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Mehr Flüchtlinge denn je

२८ जुलाई २०११

60 साल पहले 28 जुलाई 1951 को जेनेवा शरणार्थी संधि तय हुई थी. आज विश्व भर में 4 करोड़ से अधिक लोग युद्ध और हिंसा के कारण भाग रहे हैं. उनमें से अधिकांश अपने ही देश में विस्थापित हैं और शरणार्थी बन गए हैं.

तस्वीर: Nebiyu Sirak

निराशाजनक से लेकर भयावह, यह है संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सहायता संगठन यूएनएचसीआर का आकलन. विश्व भर में सवा चार करोड़ शरणार्थियों के साथ ये संख्या पिछले 15 साल में रिकॉर्ड स्तर पर है. मुख्य वजह हैं वे संकट क्षेत्र जो दशकों से लोगों को हिंसा, गृह युद्ध या दूसरे जातीय विवादों के कारण भागने पर मजबूर कर रहे हैं.

सालों से अधिकांश शरणार्थी अफगानिस्तान से आते हैं. और निर्वासन में रह रहे तीस लाख अफगानों में से शायद ही कोई अपने नष्ट देश में स्वेच्छा से वापस जाना चाहता है. वहां की स्थिति बहुत ही मुश्किल है. इराक की ही तरह, जहां से दूसरे सबसे अधिक शरणार्थी आते हैं. लगभग 17 लाख इराकी निर्वासन में रहते हैं जबकि सोमालिया के पौने 8 लाख लोग बाहर रहने को मजबूर हैं. अभी भी वहां से लाखों लोग भूखमरी की वजह से भाग रहे हैं.

तस्वीर: AP

बने हुए हैं पुराने विवाद

शरणार्थियों की ऊंची संख्या की मुख्य वजह लंबे समय से चले आ रहे अनसुलझे विवाद हैं, कहना है संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सहायता संगठन का. 2010 की वार्षिक रिपोर्ट में पिछले 20 सालों में सबसे कम लोगों की वापसी की बात कही गई है.

और दशकों से जारी विवाद के बीच नित नए विवाद भी उनमें जुड़ रहे हैं. जून में रोम में रिपोर्ट पेश करते हुए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कमिश्नर अंटोनियो गुटेरेस ने कहा, "साल के आरंभ से आइवरी कोस्ट, लीबिया, सीरिया, यमन. तथा इसी अवधि में हम देखते हैं कि पुराने विवादों का हल नहीं हुआ है."

रोम का चुनाव जानबूझकर किया गया था. यूएन संस्था अपनी रिपोर्ट वहीं प्रकाशित करती है जहां शरणार्थियों का मुद्दा सर्वाधिक चर्चा में होता है. इटली में सत्ताधारी राजनीतिज्ञ उत्तरी अफ्रीका से शरणार्थियों की लहर या शरणार्थी सूनामी की बात कर रहे थे. जबकि लीबिया से इटली के लांपेडूजा आने वाले शरणार्थियों की संख्या सिर्फ 18,000 है. उसके पड़ोसी मिस्र और ट्यूनीशिया ने इससे पांचगुना अधिक लोगों को शरण दी है.

बोझ विकासशील देशों पर

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सहायता संगठन के अनुसार तथ्य यह है कि पांच में से चार शरणार्थी तीसरी दुनिया में रहते हैं. और गुटेरेस का कहना है, "सच यह है कि यदि बोझ है, हालांकि मुझे यह शब्द कतई पसंद नहीं, यानी यदि शरणार्थियों की सुरक्षा में जिम्मेदार कार्रवाई कहीं हो रही है तो वह दक्षिण के देशों, विकासशील देशों में की जा रही है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मसलन पाकिस्तान में, जहां इस समय सबसे ज्यादा शरणार्थी रहते हैं. पाकिस्तान ने लगभग 20 लाख लोगों को शरण दी है. हालांकि वह राजनीतिक अस्थिरता और भारी गरीबी का सामना कर रहा है. मुख्य रूप से अफगान शरणार्थी बाहर जाने के लिए पाकिस्तानी सीमा की राह लेते हैं और वहां सालों तक शरणार्थी शिविरों में रहते हैं, बिना ये जाने कि वे वापस लौट पाएंगे या नहीं.

