1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

रिटायर होते कर्मचारियों की जगह रोबोट ला रही हैं कंपनियां

२८ अक्टूबर २०२३

जर्मनी में कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए रोबोटों का इस्तेमाल बढ़ रहा है. देश की लगभग आधी से ज्यादा कंपनियों में खाली पदों को भरने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. हर साल खाली पदों की संख्या बढ़ती जा रही है.

रोबोट का इस्तेमाल कई मुश्किलें आसान कर रहा है
कंपनियों में रोबोट का इस्तेमाल बढ़ रहा हैतस्वीर: Christian Ohde/picture alliance / CHROMORANGE

मशीन के पुर्जे बनाने वाली कंपनी एस एंड डी में ग्राइंडिंग यूनिट के प्रमुख रिटायर हो रहे हैं. कामगारों की भारी कमी से जूझ रहे जर्मनी में उनकी जगह ले सके ऐसे उम्मीदवार बहुत कम हैं. हाथ से होने वाला यह काम गंदा और खतरनाक भी है. ऐसे में कंपनी ने इंसानों की जगह रोबोट को काम पर रखने का फैसला किया है.

छोटे और मध्यम आकार की दूसरी कंपनियां भी ऑटोमेशन की तरफ बढ़ रही है. जर्मनी में युद्ध के बाद "बेबी बूम" जेनरेशन के लोग रिटायर हो रहे हैं और कामगारों की संख्या लगातार घटती जा रही है. आधिकारिक आंकड़े दिखाते हैं कि जर्मनी में करीब 17 लाख नौकरियां खाली पड़ी हैं. यह आंकड़ा इस साल के जून महीने का है. जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डीआईएचके) का कहना है कि जर्मनी की आधी से ज्यादा कंपनियां खाली जगहों को भरने की दिक्कत से जूझ रही हैं. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को इसकी वजह से हर साल करीब 100 अरब यूरो का नुकसान हो रहा है.

बैटरी बनाने वाली फैक्टरी में काम करता रोबोटतस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance

कुशल कामगारों की कमी

एस एंड डी के प्रबंध निदेशक हेनिंग श्लोएडर ने इस प्रवृत्ति का नाम लेकर ऑटोमेशन और डिजिटलाजेशन के लिए कंपनी पर दबाव को समझाया. श्लोएडर का कहना है, "पहले से ही कुशल कामगारों की कमी की जो कठिन स्थिति है, खासतौर से उत्पादन और कारीगरी में, वह और ज्यादा बड़ी होगी."

ग्राइंडिंग यूनिट का नया प्रमुख ढूंढना बेहद कठिन था, "सिर्फ इस काम में उनके विशाल अनुभव की वजह से नहीं बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह कमर तोड़ने वाला काम है जो अब कोई नहीं करना चाहता." मशीन ग्राइंडिंग में बहुत गर्मी होती है और लगातार शोर होता इसके अलावा चिंगारियां निकलती हैं जो खतरनाक हो सकती हैं.

मशीन ग्राइंडिंग जैसे कामों में रोबोट के इस्तेमाल से कई मुश्किलें आसान होती हैंतस्वीर: YAY Images/IMAGO

बहुत सी महिलाएं अब नौकरियों के लिए घर से बाहर निकलने लगी हैं और बड़ी संख्या में आप्रवासियों के आने से जर्मनी की आबादी में आ रहे बदलाव से जूझने में थोड़ी मदद मिली है. हालांकि बेबी बूमरों के रिटायर होने के बाद कम जन्मदर के कारण कामगारों का एक बहुत छोटा दल ही काम करने के लिए सामने आ रहा है. संघीय रोजगार एजेंसी को आशंका है कि 2035 तक कामगारों की कमी 70 लाख तक पहुंच जाएगी.

कांपने वाले इन रोबोटों को पसीना भी आता है

रोबोट करेंगे कमी पूरी

दूसरे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी इसी तरह की प्रवृत्ति नजर आ रही है. ग्लोबल पेरोल और एचआर सेवाएं मुहैया कराने वाली एडीपी की प्रमुख अर्थशास्त्री नेला रिचर्डसन का कहना है रोबोटिक्स से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक ऑटोमेशन की उन्नत तकनीकों का असर बहुत ज्यादा महसूस होगा. रिचर्डसन ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "लंबे समय में ये सारी खोजें कामकाजी दुनिया के लिए गेम चेंजर साबित होंगी. हर कोई अपना काम अलग तरीके से करेगा."रोबोट अक्सर सस्ते होते हैं और आसानी से इस्तेमाल किये जा सकते हैं. पारिवारों से चलाई जाने वाली मध्यम दर्जे की कंपनियां जर्मन अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और वो भी उनका इस्तेमाल कर रही हैं. इनमें एसएंडडी ब्लेच से लेकर बेकरी, लाउंड्री और सुपरमार्केट तक शामिल हैं.

