भारत में अब मुसाफिरों को ट्रेनों की लोकेशन रियल टाइम में मिलेगी. रेलवे ने अपने इंजनों को इसरो के उपग्रह से जोड़ दिया है, इसके चलते अब लोकेशन की सटीक जानकारी मिलेगी.
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रेलयात्रियों के लिए एक अच्छी खबर है कि अब उन्हें ट्रेन की स्थिति की जानकारी आसानी से मिल जाएगी. दरअसल, रेलवे ने अपने इंजन को इसरो के उपग्रह से जोड़ दिया है, जिससे उपग्रहों से मिली जानकारी से ट्रेन के बारे में पता लगाना, उसके आगमन और प्रस्थान को दर्ज होना आसान हो गया है.
रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया, "नए साल में एक नई शुरुआत की गई है. ट्रेन के आवागमन की सूचना प्राप्त करने और कंट्रोल चार्ट में दर्ज करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपग्रह आधारित रियल टाइम ट्रेन इंफॉर्मेशन सिस्टम (आरटीआईएस) से स्वत: उपयोग किया जाने लगा है."
अधिकारी ने बताया कि यह प्रणाली आठ जनवरी को श्रीमाता वैष्णो देवी-कटरा बांद्रा टर्मिनस, नई दिल्ली-पटना, नई दिल्ली-अमृतसर और दिल्ली-जम्मू रूट पर कुछ मेल या एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए अमल में लाई गई. उन्होंने कहा कि नई प्रणाली से रेलवे को अपने नेटवर्क में ट्रेनों के संचालन के लिए अपने कंट्रोल रूप, रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बनाने में मदद मिलेगी.
रेलवे अधिकारी के मुताबिक इंजन में आरटीआईएस (डिवाइस) से इसरो द्वारा विकसित गगन जियो पोजिशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके ट्रेनों की चाल और पोजिशन के बारे में पता लगाया जाता है.. रेलवे के मुताबिक, "सूचना और तर्क के अनुप्रयोग के आधार पर युक्ति ट्रेन के आवागमन (आगमन/प्रस्थान/तय की गई दूरी/अनिर्धारित ठहराव और सेक्शन के बीच की जानकारी) की ताजा जानकारी इसरो के एस-बैंड मोबाइल सैटेलाइट सर्विस (एमएसएस) का उपयोग करके सीआरआईएस डाटा सेंटर में सेंट्रल लोकेशन सर्वर को भेजती है."
सीएलएस में प्रोसेसिंग के बाद इस सूचना को कंट्रोल ऑफिस एप्लिकेशन (सीओए) सिस्टम को भेजा जाता है, जिससे बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के कंट्रोल चार्ट स्वत: अपडेट होता है. अधिकारी ने बताया कि पहले ट्रेन के परिचालन की स्थिति की जानकारी मैनुअली अपडेट की जाती थी.
(दुनिया की सबसे तेज ट्रेनें)
दुनिया की सबसे तेज ट्रेनें
पहली बार कोई ट्रेन 600 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चली है. इस ऐतिहासिक गति को छूने वाली रेल है सेंट्रल जापान रेलवे की मैग्लेव ट्रेन. एक नजर दुनिया की तीव्रतम ट्रेनों पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Yomiuri Shimbun
हवा में तैरती
मैग्लेव का मतलब है - मैग्नेटिक लैविटेशन. यह एक भौतिक सिद्धांत है जिसके अनुसार सुपरकंडक्टर के इस्तेमाल से किसी वस्तु को हवा में अटकाया जा सकता है. इसी पर आधारित यह ट्रेन जब चलती है तो हवा में तैरते रहने के कारण इसके तल और पटरियों के बीच घर्षण नहीं होता और ना ही कोई टूट फूट.
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ट्रेन में प्लेन का मजा
मैग्लेव की सवारी करने वाले इसके अनुभव को हवाई जहाज में उड़ने जैसा बताते हैं. अप्रैल 2015 में सफल टेस्ट राइड से डेवेलपर्स का आत्मविश्वास बढ़ा है. जनता के लिए पहली सार्वजनिक लाइन 2027 में राजधानी टोक्यो और नागोया शहर के बीच शुरु करने की योजना है. इसकी अधिकतम गति 500 किलोमीटर प्रति घंटा होगी.
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एयरपोर्ट तक भी उड़ते हुए
शंघाई की ट्रांसरैपिड फिलहाल दुनिया की सबसे तेज ट्रेन सेवा है. यह भी जापानी ट्रेन की तरह मैग्नेटिक लैविटेशन के सिद्धांत पर ही चलती है और 430 किमी/घंटा की गति तक पहुंचती है. शंघाई शहर के केन्द्र से एयरपोर्ट तक की 30 किलोमीटर की दूरी केवल आठ मिनट में पूरी होती है.
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फ्रांस को नाज है इस पर
पारंपरिक पहिए वाली ट्रेनों में से सबसे तेज चलने वाली ट्रेन है फ्रांस की टीजीवी. साल 2007 में ही इसने अधिकतम 574 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार को छू लिया था. उस समय सबसे तेज गति के इस विश्व रिकॉर्ड को बनाने के लिए खास मोटरों का इतेमाल किया गया. सामान्य तौर पर इसकी गति 320 किमी/घंटा से ज्यादा नहीं रखी जाती.
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बीजिंग से शंघाई तक
टीजीवी की ही तरह चीन की तेज ट्रेन हार्मनी सीआरएच 380ए भी कई मोटराइज्ड ईकाईयों का इस्तेमाल करती है. 2010 में हुए इसके ट्रायल रन में बीजिंग और शंघाई के बीच की दूरी 486 किमी/घंटा की गति से तय हुई थी. जनसाधारण के लिए इसी रूट पर यह ट्रेन अधिकतम 380 किमी/घंटा की रफ्तार से चलती है.
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बिजली सी तेजी जर्मनी में
1988 में जर्मनी की आईसीई ट्रेन ने हनोवर और वुर्त्सबुर्ग के बीच की दूरी 406.9 किमी/घंटा की अधिकतम गति से तय की. आमतौर पर इसकी अधिकतम रफ्तार 250 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है ताकि रखरखाव पर खर्च ज्यादा न पड़े.