सालों से केन्या भी अपने पड़ोसियों के लिए अपनी सीमा खोल रहा है. हॉर्न ऑफ अफ्रीका पर वर्तमान भूखमरी के कारण सोमालिया और इथियोपिया से हर रोज 1000 से 2000 शरणार्थी उत्तरी केन्या के भरे हुए शरणार्थी शिविरों में आ रहे हैं. जबकि केन्या में खुद ही बहुत से अपने विस्थापित रह रहे हैं जो सूखे के कारण भागने को मजबूर हुए हैं.

घरेलू शरणार्थियों के लिए उम्मीदें

अफ्रीका से एक और उदाहरण है. लाइबेरिया में आइवरी कोस्ट के शरणार्थी. खुद सालों के गृह युद्ध से ध्वस्त लाइबेरिया ने आइवरी कोस्ट के उपद्रवों के बाद वहां के 1,80,000 से अधिक लोगों को पनाह दी है. यूएनएचसीआर के अनुसार से उनमें से बहुत से लोगों को निजी तौर पर शरण दी गई है. यहां भी बहुत से लोगों को पता नहीं कि वे कब स्वदेश लौट पाएंगे.

तस्वीर: picture alliance/dpa

लगभग पौने तीन करोड़ विस्थापितों के लिए जो विवादों, गृह युद्ध या पर्यावरण से संबंधित प्रलय के कारण अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं, स्थिति थोड़ी आशाजनक है. अपने देश में विस्थापित 29 लाख लोग अपने पुराने घरों में वापस लौट पाए हैं और नया जीवन शुरू कर पाए हैं. उनमें से अधिकांश पाकिस्तान और कांगो के हैं लेकिन यूगांडा और किरगिस्तान में भी बहुत से शरणार्थी अपने इलाकों में लौटने में कामयाब रहे हैं. लेकिन घरेलू विस्थापितों की कुल संख्या रिकॉर्ड स्तर पर है.

औद्योगिक देश करें फिर विचार

यदि वापसी संभव न हो तो क्या हो? यूएनएचसीआर पांच साल के निर्वासन के बाद स्थायी विस्थापन की बात करता है और स्थायी हल ढूंढने की कोशिश करता है. यदि स्वैच्छिक वापसी संभव नहीं हो तो निवास के देश में बसाने का प्रयास या तीसरे देश में शरण. यूएनएचसीआर के प्रमुख अंटोनियो गुटेरेस का कहना है कि इसमें धनी देशों को अपना रुख बदलना चाहिए. सच्चाई यह है कि सीमाएं बंद होती जा रही हैं. "सच्चाई यह है कि विकसित देशों में शरण का अधिकार पाना मुश्किल होता जा रहा है और उन्हें कभी कभी तो शारीरिक प्रवेश से भी रोका जाता है."

ऐसे देश जो शरणार्थियों को ले सकते हैं, अपने को बंद करते जा रहे हैं. लांपेडूजा पर पहले लीबियाई शरणार्थी के पहुंचने के बाद सीमा पर नियंत्रण सख्त कर दिया गया है और शरणार्थियों को यूरोपीय संघ में बांटने की बहस शुरू हो गई. जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ मानवीय और समान यूरोपीय शरणार्थी नियमों की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है, "एक यूरोप के लिए जो शांति, कानून के राज्य और लोकतंत्र में जीता है, उनके साथ एकजुटता दिखाना स्वाभाविक बात होनी चाहिए, जिंहे सुरक्षा की जरूरत है."

लेख: हेले येप्पेसेन/मझा

संपादन: ए जमाल

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