विदेशों से कामगारों को जर्मन गांवों में बुलाने की चुनौती

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स का कहना है कि पिछले साल जनवरी में 26,000 यूनिट लगाए गए हैं. यह आंकड़ा इससे अधिक  2018 में था और हर साल चार फीसदी की दर से बढ़ रहा था लेकिन कोविड-19 की महामारी ने इसे धीमा कर दिया. एफएएनयूसी जर्मनी अपने आधे से ज्यादा रोबोट छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों को बेचती है. ये रोबोट जापान में बने हैं. कंपनी के प्रबंध निदेशक राल्फ विंकलमान का कहना है, "रोबोट उन कंपनियों का अस्तित्व बचारहे हैं जिनका भविष्य कर्मचारियों की कमी के कारण दांव पर लगा है."

रोबोट और इंसान अब एक दूसरे की मदद कर रहे हैं तस्वीर: Colourbox

ऑटोमेशन का कमाल

इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स की सुरक्षा के लिए सिस्टम बनाने वाली रोलेक कंपनी ने पिछले साल अपना पहला रोबोट खरीदा. अब कंपनी रात में भी उत्पादन करने में सक्षम है. कंपनी ने पहले ही एक दूसरी मशीन खरीद ली है और ऑटोमेशन में निवेश को जारी रखने की योजना बना रही है. कंपनी के सीईओ माथियास रोज ने रॉयटर्स से कहा, "यह शानदार है आप सुबह में जब बत्ती जलाते हैं तो पुर्जे स्टोरेज कंटेनर में होते हैं उन पर काम हो चुका रहता है."

जर्मनी में लोग काम करना क्यों नहीं चाहते

बढ़ता ऑटोमेशन यह भी दिखाता है कि रोबोट इस्तेमाल में आसान हो गए हैं, इनके लिए अब प्रोग्रामिंग के हुनर की जरूरत नहीं पड़ती. ज्यादार ह्यूमन मशीन इंटरफेस के साथ आ रहे हैं जिनमें स्मार्टफोन जैसे टचस्क्रीन हैं. कर्मचारी और व्यापार संघ भी जिन्हें कभी नौकरियों के छिन जाने का डर था वो इसे लेकर काफी सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं. हाल ही में हुए एक सर्वे से पता चला कि लगभग आधे जर्मन कर्मचारी रोबोटों को कामगारों की कमी से निपटने में मददगार मान रहे हैं. रोलेक के रोज ने कहा कि 2022 में ऑटोमेशन आने की वजह थी ऑर्डरों का जमा होते जाना. इसकी वजह से कर्मचारियों को ओवरटाइम और यहां तक कि शनिवार को भी काम करना पड़ रहा था. रोज ने कहा, "वह शुरुआत करने के लिए अच्छी स्थिति थी क्योंकि इसे मुकाबले की बजाए मददगार के रूप में देखा गया."

ये रोबोट नौकरी छीनता नहीं, दिलाता है

04:10

This browser does not support the video element.

जर्मनी के मजबूत व्यापार संघ आईजी मेटाल के प्रवक्ता का कहना है कि दीर्घकालीन कारोबारी रणनीति के तहत रोबोटों को अपनाया जा रहा ना कि जल्दी से खर्च घटाने के लिए, "यह काम को सेहतमंद, ज्यादा दिलचस्प और सुरक्षित बनाएगा." लॉरी ओर बस बनाने वाली कंपनी डाइमलर ट्रक रोबोटों का जम कर इस्तेमाल करती है खासतोर से भारी सामानों को उठाने और कर्मचारियों के शारीरिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से निबटने के लिए. हालांकि कंपनी के वर्क काउंसिल के प्रमुख माथियास क्रुस्ट का का कहना है, "इंसान से ज्यादा लचीला कोई भी नहीं. जितना जटिल उत्पादन होगा और जितना अलग रोबोटों का इस्तेमाल उतना ही मुश्किल होगा."

एनआर/एसबी (रॉयटर्स)

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें