चेहरे पर मुस्कराहट, हाथ में मोबाइल फोन और तेज चाल. जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की जोरदार शख्सियत सबका ध्यान खींचती है. मैर्केल आज अपना 60वां जन्मदिन मना रही हैं, पर रिटायर होने की अभी कोई तैयारी नहीं है.
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अंगेला मैर्केल आज दुनिया की सबसे ताकतवर हस्तियों में गिनी जाती हैं. सफलता की ऊंचाइयों को मैर्केल ने धीरे धीरे छुआ है. पहले उन्होंने अपने देश में लोगों का दिल जीता, फिर यूरोप में और फिर दुनिया भर में लोकप्रिय हुईं. जर्मनी में किसी महिला के लिए चांसलर बनना आसान नहीं था और वह भी पूर्वी जर्मनी से आने वाली राजनीतिज्ञ के लिए. इसलिए कुछ साल पहले तक कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता था.
करीब नौ साल पहले जब मैर्केल को पहली बार चांसलर पद के लिए चुना गया तो लोगों ने कयास लगाए कि वे ज्यादा वक्त टिक नहीं पाएंगी. मीडिया में लगातार यह चर्चा होती रही कि क्या पूर्वी जर्मनी की एक महिला वाकई चांसलर पद संभाल पाएगी. लेकिन लगातार तीसरी बार चुने जा कर मैर्केल ने अपने सभी आलोचकों के मुंह पर ताले लगा दिए. जर्मनी को तो जैसे मैर्केल की आदत ही पड़ गयी है. लोगों का उनमें इतना अटूट भरोसा है कि वे आगे भी उन्हीं को चांसलर के रूप में देखना चाहते हैं.
सबसे ताकतवर महिला
आज मैर्केल का रुतबा कुछ ऐसा है कि अमेरिका की 'फोर्ब्स' पत्रिका ने इस साल लगातार चौथी बार उन्हें 'दुनिया की सबसे ताकतवर महिला' का दर्जा दिया है. न्यूयॉर्क की 'टाइम' मैगजीन ने भी छठी बार उन्हें दुनिया के सौ सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में रखा है. जर्मनी की बात करें तो समाचार पत्रिका 'डेय श्पीगेल' के अनुसार वे देश की सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं. पत्रिका के अनुसार सिर्फ मैर्केल की पार्टी के लोग ही नहीं, बल्कि जनता भी उन्हें आदर्श के रूप में देखती है. बूढें हों या नौजवान, वे सबकी मनपसंद बनी हुई हैं. आखिर उनमें ऐसा क्या है जो उन्हें लोगों का चहेता बना देता है?
शिखर की ओर अंगेला मैर्केल
जर्मन की चांसलर अंगेला मैर्केल की तस्वीरें मजाक का पात्र बनती रही हैं, पर मैर्केल के रुतबे पर इनका कोई असर नहीं पड़ा है.
तस्वीर: Bjorn Sigurdson/AFP/Getty Images
नन्हीं अंगेला
किसी ने नहीं सोचा था कि ब्रांडेनबुर्ग के एक छोटे से कस्बे में पैदा हुई अंगेला डोरोथेया कासनर जर्मनी की पहली महिला चांसलर बनेगी. पिता पादरी थे और मां घर पर अंगेला और उनके दो छोटे भाई बहनों की देखभाल करती थीं.
तस्वीर: imago
उस जमाने में..
मैर्केल साम्यवादी जीडीआर में पली बढ़ीं. स्कूल में अव्वल रहने वाली अंगेला के पसंदीदा विषय गणित और रूसी भाषा रहे. स्कूल पास करने के बाद उन्होंने भौतिक विज्ञान में शिक्षा हासिल की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोल से सीख
जर्मनी के पूर्व चांसलर हेल्मुट कोल को मैर्केल का गॉडफादर माना जाता है. वही मैर्केल को जर्मनी की केंद्रीय राजनीति में ले कर आए और एकीकरण के बाद अपनी सरकार में मंत्री बनाया.
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सफलता की सीढ़ी
1990 में मैर्केल पहली बार सांसद बनीं. हेल्मुट कोल ने उन्हें महिला और बाल कल्याण मंत्री बनाया. हालांकि तब तक उनके पास बहुत ज्यादा राजनीतिक अनुभव नहीं था. बाद में वे पर्यावरण मंत्री भी बनीं.
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सीडीयू की टर्मिनेटर
1998 में सीडीयू पार्टी के सरकार में नहीं रहने के बाद वे पार्टी महासचिव बनीं. चार साल बाद पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला. 2005 में उनके नेतृत्व में सीडीयू फिर से सत्ता में आईं और वे पहली महिला चांसलर बनीं.
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आंधियों से टक्कर
मैर्केल को लगातार आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. पूर्वी जर्मनी की एक महिला चांसलर पद को बखूबी संभाल सकती है, इस बात पर शुरुआत में कम ही लोग भरोसा कर पाए.
तस्वीर: Reuters
यह मुस्कराहट..
जहां दुनिया के अधिकतर सरकार प्रमुख पुरुष हैं, वहां मैर्केल ऐसी महिला हैं जो इन सब को पछाड़ती हुई नजर आती हैं. अपने आत्मविश्वास के चलते वे दुनिया की सबसे ताकतवर महिला कहलाती हैं.
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छुट्टियां और आराम
मैर्केल हर साल गर्मियों में छुट्टियों पर जाना पसंद करती हैं. अपने पति के साथ वे आम तौर पर इटली के इशिया द्वीप जाती हैं जहां वे स्विमिंग करना पसंद करती हैं. उन्हें स्कीइंग करना भी पसंद है.
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सुर्खियों में
सिर्फ राजनीति के ही कारण मैर्केल सुर्खियां नहीं बटोरती हैं. एक ऑपेरा सुनने मैर्केल जब ओस्लो पहुंचीं तो उनकी इस ड्रेस ने खूब विवाद खड़ा किया.
तस्वीर: Bjorn Sigurdson/AFP/Getty Images
फुटबॉल की शौकीन
ड्रेसिंग रूम में जा कर फुटबॉल सितारों से मिलना, उनके गले मिलना, उनके साथ तस्वीर खिंचवाना हर लड़की का सपना होता है. अंगेला मैर्केल शायद जर्मनी की वह सबसे भाग्यशाली 'लड़की' हैं.
तस्वीर: Reuters
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अधिकतर लोग मानते हैं कि मैर्केल जमीन से जुड़ीं इंसान हैं, इतना सब हासिल करने के बाद भी उनमें जरा भी अहंकार नहीं है और उनकी यही खूबी लोगों का दिल जीत लेती है. इसकी एक बड़ी मिसाल यह है कि मैर्केल आज भी बर्लिन में अपने पति के साथ अपने पुराने अपार्टमेंट में ही रहती हैं. चांसलर के तौर पर वे आलीशान सरकारी बंगले में रह सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. यहां तक कि राशन खरीदने भी वे खुद ही सुपरमार्केट जाना पसंद करती हैं.
मैर्केल जैसी हैं, वैसी ही दिखती भी हैं. किसी तरह का कोई नाटक, कोई दिखावा नहीं करतीं. थोड़ी नर्म, थोड़ी कठोर. उन्हें अपने काम से मतलब है, इसलिए ज्यादातर वे भावुक नहीं होतीं. लेकिन अगर जर्मनी का फुटबॉल का मैच चल रहा हो, तो बात अलग है. वहां वे खुल कर अपनी खुशी जाहिर करती हैं.
संयुक्त राष्ट्र से जुड़ेंगी
इसके अलावा उनकी वेशभूषा के भी लोग कायल हैं. वक्त के साथ उन्होंने अपना पहनावा और बालों का स्टाइल बदला है. अधिकतर उन्हें काली पतलून और किसी ना किसी रंग के कोट के साथ देखा जाता है, जिनमें वे एक मजबूत शख्सियत के रूप में उभरती हैं. पर सिर्फ चाल ढाल ही नहीं, उनका काम भी लोगों को पसंद आता रहा है.
तेज तर्रार जर्मन चांसलर
दुनिया भर के कार्टूनिस्टों ने यूरो संकट और अंगेला मैर्केल को कार्टूनों में उतारा है. अधिकतर में एक ही मुद्दा है, पैसा.. देखें तस्वीरों में
तस्वीर: Christiane Pfohlmann
जर्मनी की दुविधा
भारत में भी यूरो संकट की चर्चा है. एशिया के आर्थिक विकास पर यूरोपीय अर्थव्यवस्था के गिरने से काफी असर हुआ. यूरोपीय संघ में सिर्फ जर्मनी ही खुद को बचा पाया. अंगेला मैर्केल किस किस को लाइफगार्ड से बचाएंगी? कार्टूनः टीजीवी मेनन, कक्कानाड केरल, भारत
तस्वीर: Kakkanad Kerala
रिंग मास्टर
सभी उनके कमांड पर चलते हैं. ग्रीस और स्पेन अंगेला मैर्केल की अंगुलियों पर नाच रहे हैं. इटली के बख्तरबंद ढीले हो चुके हैं और बहुत आशंका है कि पुर्तगाल भी संकट में पड़ जाए. दक्षिणी यूरोप के देशों का मानना है कि यूरो बचाने के लिए बचत कराने वाली अंगेला मैर्केल ही हैं. कार्टूनः नोनाडा मैगजीन, स्पेन
तस्वीर: Sanchis Aguado
एथेंस में दोस्त नहीं
ग्रीस में मैर्केल को बिलकुल पसंद नहीं किया जाता. वहां की जनता मैर्केल को देश की खराब अर्थव्यवस्था और गरीबी का जिम्मेदार ठहराती है. चांसलर के जेलर के तौर पर बना यह कार्टून बहुत ही सौम्य है. अक्सर उन्हें खून पीने वाले वैंपायर, या हिटलर की मूंछ के साथ दिखाया जाता है. कार्टूनः टू पैरोन, एथेंस
