सिपरी ने अनुमान लगाया है कि भारत के पास लगभग 150 और पाकिस्तान के पास लगभग 160 परमाणु हथियार हैं. सिपरी ने यह भी दावा किया है कि दुनिया भर में नौ देश अभी भी अपने परमाणु भंडारों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं.
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स्वीडन के एक शोध संस्थान ने अनुमान लगाया है कि भारत के पास लगभग 150 परमाणु वॉरहेड या हथियार हैं. स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) का अनुमान है कि पाकिस्तान के पास लगभग 160 परमाणु हथियार हैं. सिपरी का यह भी कहना है कि ये दोनों देश अपने मिसाइल परीक्षणों के बारे में वक्तव्य जारी करते रहते हैं, लेकिन अपने परमाणु अस्त्रों के भंडार में बहुत ही काम जानकारी देते हैं.
सिपरी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि 2020 की शुरुआत में दुनिया भर में परमाणु हथियारों की संख्या गिर कर 13,400 पर पहुंच गई थी, लेकिन नौ देश जिन्हें परमाणु शक्तियों के रूप में जाना जाता है वो अभी भी अपने परमाणु भंडारों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं. सिपरी के अनुसार 2019 के मुकाबले पूरी दुनिया में परमाणु हथियारों की संख्या में 465 हथियारों की कमी आई है.
संस्थान के अनुमान में सक्रिय हथियार, भंडार में पड़े हथियार और वो हथियार भी शामिल हैं जो नष्ट करने के लिए तैयार हैं. जो गिरावट आई है, उसका कारण मुख्य रूप से रूस और अमेरिका द्वारा रिटायर हो चुके हथियारों को नष्ट करना है. इन दोनों देशों के पास ही कुल मिला कर दुनिया के परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत भंडार है. सिपरी के अनुमान के अनुसार अमेरिका के पास 5,800 हथियार और रूस के पास 6,275 हथियार हैं.
ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया वो अन्य देश हैं जिन्हें परमाणु अस्त्रों से लैस माना जाता है. सिपरी का अनुमान है कि ब्रिटेन के पास लगभग 215, फ्रांस के पास 290, चीन के पास 320 और इस्राएल के पास 90 परमाणु हथियार हैं. अनुमान है कि उत्तर कोरिया के पास 30 से 40 हथियार हैं, लेकिन उन्हें सिपरी के वैश्विक अनुमान में शामिल नहीं किया गया था. सिपरी का यह भी कहना है कि लगभग 1,800 हथियार इस्तेमाल के लिए तैयार अवस्था में हैं.
साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 3.6 प्रतिशत तक बढ़ा है. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. सीपरी के रिसर्चर नान तिआन ने बताया, "शीत युद्ध के खत्म होने के बाद सैन्य खर्च का यह चरम है."
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अमेरिका
सभी देशों में पहला स्थान अमेरिका का है, जिसने अनुमानित 732 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.3 प्रतिशत ज्यादा है और पूरी दुनिया में हुए खर्च के 38 प्रतिशत के बराबर है. 2019 अमेरिका के सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार दूसरा साल रहा. इसके पहले, सात साल तक अमेरिका के सैन्य खर्च में गिरावट देखी गई थी.
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चीन
दूसरे स्थान पर है चीन जिसने अनुमानित 261 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.1 प्रतिशत ज्यादा था. पिछले 25 सालों में चीन का खर्च उसकी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ही बढ़ा है. उसका निवेश उसकी एक "विश्व स्तर की सेना" की महत्वाकांक्षा दर्शाता है. तिआन का कहना है, "चीन ने खुल कर कहा है कि वो दरअसल एक सैन्य महाशक्ति के रूप में अमेरिका के साथ प्रतियोगिता करना चाहता है."
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भारत
तीसरे स्थान पर भारत है. अनुमान है कि 2019 में भारत का सैन्य खर्च लगभग 71 अरब डॉलर रहा, जो 2018 में किए गए खर्च से 6.8 प्रतिशत ज्यादा था. विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के ही हैं.
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रूस
2019 में रूस ने अपना सैन्य खर्च 4.5 प्रतिशत बढ़ा कर 65 अरब डॉलर तक पहुंचा दिया. ये रूस की जीडीपी का 3.9 प्रतिशत है और सिपरी के रिसर्चर अलेक्सांद्रा कुईमोवा के अनुसार ये यूरोप के सबसे ऊंचे स्तरों में से है.
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सऊदी अरब
सऊदी अरब ने 61.9 अरब डॉलर खर्च किया. इन पांचों देशों का सैन्य खर्च पूरे विश्व में होने वाले खर्च के 60 प्रतिशत के बराबर है.
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जर्मनी
सिपरी के अनुसार, ध्यान देने लायक अन्य देशों में जर्मनी भी शामिल है, जिसने 2019 में अपना सैन्य खर्च 10 प्रतिशत बढ़ा कर 49.3 अरब डॉलर कर लिया. सबसे ज्यादा खर्च करने वाले 15 देशों में प्रतिशत के हिसाब से यह सबसे बड़ी वृद्धि है. रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, जर्मनी के सैन्य खर्च में वृद्धि की आंशिक वजह रूस से खतरे की अनुभूति हो सकती है.
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अब हो सकती है कटौती
सिपरी के रिसर्चर नान तिआन के अनुसार, "कोरोना वायरस महामारी और उसके आर्थिक असर की वजह से यह तस्वीर पलट भी सकती है. दुनिया एक वैश्विक मंदी की तरफ बढ़ रही है और तिआन का कहना है कि सरकारों को सैन्य खर्च को स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च की जरूरतों के सामने रख कर देखना होगा. तिआन कहते हैं, "हो सकता है एक साल से ले कर तीन साल तक खर्चों में कटौती हो, लेकिन उसके बाद के सालों में फिर से वृद्धि होगी."