रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन की ओर भारत
५ फ़रवरी २०१२रिकार्ड बढ़ोत्तरी में बिहार और झारखंड का योगदान काफी महत्वपूर्ण है. पिछले वर्ष देश में 24 करोड़ टन से अधिक गेहूं, चावल व अन्य अनाज की पैदावार हुई थी. कृषि सचिव पीके बसु कहते हैं, "पूर्वी क्षेत्र से इस बार एक करोड़ टन चावल अधिक आया है. इसी से हम 25 करोड़ टन के रिकार्ड उत्पादन लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे."
उन्होनें कहा कि मौजूदा वर्ष के दो महीनों के फसल अनुमान में चावल की 8 करोड़ टन से अधिक और गेहूं की 10 करोड़ टन से अधिक रिकार्ड पैदावार की उम्मीद की जा रही है. वहीं वर्ष 2010-11 में गेहूं का उत्पादन 8.6 करोड़ टन व चावल का उत्पादन 9.5 करोड़ लाख टन था.
अनाजों के रिकार्ड उत्पादन से शासन के खाद्य सुरक्षा अधिनियम को भी काफी सहायता मिलेगी. सरकार द्वारा गरीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध करवाने की योजना भी लंबे समय तक चलाई जा सकेगी. सरकार गेहूं और चावल के निर्यात को भी जारी रख सकेगी.
पूर्वी राज्यों के बेहतर प्रदर्शन पर बसु ने कहा, "कृषि उत्पादन और उत्पादकता के मामले में झारखंड और बिहार को सुस्त राज्यों के रूप में जाना जाता था, लेकिन दोनों ही राज्यों ने बेहतर प्रदर्शन किया है ".
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी 15 अगस्त 2011 को कहा था कि देश को दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है. खाने पीने के सामान पर छाई मंहगाई पर नियंत्रण के लिए उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता पर भी उन्होने जोर दिया.
दाल उत्पादन में आएगी कमी
उधर दलहन उत्पादन में इस बार कमी रहने की संभावना है. यह पिछले वर्ष के 1.82 करोड़ टन से घटकर 1.72 करोड़ के आसपास होगा. बसु ने कहा कि हालांकि यह इतना बुरा नहीं है. महाराष्ट्र और राजस्थान में कम वर्षा की वजह से नुकसान हुआ है.
इसी तरह तिलहन का उत्पादन भी घटकर 3.5 करोड़ टन रहने का अनुमान है. जबकि यह गत वर्ष 3.27 करोड़ टन था. नकद फसल माने जाने वाले कपास के बारे में अनुमान लगाया जा रहा है कि इसका उत्पादन 3.40 करोड़ गांठ (हर गांठ 170 किलोग्राम) रहेगा. जबकि पिछले वर्ष 3.3 करोड़ टन गांठ का उत्पादन हुआ था. गन्ने की पैदावार भी वर्तमान वर्ष में बढ़कर 34.78 करोड़ टन होने की उम्मीद है. गत वर्ष यह 34.23 करोड़ टन ही था.
उधर जूट उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी की उम्मीद की जा रही है. पिछले वर्ष 1.06 करोड़ गांठ (180 किलो प्रति गांठ) का उत्पादन हुआ था. इस वर्ष इसके 1.11 करोड़ गांठों तक होने की उम्मीद है.
बसु ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर ध्यान देने की जरूरत है. इससे पंजाब और हरियाणा जैसे अधिक पैदावार वाले राज्यों पर भी दबाव कम होगा.
रिपोर्टः पीटीआई/जितेन्द्र व्यास
संपादनः ओ सिंह