पीएम नरेंद्र मोदी 2014 में जब सत्ता में आए थे तो उन्होंने युवाओं से नौकरियों और विकास का वादा किया था. अब पांच साल बाद बेरोजगारी बुलंदियों को छू रही है. आलोचकों को चुप कराने की मोदी की कोशिशें भी कारगर नहीं दिखतीं.
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राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने हाल ही में कहा कि 2017-18 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर पिछले 45 साल के उच्चतम स्तर पर रही. मई में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले आई आयोग की रिपोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
इस रिपोर्ट को बहुत महत्व दिया जा रहा है क्योंकि नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद यह नौकरियों के बारे में किसी आधिकारिक संस्था की तरफ से पेश किया गया पहला व्यापक अध्ययन है.
इससे पहले सेंटर फॉर इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) ने कहा कि 2017 के शुरुआती चार महीनों में 15 लाख नौकरियां खत्म हो गईं. यानी नोटबंदी की सीधी मार लाखों लोगों के रोजगार पर पड़ी. आलोचक सरकार के इस कदम को एक बड़ी नाकामी बताते हैं, जबकि सरकार इसका बचाव करती है.
भारत में सरकारी नौकरी, संस्था या शोध में जाने के लिए उम्मीदवारों को किसी न किसी परीक्षा का सामना करना पड़ता है. इंडिया टुडे पत्रिका ने अपनी एक रिपोर्ट में इन सात परीक्षाओं को भारत की सबसे कठिन परीक्षा कहा है.
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संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी)
तीन चरणों में होने वाली यूपीएससी की परीक्षा को भारत की सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है. इसमें सफल होने वाले उम्मीदवार कलेक्टर, एसपी और ग्रेड ए सेवाओं में राजपत्रित अधिकारी बनते हैं.
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कॉमन एडमीशन टेस्ट (कैट)
भारत के प्रतिष्ठित बिजनेस-स्कूलों के लिए होने वाली इस परीक्षा को देश की दूसरी सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है. इसमें चयनित छात्र इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में दाखिला लेते हैं, जहां से एमबीए करने के बाद उन्हें लाखों की नौकरियां मिलती हैं.
देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) के लिए होने वाली इस परीक्षा को भी भारत की मुश्किल परीक्षाओं में से एक माना जाता है. लगभग हर 45 पर एक उम्मीदवार का इसमें चयन होता है.
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ग्रेजुएट एप्टीट्यूट टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट)
देश में पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर होने वाली इस परीक्षा के जरिए इंजीनियरिंग, तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा और अन्य सरकारी स्कॉलरशिप के रास्ते खुलते हैं. गेट में प्राप्त स्कोर तीन साल की अवधि तक मान्य होता है.
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कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (क्लेट)
देश में कानून की पढ़ाई कराने वाली 16 नामी नेशनल लॉ यूनिर्सिटीज के लिए यह परीक्षा होती है. इसमें चयनित छात्र कानून में स्नातक और स्नाकोत्तर की पढ़ाई करते हैं.
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यूजीसी-नेशनल एलिजिबल्टी टेस्ट (नेट)
यह परीक्षा साल में दो बार होती है. इसमें चयनित कुछ उम्मीदवारों को रिसर्च फेलोशिप और असिस्टेंट लेक्चररशिप मिलती है. यह परीक्षा देश भर में 83 विषयों में होती है.
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नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए)
भारतीय रक्षा सेवाओं के लिए होने वाली यह परीक्षा भी कठिन परीक्षाओं में से एक हैं. इस परीक्षा से थल सेना, वायु सेना और नौ सेना के लिए उम्मीदवारों का चयन होता है. लिखित परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों को बाद में साक्षात्कार समेत अन्य टेस्ट भी देने होते हैं.
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सीएमआईई का सर्वे बताता है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 प्रतिशत थी जो ग्रामीण इलाकों से भी ज्यादा है. देहाती इलाके में सर्वे के मुताबिक 5.3 प्रतिशत बेरोजगारी दर दिखी. शहरी इलाकों में 15 से 29 वर्ष के पुरुषों के बीच बेरोजगारी दर 18.7 प्रतिशत रही जबकि 2011-12 में यह आंकड़ा 8.1 प्रतिशत था. शहरी इलाकों में महिलाओं के बीच 2017-18 के दौरान 27.2 प्रतिशत बेरोजगारी दर्ज की गई.
अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल भी पिछले दिनों बजट पेश करते समय नौकरियां पैदा करने के मुद्दे पर खामोश रहे. दरअसल इस मामले पर पर्दा डालने के चक्कर में सरकार इतनी आगे निकल गई है कि उसका कहना है कि जो भी आंकड़े आए हैं, उनकी सत्यता को परखना अभी बाकी है.
आनन फानन में बुलाई गई नीति आयोग की एक प्रेस कांफ्रेस में अधिकारियों को बेरोजगारी से जुड़ी राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों की व्याख्या करने में खासी दिक्कत पेश आई और यहां तक कि उन्होंने बढ़ती बेरोजगारी के दावों को ही खारिज कर दिया. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, "इस रिपोर्ट की सत्यता को अभी नहीं परखा गया है. हम अभी छठी तिमाही के आंकड़ों का इंतजार कर रहे हैं. उनके बिना हम तिमाही दर तिमाही तुलना नहीं कर सकते. इसलिए मार्च तक इंतजार कीजिए."
वहीं नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, "हम 70 से 78 लाख नौकरियों के अवसर पैदा कर रहे हैं, जो देश के कार्यबल में शामिल होने वाले नए लोगों के लिए पर्याप्त है. हालांकि हमें उन लोगों के लिए भी नौकरियां पैदा करनी हैं जो कम उत्पादकता वाले कामों को छोड़ रहे हैं."
आने वाले सालों में 40 फीसदी नौकरियां रोबोट के हाथों में होंगी. जानिए वह कौन कौन सी नौकरियां हैं, जो इन मशीनों ने करनी शुरू भी कर दी हैं या फिर जल्द करने वाले हैं और जहां शायद भविष्य में इंसानों की कोई जरूरत ना रह जाए.
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वेटर
आप रेस्तरां में जा कर बैठें और एक रोबोट आपसे खाने का ऑर्डर लेने आए. कुछ देर बाद वही हाथ में ट्रे लिए आपका खाना भी लाए. यह तस्वीर बांग्लादेश के एक रेस्तरां में काम करने वाले वेटर रोबोट की है.
तस्वीर: Asaduzzaman Pramanik
डाकिया
जर्मनी की डाक सेवा डॉयचे पोस्ट ने इनका इस्तेमाल शुरू कर दिया है. पीले रंग के रोबोट डाक ले कर लोगों के घर तक जाते हैं. हालांकि क्योंकि अभी इन्हें सीढ़ियां चढ़ना नहीं आता है, इसलिए एक व्यक्ति मदद के लिए इनके साथ रहता है.
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सेल्समैन
आप दुकान में पहुंचें और एक रोबोट आपसे पूछे कि बताइए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं. यह किसी फिल्म का सीन नहीं है, बल्कि ऐसा होने लगा है. जर्मनी में पॉल नाम का रोबोट इलेक्ट्रॉनिक्स के स्टोर पर काम करता है.
पिज्जा डिलीवरी
पिज्जा के लिए मशहूर डॉमिनोज काफी समय से डिलीवरी वाले रोबोट पर काम कर रहा है. बहुत जल्द आपके घर पिज्जा की डिलीवरी रोबोट किया करेगा. और हो सकता है कि यह उड़ता हुआ ड्रोन के रूप में आप तक पहुंचे.
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पुलिस
इन्हें पब के बाहर बॉडीगार्ड के रूप में भी खड़ा किया जा सकता है और घरों के बाहर सुरक्षा के लिए भी तैनात किया जा सकता है. दुबई में बुर्ज खलीफा के बाहर खड़ा यह रोबोट पुलिस का काम कर रहा है.
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सर्जन
ऑपरेशन थिएटर में रोबोट का इस्तेमाल अब कई सालों से हो रहा है. डॉक्टर किसी वीडियो गेम की तरह रोबोट को चलाता है. उसे स्क्रीन पर सब कई गुना बड़ा नजर आता है.
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बारटेंडर
अगर रोबोट खाना खिला सकता है, तो ड्रिंक्स भी तो पिला सकता है. बोतल खोल कर ग्लास में बियर डालने का काम रोबोट बखूबी कर लेते हैं, और तो और इन्हें टिप भी नहीं देना पड़ता.
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सफाई
बाजार में इस तरह के कई रोबोट उपलब्ध हैं, जो खुद ही आपके घर की सफाई कर सकते हैं. ये दरअसल वैक्यूम क्लीनर हैं, जिन्हें आपको पकड़ने की कोई जरूरत नहीं है. ये खुद ही घर में घूमते रहते हैं और कूड़ा जमा करते रहते हैं.
