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रियो में पर्यावरण के लिए जन सम्मेलन

१९ जून २०१२

रियो दे जनेरो में जलवायु सम्मेलन से पहले आम जनता का शिखर सम्मेलन शुरू हुआ है. कुपुला दोस पोवोस यानि जनता के सम्मेलन में 50 देशों के लोग हिस्सा ले रहे हैं. वे रियो प्लस जी 20 शिखर सम्मेलन की आलोचना कर रहे हैं.

तस्वीर: FAO/Joan Manuel Baliellas

शहर जितना विरोधाभासी है उतना ही रियो में हो रहे दोनों सम्मेलन भी. 15 से 23 जून तक हो रहे जन सम्मेलन में 30,000 लोग भाग ले रहे हैं. इनमें आदिवासी समुदायों, वकील और मनोवैज्ञानिक संगठनों, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वालों के प्रतिनिधि और परमाणु बिजली का विरोध कर रहे संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं. वे स्कूलों, कार्निवाल स्टेडियम के कमरों और तंबुओं में सो रहे हैं तो सरकारी सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधि ब्राजील के जेट सेट शहर के महंगे होटलों में सो रहे हैं.

जरूरी हैं जंगलतस्वीर: Lena Sabine Becker

जर्मनी के हाइनरिष बॉएल फाउंडेशन के डाविड बार्टेल्ट कहते हैं, "ये ट्रेड यूनियनों, खेतिहर मजदूरों, नागरिक आंदोलनों और गैर सरकारी संगठनों का बहुत व्यापक मोर्चा है." सरकारी कदमों पर अपने संशय का इजहार करने नागरिक संगठनों के प्रतिनिधि 50 देशों से रियो पहुंचे हैं. उनका कहना है कि पर्यावरण संकट से बाहर निकलने के लिए आदिवासी समुदायों के अधिकारों का सम्मान जरूरी है.

उद्यम समर्थन के आरोप

गैर सरकारी संगठनों का आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण नीति बाजार के साथ दोस्ती दिखाती है. उद्योग तय करता है कि नियम क्या होंगे. वह पर्यावरण को कारोबार किए जाने लायक माल बना रहा है. सम्मेलन के आयोजक पेद्रो इवो बतिस्ता का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र इसे बढ़ावा दे रहा है क्योंकि वह विकसित देशों को उपभोग और बर्बादी पर आधारित अपने बर्ताव को बदलने से छूट दे रहा है.

जलाए जा रहे हैं जंगलतस्वीर: dapd

ब्राजील खुद भी खराब मिसाल कायम कर रहा है. अमाजोन क्षेत्र में बड़ा पनबिजली संयंत्र, आदिवासी इलाकों में खनन की तेज अनुमति, संदेहास्पद परमाणु नीति और पर्यावरण कानून में ढील मेजबान देश की छवि को धुंधला कर रहे हैं. इवो बतिस्ता का कहना है कि धनी देशों की विश्वसनीयता और संदेहास्पद है. "ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़े पर्यावरण प्रदूषकों के रूप में उन्हें पहला होना चाहिए जो परिवर्तन की पहल करे." उनका कहना है कि बड़ी कंपनियां संकट के सिर्फ आर्थिक हल पर जोर दे रही है, जबकि समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं है.

अंतरराष्ट्रीय उद्योग संगठनों ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया दिखाई है. रियो प्लस जी 20 के दायरे में वे एक गोष्ठी का आयोजन करवा रहे हैं जिसका उद्देश्य उद्योगपतियों के लिए पर्यावरण सम्मत बनने के दस सूत्री सिद्धांत तय करना है. इस गोष्ठी में जर्मनी की फोल्क्सवागेन, बॉश, अमेरिकी अलमुनियम कंपनी अलकोआ और ब्राजील की विमान कंपनी एमब्रेयर जैसी कंपनियों के टॉप मैनेजर और पर्यावरण अधिकारी भाग ले रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय उद्योग संघ के उपनिदेशक कारलोस बुसकेट ने डॉयचे वेले के साथ बातचीत में कहा, "हम समझते हैं कि ग्रीन अर्थव्यवस्था सरकार और नागरिक समाज के सहयोग से ही संभव है."

कुपुला दोस पोवोस का लोगो

पूंजीवाद का विकल्प

ब्राजील में "जनता के सम्मेलन" के आयोजक अपने को पूंजीवाद विरोधी कहते हैं. उन्हें डर है कि बाजार पर आधारित हल खोजने की संयुक्त राष्ट्र की कोशिश का नतीजा उत्पादन का बढ़ते रहना और प्राकृतिक संसाधनों की बिक्री होगा. कुपुला दोस पोवोस ने जो हल सुझाए हैं, उनमें एकजुटता वाली आर्थिक प्रक्रिया शामिल है, जिसमें सर्विस और सामान सहकारिता मुहैया कराए जाएंगे. इसमें साझा तालाब बनाने जैसी सामाजिक परियोजनाएं, जंगलों का पर्यावरण सम्मत प्रबंध और सामाजिक आंदोलनों की भूमिका में वृद्धि शामिल है.

संयुक्त राष्ट्र का पृथ्वी सम्मेलन पर्यावरण संगत विकास के लिए और कड़े नियम बनाने का मौका है. लेकिन बतिस्ता की उम्मीदें सीमित हैं. "ज्यादातर समस्याएं इस वजह से हैं कि सरकारें अपना वादा पूरा नहीं करतीं. और संयुक्त राष्ट्र के पास सरकारों को इसके लिए सजा देने का साधन नहीं है. " फिर भी रियो में जनता के वैकल्पिक सम्मेलन का आयोजन कर रहे कार्यकर्ता पर्यावरण सुरक्षा के लिए जरूरी कदमों की एक सूची तैयार कर रहे हैं जिसे वे रियो प्लस 20 के भागीदारों को देंगे. संभव है यह दोनों सम्मेलनों के बीच पुल साबित हो.

रिपोर्ट नादिया पोंटेस/मझा

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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