रियलिटी टीवी बन गए हैं न्यूज चैनल
२ अक्टूबर २०२०![Indien Test Abwehrsystem | Abschuss eines Satelliten | Narendra Modi, Premierminister](https://static.dw.com/image/48072199_800.webp)
20वीं सदी की शुरुआत में ऐसे कई आविष्कार हुए जो आगे चल कर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बने. एयर कंडीशनर से लेकर वैक्यूम क्लीनर तक, कॉर्नफ्लेक्स से इंस्टैंट कॉफी तक - उस जमाने में ऐसा बहुत कुछ नया बना जिसके बिना आज हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते. इन आविष्कारों में सबसे अहम था टेलीविजन. वक्त के साथ साथ यह सुधरता गया और हम इंसानों की आदतें बिगड़ती गईं.
कभी सिर्फ न्यूज देखने के लिए लोग टीवी के सामने बैठते थे. फिर धीरे धीरे कॉन्टेंट बढ़ता गया, विकल्प अंतहीन हो गए और लोगों को इस करिश्माई डब्बे की लत लग गई. 20वीं सदी खत्म होते होते टीवी पर एक नया फॉर्मेट शुरू हो चुका था - रियलिटी टीवी शो का. टीवी पर धारावाहिक, फिल्में और गाने तो लोग बहुत देख चुके थे लेकिन इस तरह का फॉर्मेट वे पहली बार देख रहे थे.
थोड़ा और अभद्र, थोड़ा और अश्लील
1999 में हॉलैंड ने "बिग ब्रदर" नाम का शो शुरू किया. आइडिया जॉर्ज ऑरवेल की मशहूर किताब 1984 पर आधारित था जिसमें लोग हर वक्त बिग ब्रदर की निगरानी में रहते थे. कैमरे उन पर हर पल नजर रखते और माइक उनके हर शब्द को रिकॉर्ड करते. ये शो इतना हिट हुआ कि एक के बाद एक देश इसे अपनाता चला गया. इस फॉर्मेट को शुरू हुए 20 साल बीत गए लेकिन जनता आज भी इसका लुत्फ उठा रही है. इस बीच यह 60 से भी ज्यादा देशों में पहुंच चुका है.
सिर्फ भारत में इसे बिग बॉस के नाम से जाना जाता है. और बिग बॉस हर साल थोड़ा और अभद्र, थोड़ा और अश्लील, थोड़ा और घटिया होता चला जा रहा है. वैसे दुनिया के अधिकतर देशों में यह एक एडल्ट प्रोग्राम है जिसे आधी रात को बच्चों के सोने के बाद देखा जाता है. लेकिन भारत की बात और है. वहां यह एक "फैमिली शो" है. गाली गलौज, चीखना चिल्लाना सब बच्चों के सामने ही होता है.
टीआरपी चाहिए तो चिल्लाओ
वैसे, वक्त के साथ साथ रियलिटी टीवी शो भी कई तरह के हो गए. कहीं शादी के लिए दूल्हा ढूंढा जाने लगा, तो कहीं लोग नाच गाकर अपना टैलेंट दिखाने लगे. लेकिन इन सभी रियलिटी शो में एक बात साझी रही - लोगों का एक दूसरे से झगड़ा. अगर सच में ना भी होता तो स्क्रिप्ट बना कर करा दिया जाता. शायद यही वजह रही कि दो दशकों बाद भी रियलिटी टीवी फॉर्मेट टिका रहा. लेकिन कम से कम भारत में अब इन्हें कड़ा कॉम्पिटीशन मिल रहा है - वह भी न्यूज चैनलों से.
न्यूज चैनलों को समझ आ गया है कि लोगों को अपनी ओर खींचना है तो चीखना चिल्लाना होगा, मारपीट करनी होगी. क्योंकि अंतहीन कॉन्टेंट के इस जमाने में सबसे ज्यादा मजा दर्शकों को इस रियलिटी टीवी फॉर्मेट में ही आता है. इसकी वजह भी है. टीवी के सामने बैठा आम इंसान जब टीवी पर चमक धमक वाले स्टूडियो में ब्रैंडेड सूट बूट पहने न्यूज एंकर को अपनी ही तरह बर्ताव करते देखता है, तो वह उससे कनेक्ट कर पाता है. उसे लगता है कि टीवी पर दिखने वाला भी उसी के ही जैसा है. यह दर्शक के आत्मविश्वास को बढ़ाता है.
सड़क पर जब कार और स्कूटर की टक्कर होती है तो लोग एक दूसरे से लड़ते हैं. भीड़ जमा हो जाती है और उस लड़ाई को देखने लगती है. शायद लड़ने वाले भीड़ के जमा होने से शर्मिंदा होते. लेकिन जब लड़ने वाले के मन में यह ख्याल आता है कि टीवी पर प्राइम टाइम में न्यूज एंकर भी तो इसी तरह से लोगों से झगड़ रहा होता है और लाखों लोग उसे देखते हैं, उसे अपना हीरो समझते हैं, तो यह अहसास उसमें एक साहस भर देता है.
एंकर बनाम सलमान खान
रियलिटी टीवी फॉर्मेट के दीवाने सिर्फ भारत में नहीं हैं. अमेरिका की जनता ने तो रियलिटी टीवी के होस्ट को ही अपना राष्ट्रपति चुन लिया. डॉनल्ड ट्रंप ने दस साल तक "द अप्रेंटिस" नाम का रियलिटी टीवी शो होस्ट किया था. लोगों को उनका स्टाइल वैसे ही पसंद आता था जैसे भारत में बिग बॉस होस्ट करने वाले सलमान खान का. वैसे, सलमान की लोकप्रियता को देखते हुए सोचा जा सकता है कि अगर भारत में भी चुनाव अमेरिका की तरह ही होते और सलमान खान राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े हो जाते, तो शायद जनता उन्हें भी चुन ही लेती.
भारत में न्यूज चैनलों के हालात देख कर लगता है कि उनका मुकाबला एक दूसरे से ना हो कर सीधे सलमान खान से है. इसलिए वे वही सब कर रहे हैं. वे दर्शकों तक खबरें नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि उनका मनोरंजन कर रहे हैं. वे वही सब कह रहे हैं जो दर्शक सुनना चाह रहे हैं क्योंकि सुनने के लिए दर्शक चैनल पर रुकेगा तभी तो टीआरपी मिलेगी.
तो क्यों ना ये चैनल अपने नाम के आगे से न्यूज, खबर इत्यादि हटा कर खुद को एंटरटेनमेंट हाउस घोषित कर दें. और कुछ नहीं तो इन न्यूज एंकरों को शो शुरू करने से पहले एक डिस्क्लेमर जरूर दे देना चाहिए कि अगले कुछ मिनटों में आप जो देखने जा रहे हैं उसका सच्चाई से कोई लेना देना है, एंकर जो करेगा वह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से ही करेगा. कम से कम ऐसा करने से पत्रकारिता की नाक तो बची रहेगी. क्योंकि इतना तय है कि अगर रियलिटी टीवी फॉर्मेट 20 साल से मजबूती से टिका हुआ है तो ये "रियलिटी न्यूज" फॉर्मेट भी इतनी जल्दी तो टीवी को नहीं छोड़ेगा. जब तक जनता को ये तमाशा देखने में मजा आता रहेगा तब तक एंकर न्यूज स्टूडियो को सर्कस और खुद को रिंग मास्टर के रूप में पेश करते रहेंगे.
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