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रिकॉर्ड बेरोजगारी ने बढ़ाई मोदी की मुश्किलें

मुरली कृष्णन
७ फ़रवरी २०१९

पीएम नरेंद्र मोदी 2014 में जब सत्ता में आए थे तो उन्होंने युवाओं से नौकरियों और विकास का वादा किया था. अब पांच साल बाद बेरोजगारी बुलंदियों को छू रही है. आलोचकों को चुप कराने की मोदी की कोशिशें भी कारगर नहीं दिखतीं.

Narendra Modi
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/M. Metzel

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने हाल ही में कहा कि 2017-18 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर पिछले 45 साल के उच्चतम स्तर पर रही. मई में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले आई आयोग की रिपोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

इस रिपोर्ट को बहुत महत्व दिया जा रहा है क्योंकि नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद यह नौकरियों के बारे में किसी आधिकारिक संस्था की तरफ से पेश किया गया पहला व्यापक अध्ययन है.

इससे पहले सेंटर फॉर इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) ने कहा कि 2017 के शुरुआती चार महीनों में 15 लाख नौकरियां खत्म हो गईं. यानी नोटबंदी की सीधी मार लाखों लोगों के रोजगार पर पड़ी. आलोचक सरकार के इस कदम को एक बड़ी नाकामी बताते हैं, जबकि सरकार इसका बचाव करती है.

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सीएमआईई का सर्वे बताता है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 प्रतिशत थी जो ग्रामीण इलाकों से भी ज्यादा है. देहाती इलाके में सर्वे के मुताबिक 5.3 प्रतिशत बेरोजगारी दर दिखी. शहरी इलाकों में 15 से 29 वर्ष के पुरुषों के बीच बेरोजगारी दर 18.7 प्रतिशत रही जबकि 2011-12 में यह आंकड़ा 8.1 प्रतिशत था. शहरी इलाकों में महिलाओं के बीच 2017-18 के दौरान 27.2 प्रतिशत बेरोजगारी दर्ज की गई.

अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल भी पिछले दिनों बजट पेश करते समय नौकरियां पैदा करने के मुद्दे पर खामोश रहे. दरअसल इस मामले पर पर्दा डालने के चक्कर में सरकार इतनी आगे निकल गई है कि उसका कहना है कि जो भी आंकड़े आए हैं, उनकी सत्यता को परखना अभी बाकी है.

आनन फानन में बुलाई गई नीति आयोग की एक प्रेस कांफ्रेस में अधिकारियों को बेरोजगारी से जुड़ी राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों की व्याख्या करने में खासी दिक्कत पेश आई और यहां तक कि उन्होंने बढ़ती बेरोजगारी के दावों को ही खारिज कर दिया. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, "इस रिपोर्ट की सत्यता को अभी नहीं परखा गया है. हम अभी छठी तिमाही के आंकड़ों का इंतजार कर रहे हैं. उनके बिना हम तिमाही दर तिमाही तुलना नहीं कर सकते. इसलिए मार्च तक इंतजार कीजिए."

वहीं नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, "हम 70 से 78 लाख नौकरियों के अवसर पैदा कर रहे हैं, जो देश के कार्यबल में शामिल होने वाले नए लोगों के लिए पर्याप्त है. हालांकि हमें उन लोगों के लिए भी नौकरियां पैदा करनी हैं जो कम उत्पादकता वाले कामों को छोड़ रहे हैं."

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सरकार भले ही राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट की सत्यता पर संदेह व्यक्त कर रही हो लेकिन आयोग के दो सदस्यों ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि सरकार आंकड़े जारी नहीं करना चाहती. इस्तीफा देने वाले एक सदस्य पीसी मोहनन ने कहा, "हमें दरकिनार किया जा रहा था. यह सिस्टम अपनी विश्वसनीयता खो रहा है. 2018 में रोजगार के आकंड़े संबंधी रिपोर्ट पेश ना करना भी इस्तीफा देने की एक वजह है."

मोदी 2014 में हर साल एक करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने के वादे के साथ सत्ता में आए थे. लेकिन अब तक हालात में कोई ज्यादा तब्दीली नहीं दिखती. जाने माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्या द्रेज कहते हैं, "भारत में ज्यादातर लोग बेरोजगार हैं या फिर बेगारी वाले कामों लगे हैं. रोजगार की गारंटी अब भी एक दूर का सपना है."

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सरकार ने रोजगार के मौके बढ़ाने के लिए मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए, लेकिन अभी तक उनसे उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं. इसके अलावा लोगों को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से अतिरिक्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने डीडब्ल्यू को बताया, "बीजेपी की सरकार ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है. बिना सोचे समझे लागू की गई नोटबंदी और आनन फानन में लाए गए जीएसटी ने छोटे कारोबारियों को तबाह कर दिया. लोग इसे आसानी से नहीं भूलेंगे."

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी रोजगार के मुद्दे पर लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को निशाना बना रहे हैं. उन्होंने ट्वीट किया, "प्रधानमंत्री ने हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था. पांच साल बाद नौकरियों को लेकर लीक हुई उन्हीं के रिपोर्ट कार्ड से राष्ट्रीय संकट का पता चलता हैं. बेरोजगारी 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर है."

इसके बाद मोदी सरकार ने बजट के जरिए किसानों, अनौपचारिक क्षेत्र में करने वाले मजदूरों और मध्य वर्ग को लुभाने की कोशिश की है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि अब बहुत देर हो चुकी है और इन कदमों से कुछ नहीं होगा.

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