रिचर्डस और गावस्कर से मिली प्रेरणा: तेंदुलकर
२ सितम्बर २००९
1989 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपना करियर शुरू करने के बाद से ही तेंदुलकर की तकनीक से पार पाना गेंदबाज़ों के लिए एक चुनौती रहा है. कभी उन्होंने धुआंधार पारी खेलकर विपक्षी आक्रमण को ध्वस्त कर दिया तो कभी रक्षात्मक खेल से गेंदबाज़ों के माथे पर पसीना ला दिया. अब कई सालों बाद तेंदुलकर ने अपनी बल्लेबाज़ी का राज़ आख़िरकार खोल दिया है.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 29 हज़ार से ज़्यादा रन बना चुके तेंदुलकर का कहना है कि गावस्कर और रिचर्डस उनके प्रेरणास्त्रोत रहे हैं. सचिन का कहना है, "मैं अपनी बल्लेबाज़ी को ठोस बनाना चाहता है. वैसे ही जैसे सुनील गावस्कर किया करते थे. और इसमें सर विवियन रिचर्डस की तरह तबाह करने की क्षमता भी लाना चाहता था. मैं जानता था कि दोनों शैलियों का मिश्रण घातक रहेगा."
शायद इन्हीं दो शैलियों के तालमेल का कमाल है कि सचिन पिछले दो दशकों से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में राज कर रहे हैं. रनों के लिए सचिन की भूख मिटी नहीं है और वह कहते हैं कि उन्हें अच्छा प्रदर्शन करने के लिए किसी के प्रोत्साहन की ज़रूरत नहीं है. सचिन के शब्दों में, "किसी बड़े मैच से पहले उन्हें ज़रूरत महसूस नहीं होती कि कोई आकर उन्हें अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित करे."
तेंदुलकर के मुताबिक़ उन्होंने हमेशा क्रिकेट से प्यार किया है कि वह क्रिकेट को देखते, खेलते हुए बड़े हुए और जैसे-जैसे समय बीतता गया, इस खेल के प्रति उनका प्यार बढ़ता गया. सचिन का कहना है, "मैदान पर जीतकर बड़े स्कोर बनाना, अपने देश के लिए मैच जीतने की भावना और दिन ब दिन मज़बूत हो रही है. 20 साल तक खेलने पर मुझे गर्व है और मैं अभी भी और अच्छा खेलने के लिए प्रेरित हूं."
तेंदुलकर को भारत में "क्रिकेट के भगवान" का दर्जा हासिल है, इसके बावजूद तेंदुलकर टीम भावना पर ज़ोर देते हैं और एक यूनिट की तरह काम करने की अहमियत समझाते हैं. तेंदुलकर के अनुसार टीमवर्क का मतलब उनके लिए मिलजुल कर अभ्यास करने और एक दूसरे का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कराने में सहायता से है. हर खिलाड़ी को अपने टीम के साथियों के लिए त्याग की भावना से परिपूर्ण होना चाहिए क्योंकि इसी से टीम को बेहतर नतीजे मिलते हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ए कुमार