतें मिलीं जो कि छह साल में सबसे ज्यादा है. महिला आयोग के आंकड़ों के मुताबिक कुल शिकायतों में से एक चौथाई घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं. यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं घर में भी सुरक्षित नहीं रहीं. एनसीडब्ल्यू के आंकड़ों पर नजर डाले तो पता चलता है कि पिछले साल कुल 5,294 शिकायतें घरेलू हिंसा से जुड़ीं थी. देश में कई महिलाएं तो भय के कारण शिकायत भी नहीं कर पाती हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई ने एनसीडब्ल्यू के हवाले से बताया है कि पिछले साल किस तरह से घरेलू हिंसा के मामले बढ़े और यह पिछले छह सालों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की सबसे ज्यादा शिकायतें मिलीं.
कहां-कहां से आईं शिकायतें?
एनसीडब्ल्यू के आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक 11,872 शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिलीं, इसके बाद दिल्ली से 2,635, हरियाणा 1,266 और महाराष्ट्र 1,188 से शिकायतें मिलीं. कुल 23,722 शिकायतों में से 7,708 शिकायतें गरिमा के साथ जीवन के अधिकार के तहत की गईं. एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि, "आर्थिक असुरक्षा, तनाव के स्तर में वृद्धि, चिंता, वित्तीय चिंताएं और माता-पिता से कोई भावनात्मक समर्थन नहीं मिलने के कारण 2020 में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े." रेखा शर्मा कहती हैं कि दंपति के लिए घर ही दफ्तर बन गया है और यहां तक कि उनके बच्चों के लिए स्कूल और कॉलेज. इसी दौरान महिलाओं को उसी स्थान से कई काम एक साथ करने पड़े. इसिलए पिछले छह सालों में सबसे ज्यादा शिकायतें साल 2020 में दर्ज की गईं. इससे पहले साल 2014 में 33,906 शिकायतें दर्ज की गईं थीं.
लॉकडाउन और महिलाओं की मुसीबतें
पिछले साल जब कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन लगाया गया था तो उस वक्त एनसीडब्ल्यू के पास घरेलू हिंसा की शिकायतों की भरमार लग गई. महिलाओं के पास इस दौरान बाहर जाने का विकल्प नहीं था और उन्हें घर पर ही हिंसा का सामना करना पड़ा. घरेलू हिंसा की शिकायतें जुलाई महीने में और बढ़ीं.
संयुक्त राष्ट्र के अभियान से हाल ही में जुड़ी मॉडल और अभिनेत्री मानुषी छिल्लर कहती हैं, "महिलाएं हर कहीं अलग-अलग तरह से हिंसा की शिकार होती हैं और उन्हें यह देखकर दुख होता हैं." उन्होंने एक वीडियो संदेश ट्विटर पर साझा किया है.
मानुषी छिल्लर को महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने "ऑरेंज द वर्ल्ड" नामक वैश्विक अभियान में शामिल किया है. मानुषी कहती हैं कि महिलाओं को हिंसा के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और दूसरी महिलाओं को भी ऐसा करने के लिए सशक्त बनाने की जरूरत है.
भारत में लोग समय कैसे बिताते हैं इस विषय पर सरकार ने पहली बार एक सर्वेक्षण कराया है. सर्वे में यह साबित हो गया है कि शहर हो या गांव, महिलाएं आज भी हर जगह चारदीवारी के अंदर ही सीमित हैं.
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कैसे बिताते हैं समय
सर्वेक्षण जनवरी से दिसंबर 2019 तक 5,947 गांवों और 3,998 शहरी इलाकों में कराया गया. इसमें 1,38,799 परिवारों ने भाग लिया, जिनमें छह साल से ज्यादा उम्र के 4,47,250 लोगों से सवाल पूछे गए.
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अपना ख्याल रखने में बिताते हैं ज्यादा वक्त
दिन के 24 घंटों में पुरुष और महिलाएं दोनों सबसे ज्यादा समय अपना ख्याल रखने में बिताते हैं. पुरुष उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों में बिताते हैं और महिलाएं उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त बिना किसी वेतन के घर के काम करने में बिताती हैं.
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रोजगार में महिलाओं की भागीदारी कम
सर्वे में पूरे देश में सिर्फ 38.2 प्रतिशत लोगों को रोजगार में व्यस्त पाया गया. ग्रामीण इलाकों में यह दर 37.9 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 56.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 19.2 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर 38.9 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 59.8 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 16.7 प्रतिशत है.
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उत्पादन में महिलाएं आगे
अपने इस्तेमाल के लिए सामान के उत्पादन में देश में सिर्फ 17.1 प्रतिशत लोग लगे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में यह दर 22 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 19.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 25 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर सिर्फ 5.8 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 3.4 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 8.3 प्रतिशत है.
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घर के काम करने में पुरुष बहुत पीछे
बिना किसी वेतन के घर के काम करने में ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 27.7 प्रतिशत है और महिलाओं की 82.1 प्रतिशत. शहरों में पुरुषों की भागीदारी है 22.6 प्रतिशत और महिलाओं की 79.2 प्रतिशत. ग्रामीण इलाकों में पुरुषों ने इन कामों में औसत एक घंटा 38 मिनट बिताए जब कि महिलाओं ने पांच घंटे एक मिनट. शहरी इलाकों में पुरुषों ने एक घंटा और 34 मिनट दिए जबकि महिलाओं ने चार घंटों से ज्यादा समय दिया.
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दूसरों की देख-भाल भी ज्यादा करती हैं महिलाएं
बिना किसी वेतन के दूसरों की देख-भाल करने में भी महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा आगे हैं. ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ 14.4 प्रतिशत पुरुष करते हैं जबकि महिलाओं का प्रतिशत 28.2 है. शहरी इलाकों में इसमें पुरुषों की भागीदारी 13.2 प्रतिशत है और महिलाओं की 26.3 प्रतिशत.
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पूजा-पाठ और लोगों से मिलने पर विशेष ध्यान
91.3 प्रतिशत भारतीय पूजा-पाठ, लोगों से मिलने और सामुदायिक गतिविधियों में शामिल होते हैं. इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों दोनों की भागीदारी है. ग्रामीण इलाकों में इन पर पुरुष एक दिन में औसत दो घंटे और 31 मिनट और महिलाएं दो घंटे और 19 मिनट बिताती हैं. शहरी इलाकों में महिलाएं और पुरुष दोनों ही इन पर एक दिन में औसत दो घंटे और 18 मिनट बिताते हैं.