रासायनिक हमलों की साजिश बताने वाली लैब
९ मार्च २०१८![Porton Down Defence Science and Technology Laboratory Schild](https://static.dw.com/image/42887029_800.webp)
बीते हफ्ते पूर्व रूसी जासूस को जहर देने की साजिश के बारे में भी इसी लैब ने बताया. 66 साल के सर्गेइ स्क्रिपाल और उनकी 33 साल की बेटी को दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड के सालिसबरी शहर में निशाना बनाया गया. यहां से कुछ ही दूरी पर है पोर्टन डाउन जिसे ब्रिटेन का सबसे विवादित सैन्य ठिकाना कहा जा रहा है. इसका आधिकारिक नाम है द डिफेंस साइंस एंट टेक्नोलॉजी लैबोरेट्री. विशाल ग्रामीम इलाके में फैले इस लैब में 3000 से ज्यादा वैज्ञानिक काम करते हैं और इसका सालाना बजट करीब 69.5 करोड़ डॉलर का है.
1916 में इस लैब को पहले विश्व युद्ध में जर्मन सेना के गैस हमलों का सामना करने के लिए बनाया गया. गैस हमलों के लिए शुरुआत में क्लोरीन और मस्टर्ड गैस और फॉस्जीन का इस्तेमाल किया गया. 1950 में पोर्टन डाउन के वैज्ञानिकों ने सीएस गैस विकसित जो आंसू गैस या टीयर गैस के नाम से चर्चित हुई. इसके साथ ही घातक नर्व एजेंट वीएक्स भी पहली बार यहीं बनाई गई.
ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है और पोर्टन डाउन सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया. मंत्रालय के तरफ से यह भी कहा गया है कि इस लैबोरेट्री का लक्ष्य सिर्फ उपकरणों और परीक्षणों को बेहतर बनाना था ताकि सैनिकों और आम लोगों की रक्षा की जा सके. हाल के वर्षों में इस लैब ने इबोला रिसर्च की खोज करने और सियेरा लियोन में इस महामारी से लड़ने में भी भूमिका निभाई है. ब्रिटिश सरकार पहले बता चुकी है कि इसने सीरिया की जंग में इस्तेमाल हुए रासायनिक हथियारों का भी विश्लेषण किया है, खासतौर से सारिन गैस का.
इन सब के बावजूद इस जगह की गोपनीयता लगातार अफवाहों और साजिशों की कहानियों को जन्म देती है. लैब पर इंसानों और जानवरों पर प्रयोग करने के आरोप भी लगते हैं. 1999 में पुलिस ने लैब के खिलाफ एक मामले में जांच शुरू की इसमें आशंका थी कि सैनिकों के जीवन को बिना उन्हें बताए जोखिम में डाल दिया गया था. जांच के बाद किसी पर आपराधिक अभियोग तो नहीं चला लेकिन 2008 में रक्षा मंत्रालय ने सेना के 360 पूर्व सदस्यों कों 42 लाख डॉलर का मुआवाजा दिया. इन लोगों ने दावा किया था कि उन्हें शीत युद्ध के जमाने में रसायनों का परीक्षण करने के लिए उनकी इच्छा के बगैर इस्तेमाल किया गया. हालांकि मंत्रालय ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली.
जून 2016 में रक्षा मंत्रालय ने एक दस्तावेज जारी किया जिसका शीर्षक था "द ट्रूथ अबाउट पोर्टन डाउन." इसमें मंत्रालय ने लैब पर लग रहे कुछ आरोपों का खंडन किया. इनमें यह भी था कि इस लैब में एलियन रखे गए हैं और यह भी कि यहां भांग की खेती होती है. मंत्रालय के दस्तावेज में कई सफल टेस्ट के बारे में बताते हुए यह भी जानकारी दी गई कि लैब "बिना जानवरों का इस्तेमाल किए यह नहीं कर सकती." मंत्रालय ने अपने स्वैच्छिक कार्यक्रम के बारे में भी विस्तार से ब्यौरा दिया जिसके तहत 20,000 लोगों ने बीते दशकों में अध्ययन में हिस्सा लिया.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)