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खेती
फसल को काटने का काम भी रोबोट करते हैं. इन्हें बता दिया जाता है कि कहां तक खेत हैं, इन्हें किस दायरे में घूमना है और कटाई जमीन से कितने सेंटीमीटर ऊपर से करनी है. सारी मेहनत ये मशीनें खुद ही कर लेती हैं.
तस्वीर: SRF
पैकेजिंग
ऑनलाइन कंपनी एमेजॉन के गोदाम में पैकेजिंग का काम रोबोट करते हैं. ये रोबोट खुद ही तय कर लेते हैं कि किस पैकेट को कहां रखना है. सब कुछ ऑटोमेटेड है.
रिपोर्टर
आने वाले समय में इस पेशे पर भी खतरा है. कई जगह रिपोर्ट बनाने के लिए रोबोट का इस्तेमाल होने भी लगा है, खास कर खेल जगत में. रोबोट समाचार एजेंसियों द्वारा मिली सामग्री को मिला जुला कर इंसानों की ही तरह रिपोर्ट लिख सकता है.
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टीचर
बहुत मुमकिन है कि भविष्य में क्लासरूम में टीचर की जगह रोबोट खड़ा मिले. क्या क्या पढ़ाना है, यह रोबोट में प्रोग्राम किया जा सकता है. ऑनलाइन यूनिवर्सिटी आज हकीकत हैं. लोग स्क्रीन के आगे बैठ कर तो पढ़ाई करते ही हैं, रोबोट के आगे भी किया करेंगे.
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पेंटर
रोबोट कलात्मक काम भी करते हैं. इस रोबोट का नाम बसकर है और यह इंसानों की ही तरह पेंटिंग बनाता है. हर कैनवास पर अलग चित्र, अलग अंदाज. क्या पता भविष्य में रोबोट की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लगा करे.
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रसोइया
फ्रिज में क्या क्या सामान रखा है, इसे देख कर रोबोट खुद ही तय कर सकता है कि खाने में क्या बनेगा. अगर आपकी कोई खास फरमाइश है, तो रोबोट दुकान पर सामग्री का ऑर्डर भी दे सकता है.
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नागरिकता भी
सोफिया पहली ऐसी ह्यूमनॉइड रोबोट है जिसे किसी देश की नागरिकता मिल गयी है. 2017 में सऊदी अरब ने इसे अपना पासपोर्ट दिया. यह भारत समेत कई देश घूम चुकी है.
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और भी बहुत कुछ
बहुत कुछ मुमकिन है. पब में बारटेंडर से ले कर वकीलों के दफ्तर में रिसर्च करने वाले पैरालीगल तक, सब काम रोबोट संभाल सकते हैं. तो क्या साइंस फिक्शन फिल्मों की तरह भविष्य में इंसान रोबोट से घिरा दिखा करेगा? यह तो वक्त ही बताएगा.
तस्वीर: Getty Images/J.Eisele
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सरकार भले ही राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट की सत्यता पर संदेह व्यक्त कर रही हो लेकिन आयोग के दो सदस्यों ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि सरकार आंकड़े जारी नहीं करना चाहती. इस्तीफा देने वाले एक सदस्य पीसी मोहनन ने कहा, "हमें दरकिनार किया जा रहा था. यह सिस्टम अपनी विश्वसनीयता खो रहा है. 2018 में रोजगार के आकंड़े संबंधी रिपोर्ट पेश ना करना भी इस्तीफा देने की एक वजह है."
मोदी 2014 में हर साल एक करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने के वादे के साथ सत्ता में आए थे. लेकिन अब तक हालात में कोई ज्यादा तब्दीली नहीं दिखती. जाने माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्या द्रेज कहते हैं, "भारत में ज्यादातर लोग बेरोजगार हैं या फिर बेगारी वाले कामों लगे हैं. रोजगार की गारंटी अब भी एक दूर का सपना है."
आत्महत्याओं से बयान होती आईटी सेक्टर की पीड़ा
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सरकार ने रोजगार के मौके बढ़ाने के लिए मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए, लेकिन अभी तक उनसे उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं. इसके अलावा लोगों को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से अतिरिक्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने डीडब्ल्यू को बताया, "बीजेपी की सरकार ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है. बिना सोचे समझे लागू की गई नोटबंदी और आनन फानन में लाए गए जीएसटी ने छोटे कारोबारियों को तबाह कर दिया. लोग इसे आसानी से नहीं भूलेंगे."
