रासायनिक हथियारों का पता कैसे लगाती है ओपीसीडब्ल्यू?
२३ अप्रैल २०१८
नर्व गैस या ऐसी ही किसी और रासायनिक हथियार की चपेट में आ कर तड़पते बच्चों या बड़ों की तस्वीरें देख रासानयिक हथियारों पर निगाह रखने वाली संस्था के लैब और उपकरण केंद्र में हलचल तेज हो जाती है.
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माइकल बैरेट के पास एक पुराना फ्लिप फोन है. इसी फोन पर उनके हॉटलाइन की घंटी बजती है उनके पास सिर्फ तीन घंटे होते हैं जिसमें उन्हें रासायनिक हथियारों की जांच करने वाली टीम के लिए उपकरण तैयार करना होता है.
नीदरलैंड्स के रिसवुक उपनगर में औद्योगिक इलाके से दूर एक दो मंजिली इमारत में करीब 20 कर्मचारी हैं. बीते दो दशकों में ऑर्गनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल विपंस, ओपीसीडब्ल्यू दुनिया भर से रासायनिक हथियारों के जखीरे को खत्म करने में अहम भूमिका निभा रहा है और यही लोग इस संगठन के हाथ पैर हैं.
सीरिया के डूमा में आम नागरिकों पर क्लोरीन या सारिन गैस के इस्तेमाल का पता लगाने वाली टीम ने अपना काम यहीं से शुरू किया. टीम जो भी नमूने जमा करेगी उसे सील कर कड़ी सुरक्षा और निगरानी के बीच आगे की विस्तृत जांच के लिए यहीं लाया जाएगा.
नर्व एजेंट की एबीसी
2018 में रूस के पूर्व जासूस सेरगेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी पर नर्व एजेंट से हमला किया गया था. नर्व एजेंट आखिर होता क्या है और कैसे शरीर पर असर करता है?
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क्या होता है नर्व एजेंट?
नर्व एजेंट ऐसे जहरीले रसायन हैं जो सीधे नर्वस सिस्टम यानि तंत्रिका तंत्र पर असर करते हैं. ये दिमाग तक जाने वाले संकेतों को रोक देते हैं, जिससे शरीर ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है. इसका असर सबसे पहले मांसपेशियों पर लकवे के रूप में देखने को मिलता है.
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कैसा दिखता है?
यह पाउडर के रूप में भी होते हैं और गैस के भी, लेकिन ज्यादातर द्रव का इस्तेमाल किया जाता है, जो भाप बन कर उड़ जाता है. अक्सर यह गंधहीन और रंगहीन होता है, इसलिए किसी तरह का शक भी नहीं होता.
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कैसे दिया जाता है?
यह भाप अगर सांसों के साथ शरीर के अंदर पहुंचे, तो कुछ सेकंडों में ही अपना असर दिखा सकती है. कई बार द्रव को त्वचा के जरिये शरीर में भेजा जाता है. ऐसे में असर शुरू होने में कुछ मिनट लग जाते हैं.
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कैसा होता है असर?
नर्व एजेंट के संपर्क में आने वाले व्यक्ति को फौरन ही सांस लेने में दिक्कत आने लगती है. आंखों की पुतलियां सफेद हो जाती हैं, हाथ-पैर चलना बंद कर देते हैं और व्यक्ति कोमा में पहुंच जाता है. ज्यादातर मामलों में कुछ मिनटों में ही व्यक्ति की मौत हो जाती है.
जहर देने के तरीके
कई बार इन्हें खाने में या किसी ड्रिंक में मिला कर दिया जाता है. लेकिन ऐसे में असर देर से शुरू होता है. ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब इन्हें सीधे व्यक्ति पर स्प्रे कर दिया गया हो. इससे वे सीधे त्वचा के अंदर पहुंच जाते हैं.
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क्या है इलाज?
जहर को जहर काटता है. इसके असर को कम करने के लिए एक एंटीडोट दिया जा सकता है लेकिन जरूरी है यह जल्द से जल्द दिया जाए. एंटीडोट देने से पहले यह पता लगाना भी जरूरी है कि किस प्रकार का नर्व एजेंट दिया गया है.
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किस प्रकार के होते हैं?
नर्व एजेंट को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. जी-एजेंट, वी-एजेंट और नोविचोक. शुरुआत 1930 के दशक में हुई जब सस्ते कीटनाशक बनाने के चक्कर में एक घातक जहर का फॉर्मूला तैयार हो गया और यह जर्मन सेना के हाथ लग गया.
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क्या है जी-एजेंट?
'जी' इसलिए क्योंकि यह जर्मनी में बना. 1936 में सबसे पहला जी-एजेंट जीए बना. उसके बाद जीबी, जीडी और जीएफ तैयार किए गए. जीबी को ही सारीन के नाम से भी जाना जाता है. अमेरिका युद्ध की स्थिति में रासायनिक हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल कर चुका है.
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क्या है वी-एजेंट?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने भी नर्व एजेंट बनाना शुरू किया. ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने 1950 के दशक में वीएक्स तैयार किया. वीएक्स के अलावा वीई, वीजी, वीएम और वीआर भी हैं लेकिन वीएक्स सबसे घातक है.
