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भारत यूं ही कोयला निकालता रहा तो दोगुना होगा मीथेन उत्सर्जन

१९ सितम्बर २०२४

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कोयला खनन विस्तार योजना से मीथेन गैस का उत्सर्जन दोगुना हो सकता है.

कोयला खदान
कोयला खदान में काम करते मजदूर (फाइल तस्वीर)तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jaipal Singh

कार्बन डाइ ऑक्साइड के बाद सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस मीथेन है. इसमें गर्मी को रोकने की क्षमता कार्बन डाइ ऑक्साइड से ज्यादा होती है और यह वातावरण में अधिक तेजी से घुल जाती है. यह प्राकृतिक गैस का सबसे प्रमुख घटक है. हालांकि यह तेजी से टूटती है लेकिन कम समय में इसका प्रभाव अधिक शक्तिशाली होता है.

कोयला खनन मीथेन गैस का एक प्रमुख स्रोत है, जो छिद्रों, खुले गड्ढों और जमीन की दरारों से रिसती है. भारत पहले से ही कोयला खदानों से निकलने वाले मीथेन उत्सर्जन के मामले में दुनिया में अग्रणी है. साथ ही इस जीवाश्म ईंधन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, आयातक और उपभोक्ता देश भी है.

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कोयला उत्पादन पर भारत का जोर

भारतीय कोयला मंत्रालय के मुताबिक, तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए 2030 तक घरेलू कोयला उत्पादन को 98.2 करोड़ टन से बढ़ाकर 1.5 अरब टन से अधिक करने की योजना है. 12 सितंबर को कोयला मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत का कोयला उत्पादन 32 प्रतिशत बढ़ गया है, जो एक अप्रैल से 31 अगस्त, 2023 के दौरान 501.1 करोड़ टन से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2025 में इसी अवधि के दौरान 659.9 करोड़ हो गया. फिलहाल भारत में 866 कोयला खदानें हैं, जिनसे कोयला निकाला जा रहा है.

स्वतंत्र ऊर्जा थिंक टैंक एंबर की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रस्तावित विस्तार से 2029 तक कोयला खदान से संबंधित मीथेन उत्सर्जन एक दशक पहले की तुलना में दोगुने से भी अधिक हो सकता है. यह अनुमान उस पद्धति पर आधारित है जिसका इस्तेमाल भारत अपने मौजूदा कोयला खदान संबंधी मीथेन उत्सर्जन की गणना के लिए करता है.

भारत में बढ़ती बिजली की मांग

भारत ने 2070 तक ग्रीन हाउस उत्सर्जन को नेट-जीरो करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन एंबर ने चेतावनी दी कि नियोजित कोयला विस्तार "देश की घरेलू उत्सर्जन कटौती योजनाओं के लिए काफी जोखिम पैदा करता है और इसका अल्पकालिक तापमान पर गहरा प्रभाव पड़ेगा."

दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भारत एक दुविधा का सामना कर रहा है, क्योंकि वह ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने और अपनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के साथ-साथ अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहता है. एंबर ने माना कि भारत में बिजली की मांग में "अभूतपूर्व वृद्धि" नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता से अधिक हो रही है.

संस्था का कहना है कि भारत को मिटिगेशन तकनीक में निवेश करना चाहिए, जो मीथेन को पकड़ सके और यहां तक ​​कि आयातित गैस की जगह पर इसका उपयोग किया जा सके. इससे धन की भी बचत हो सकती है.

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यूरोपीय संघ और अमेरिका ने साल 2021 में "वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा" शुरू की, जिसके तहत देश इस दशक के अंत तक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को 2020 के स्तर से 30 प्रतिशत कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. 150 से अधिक देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन चीन, भारत और रूस तीनों इससे बाहर रहे.

एए/वीके (एएफपी)

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