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी रोजगार के मुद्दे पर लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को निशाना बना रहे हैं. उन्होंने ट्वीट किया, "प्रधानमंत्री ने हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था. पांच साल बाद नौकरियों को लेकर लीक हुई उन्हीं के रिपोर्ट कार्ड से राष्ट्रीय संकट का पता चलता हैं. बेरोजगारी 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर है."
इसके बाद मोदी सरकार ने बजट के जरिए किसानों, अनौपचारिक क्षेत्र में करने वाले मजदूरों और मध्य वर्ग को लुभाने की कोशिश की है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि अब बहुत देर हो चुकी है और इन कदमों से कुछ नहीं होगा.
क्या बीमार कर रही आपकी नौकरी
आज कल नौकरीपेशा लोगों के बीच "बर्नआउट" शब्द आम हो गया है. यह काम के बोझ से होने वाले बहुत गंभीर मनोवैज्ञानिक असर के बारे में है, लेकिन कई लोगों को खुद ही लगने लगता है कि वे बर्नआउट के शिकार हैं. देखिए क्या है इसके लक्षण.
आम तौर पर हर चीज को लेकर आप ज्यादा कटु या निन्दापूर्ण टिप्पणी दे देते हैं. अच्छे सहकर्मियों के बारे में भी कमियां ढ़ूंढते रहते हैं. दूसरों को किसी काम का श्रेय मिलने पर जलन महसूस करते हैं. तो कहीं ना कहीं आपके काम का बोझ भी आपको ज्यादा सनकी बना रहा है.
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भाग जाना, भूल जाना चाहते हैं
सुबह दफ्तर पहुंचे कुछ ही घंटे हुए और आप वहां से निकलने का इंतजार करने लगे. किसी ऐसी जगह जाने का ख्याल आने लगे जहां शांति और सुकून हो. ऐसी "लालसा" असल में "बर्नआउट" की ओर इशारा करती है. भाग जाना किसी मुश्किल स्थिति से निकलने की सबसे आम प्रतिक्रिया होती है.
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आसान कामों में भी गलतियां होना
आप जो काम चुटकियां बजा कर कर लेते थे, उनमें भी गलतियां होने लगी हैं. ऐसा ध्यान भटकने के कारण होता है और अगर ऐसा ही चलता रहे तो ध्यान देना चाहिए कि कहीं आप भी "बर्नआउट" के शिकार तो नहीं हो रहे. पिछली मीटिंग में कही गयी कोई बात याद नहीं रही या रोजमर्रा के काम भूलने लगे हैं.
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हमेशा थके थके से
क्या वीकेंड को लेकर हमेशा आपका प्लान यही रहता है कि पूरा दिन सोकर बिताना है. ऐसी थकान महसूस होती हो जो आराम करके उठने के बाद भी ना जाती हो. यह थकान, तनाव और "बर्नआउट" के लक्षण हो सकते हैं. यह हालात शारीरिक से ज्यादा मानसिक और भावनात्मक थकान की ओर इशारा करते हैं.
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खुद पर संदेह
आप जहां भी हैं, जो भी काम कर रहे हैं, बड़ी मेहनत से वहां तक पहुंचे हैं. ऐसा क्यों होने लगा है कि कभी कभी आप अपनी ही क्षमताओं पर ही संदेह करने लगे हैं. अपने बारे में, अपने भविष्य के बारे में सोचने पर अंधेरा दिखता हो, तो यह भी बर्नआउट ही है. काम के अत्यधिक बोझ से आपका दिमाग कभी कभी ऐसे भी निपटने की कोशिश करता है.
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बदन में दर्द
कभी सिर का दर्द तो तो कभी पीठ में, ऐसा दर्द जो कभी नहीं जाता. आपको दर्द हमेशा महसूस होता रहता है, लेकिन इतना ज्यादा भी नहीं होता कि आप तुरंत डॉक्टर के पास जाने का सोचें. कभी कभी यह दर्द आपके काम के शेड्यूल से जुड़ा भी हो सकता है. अत्यधिक तनाव से कई बार बुखार से लेकर दिल की बीमारियां तक लग जाती हैं.
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छोटी छोटी बातों पर चिढ़ना
कभी बॉस की बुराई तो कभी चालू बनने वाले सहकर्मियों की- ऐसा नहीं कि कोई बॉस सचमुच बुरा नहीं होता या बाकी लोग धोखा नहीं देते, लेकिन यह भी सच है कि सभी ऐसे नहीं होते. तो अगर आप हमेशा सबके बारे में ऐसे ही ख्याल रखते हैं, तो उसका कारण भी आपका "बर्नआउट" हो सकता है. (एमएल/आरपी)