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क्या है नोविचोक?
रूसी भाषा में नोविचोक का मतलब है नया. इन्हें 70 और 80 के दशक में सोवियत संघ में बनाया गया था. इनमें से एक ए-230, वीएक्स की तुलना में पांच से आठ गुना ज्यादा जहरीला होता है और मिनटों में जान ले सकता है.
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कैसे ट्रांसपोर्ट होते हैं?
यह इतने जहरीले होते हैं कि इन्हें ले जाने वाले पर भी खतरा बना रहता है. जरा सा संपर्क भी जानलेवा साबित हो सकता है. इसलिए इनके लिए खास तरह की शीशी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कस कर बंद किया जाता है. साथ ही ट्रासंपोर्ट करने वाला खास तरह के कपड़े भी पहनता है.
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कहां से आया?
नर्व एजेंट कोई आम जहर नहीं है जिसे घर पर बना लिया जाए. यह सैन्य प्रयोगशालाओं में बनाया जाता है और हर एक फॉर्मूले में थोड़ा बहुत फर्क होता है. इसलिए हमले के मामले में पता किया जाता है कि फॉर्मूला कौन से देश का है. इसके अलावा जिस शीशी या कंटेनर में जहर लाया गया, उसकी बनावट से भी पता किया जाता है.
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कितना असरदार?
नर्व एजेंट के हमले के बाद बचने की संभावना बहुत ही कम होती है. हालांकि खतरा कितना ज्यादा है, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि जहर किस मात्रा में दिया गया है.
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पहले सैनिक रह चुके बैरेट ओपीसीडब्ल्यू के साथ 21 साल से हैं. जो लोग दुनिया के सबसे जहरीले इलाके में जाना चाहते हैं उन्हें प्रशिक्षण और उपकरण यह संगठन देता है. बैरेट ने खुद को इसी काम में लगा लिया है. 61 साल के बैरेट ओपीसीडब्ल्यू के प्रिंसिपल लॉजिस्टिक टेक्नीशियन और इक्विपमेंट स्टोर के प्रमुख हैं. वो बताते हैं, "जब आप कुछ गलत देखते हैं तो निश्चित रूप से नर्वस होते हैं.
बैरेट का कहना है कि मिशन के लिए तैयारी का समय लगातार घटता जा रहा है. कार्बन के कवच वाले प्रोटेक्शन सूट से लेकर हाथियों के पैरों के आकार वाले रबर बूट, उन्नत डिटेक्टर, सैटेलाइट फोन और मेडिकल किट, यह सब तैयार करना होता है. सारे उपकरण एक नहीं कई कई बार चेक करने होते हैं. बैरेट कहते हैं, "क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप के पास रिस्पाइरेटर या गैस मास्क हो और उसका वाल्व गलत तरीके से लगा हो."
सीरिया में रासायनिक हथियार के इस्तेमाल के दावों और प्रतिदावों के बीच ध्यान इस बात पर रहता है कि टीम को सुरक्षित रखने के साथ ही विज्ञान की पवित्रता को भी कैसे बचाया जा सके. छोटी से छोटी चीज भी नजरअंदाज नहीं की जा सकती. पिन के नोक के आकर की भी अगर दरार किसी ग्लोव में छूट जाए तो वह किसी के लिए घातक हो सकती है. इस रास्ते से रिसी गैस त्वचा के रास्ते इंसान के तंत्रिका तंत्र में जा सकती हैं.
सबसे खतरनाक नर्व एजेंट वीएक्स का रिसाव 20 मिनट में किसी की जान ले सकता है. ओपीसीडब्ल्यू के 7000 आधिकारिक अभियान में अगर ट्रेनिंग को भी मिला दें तो यह करीब 10000 अभियान हो जाते हैं. 21 सालों में ओपीसीडब्ल्यू के 400 कर्मचारियों ने दुनिया भर से रासायनिक हथियारों के 96 फीसदी जखीरे को खत्म किया लेकिन किसी टीम सदस्य को कोई नुकसान नहीं हुआ. इस काम ने इस संगठन को 2013 में नोबेल शांति पुरस्कार दिलाया.
कहां कहां इस्तेमाल हुए रासायनिक हथियार
अक्सर युद्ध की स्थिति में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल के बारे में सुनने को मिलता है. जंग के अलावा इनका इस्तेमाल किसी ना किसी साजिश के तहत भी होता रहा है. जानिए कब और कहां इस्तेमाल हुए रासायनिक हथियार.
तस्वीर: Colourbox
सीरिया
साल 2012 से सीरिया में कई बार रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया जा चुका है. इनमें सारीन, क्लोरीन और मस्टर्ड गैस शामिल हैं. सबसे ताजा हमला पूर्वी गूटा प्रांत के डूमा शहर में हुआ है. 7 अप्रैल 2018 को हुए इस हमले में 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं. अमेरिका ने रूस को इस हमले के लिए जिम्मेदार बताया है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/S. Zaidan
सेर्गेई स्क्रिपाल
4 मार्च 2018. पूर्व रूसी जासूस सेर्गेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी यूलिया को इंग्लैंड के सैलिसबरी इलाके में एक बेंच पर बेहोश पाया गया. जांच के दौरान पता चला कि उन पर नर्व एजेंट से हमला किया गया था, जो संभवतः उनके घर के दरवाजे पर रखा गया था. इस हमले के बाद से रूस और ब्रिटेन के रिश्तों में काफी खटास आई.
किम जोंग नाम
13 फरवरी 2017. मलेशिया के क्वालालम्पुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दो महिलाएं वीएक्स नर्व एजेंट से एक व्यक्ति पर हमला करती हैं. 15 से 20 मिनट के बीच इस व्यक्ति की जान चली जाती है. यह शख्स था उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन का सौतेला भाई किम जोंग नाम. माना जाता है कि किम जोंग उन ने ही इस हत्या की साजिश रची.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Kambayashi
आलेक्सांडर लित्विनेंको
1 नवंबर 2006. पूर्व रूसी जासूस आलेक्सांडर लित्विनेंको अचानक ही बीमार हुए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. तीन हफ्ते बाद उनकी मौत हो गई. जांच में पता चला कि उनकी चाय में रेडियोधर्मी पोलोनियम 210 मिलाया गया था. पहली बार किसी पर इस जहर का इस्तेमाल किया गया था. रूस इसमें अपना हाथ होने से इंकार करता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Hayhow
टोक्यो
20 मार्च 1995. टोक्यो मेट्रो में पांच हमले किए गए. मेट्रो की तीन लाइनों में नर्व एजेंट सारीन से भरे थैले छोड़े गए. इसमें 12 लोगों की जान गई, 50 घायल हुए और एक हजार लोगों की देखने की क्षमता चली गई. इसे जापान में घरेलू आतंकवाद का अब तक का सबसे संगीन मामला माना जाता है.
तस्वीर: Junko Kimura/AFP/Getty Images
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ओपीसीडब्ल्यू के पास 400 कर्मचारी हैं. बैरेट बताते हैं, "ओपीसीडब्ल्यू में सबसे खतरनाक काम है एनालिटिकल केमिस्ट का, क्योंकि उन्हीं को नमूने लेने होते हैं." बहुत से लोग हैं जिन्होंने कभी गैस मास्क भी नहीं पहना लेकिन अब वो ओपीसीडब्ल्यू के साथ जंग वाले इलाकों में काम कर रहे हैं. 2012 में इन लोगों के उपकरणों के बोझ में एक खास तरह के सिंथेटिक फाइबर से बने पूरे शरीर के सुरक्षा कवच को भी शामिल कर दिया गया. यह उनकी आग से बचने में मदद करता है.
हमले वाली जगह पर पहुंचने के बाद टीम के एक्सपर्ट पूरे इलाके को फ्लेम फोटोमेट्रिक डिटेक्टर या फिर इयॉन मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमीटर से स्कैन कर जहरीली गैस का पता लगाते हैं. लिटमस टेस्ट के जैसे पेपर टेस्ट से नर्व एजेंट की मौजूदगी की चेतावनी मिल जाती है.
टीम में आमतौर पर दो से 25 तक सदस्य होते हैं और उनके पास बहुत ज्यादा वक्त नहीं होता. कई बार तो महज 20 मिनट में ही वे वातावरण से नमूने जमा कर लेते हैं जैसे कि पौधे या मिट्टी या पिर खिड़कियों पर लगे रबर सील जो कई हफ्तों तक जहरीले कणों को जमा रख सकते हैं.
पीड़ितों से लिए गए बायोमेडिकल सैम्पल जैसे कि खून या पेशाब के नमूने भी काफी काम आते हैं. कुछ मामलों में तो मरे हुए लोगों के ऊतक भी जमा किए जाते हैं. ओपीसीडब्ल्यू की लैबोरेट्री के प्रमुख मार्क मिषाएल ब्लूम बताते हैं, "हम जिंदा बचे लोगों से नमूने लेने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनसे पूछताछ की जा सकती है, वो अपनी कहानी बता सकते हैं, जिसकी सत्यता दूसरे लोगों से जांची जा सकती है."
खून के नमूने काफी अच्छे साबित होते हैं. लोगों के शरीर में नर्व एजेंट के कण कई हफ्ते बल्कि कई बार तो तीन महीने तक रहते हैं.
एक बार नमूने रिसविक आ जाएं तो फिर वे इसे बांट कर 20 स्वतंत्र लेबोरेट्री में जांच के लिए भेजते हैं. ये लैब पूरी दुनिया में हैं और ओपीसीडब्ल्यू ने उन्हें सर्टिफिकेट दिया है. बिल्कुल गोपनीयता के साथ लैब स्वतंत्र रिपोर्ट तैयार करते हैं और फिर उसे ओपीसीडब्ल्यू तक भेजा जाता है. इस पूरी कवायद का मकसद सिर्फ यही है कि नतीजों की सत्यता पर कोई सवाल ना उठा सके.