तस्वीर: Kostas Koufogiorgos
कयामत के चार सवार
यूरोपीय सेंट्रल बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी और मैर्केल यूरोप के गुल्लकों पर सवार. कार्टूनः रोड्रिगो डे माटोस, डेली एक्सप्रेसो लिस्बन, पुर्तगाल
तस्वीर: Rodrigo de Matos
तालिबान की चाल में
अफगानिस्तान में कई लोगों का मानना है कि मैर्केल बहुत ही भोली हैं. चांसलर इलाके की शांति की उम्मीद करती हैं और राष्ट्रपति करजई की अनुमति से तालिबान से हथियार खरीदती हैं. लेकिन तालिबान नई सप्लाई पाकिस्तान से लेता रहता है. कार्टूनः शाहिद अतीकुल्लाह, काबुल, अफगानिस्तान
तस्वीर: Shahid Atiqullah
यस, शी कैन
अमेरिका में माना जाता है कि मैर्केल ऐसी चांसलर हैं जिन्होंने अपने देश को सफलता की राह पर बनाए रखा है. अमेरिकी कार्टूनिस्ट और राष्ट्रपति ओबामा को आश्चर्य है कि उनका देश कैसे विकास कर रहा है जबकि पूरा यूरोप आर्थिक संकट से जूझ रहा है. कार्टूनः बॉब एंगलहार्ट, द हार्टफर्ड कुरौं, अमेरिका
कूटनीतिक कला
अंतरराष्ट्रीय मंच पर नेता साफ साफ नहीं कर सकते कि वह दूसरे राष्ट्राध्यक्षों के बारे में नहीं सोचते. कई रूसी अपने राष्ट्रपति पुतिन को मैर्केल की ही तरह का मानते हैं. हालांकि मैर्केल की पुतिन राज में कोई भूमिका नहीं. कार्टूनः फेसबुक, रूस
तस्वीर: Denis Lopatin
मैर्केल नहीं, कारें
अरब देश पिछले दो साल से क्रांति और गृह युद्ध झेल रहे हैं. जर्मन चांसलर का उसमें कोई योगदान नहीं. लेकिन कुछ पुरुषों का ये मानना जरूर है कि कोई औरत सरकार चलाए ही क्यों. वहां मैर्केल की बजाए यहां की कारें या मेड इन जर्मनी उत्पाद देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. कार्टूनः फेसबुक, मिस्र
तस्वीर: DW/JF Andeel
जरूरी चुनाव
उनका गंभीर और समझदार व्यवहार मतदाता काफी पसंद करते हैं. लोग यूरो संकट, ड्रोन स्कैंडल या एनएसए जासूसी स्कैंडल के लिए उनकी पार्टी को तो जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन मैर्केल को नहीं. वह प्रतिद्वंद्वी श्टाइनब्रुक के लिए बड़ी चुनौती हैं. कार्टूनः मेन पोस्ट, जर्मनी
तस्वीर: Christiane Pfohlmann
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आर्थिक मंदी के दौर में लोगों को मैर्केल का सहारा रहा. मैर्केल का कहना था कि मंदी के बाद जर्मनी के हालात पहले से बुरे नहीं, पहले से बेहतर होने चाहिए. और उन्होंने ऐसा कर के भी दिखाया. आर्थिक रूप से जर्मनी यूरोप का सबसे स्थिर देश है. इसके बाद जब यूरोप में उनका दबदबा बढ़ने लगा, तब उन्होंने संदेश दिया कि वे सिर्फ जर्मनी ही नहीं, पूरे यूरोप की अर्थव्यवस्था को बढ़ते हुए देखना चाहती हैं. हालांकि ग्रीस संकट के बीच वे आलोचनाओं के बीच भी घिरीं. इसके अलावा यूक्रेन का संकट और एनएसए कांड उनके सबसे बड़े सरदर्द बने हुए हैं.
इस बीच बर्लिन में ऐसी खबरें हैं कि मैर्केल नई नौकरी की तलाश में हैं. माना जा रहा है कि 2017 में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही वे संयुक्त राष्ट्र से जुड़ना चाहती हैं. संयुक्त राष्ट्र भी अपने अगले महासचिव के रूप में एक यूरोपीय ही चाहता है. ऐसे में मैर्केल एक अच्छा विकल्प हैं. लेकिन इस बारे में अभी तक कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है. अपने जीवन के सातवें दशक में मैर्केल क्या क्या करना चाहती हैं, इस बारे में वे चुप्पी साधना ही बेहतर मानती हैं. पर इतना तय है कि वे आगे भी दुनिया की सबसे ताकतवर हस्तियों में शुमार रहेंगी और साथ ही फुटबॉल का मजा लेना भी नहीं छोड़ेंगी.
रिपोर्ट: काय अलेक्जांडर शॉल्त्स/आईबी
संपादन: महेश झा
आडेनावर से मैर्केलः जर्मनी के चांसलर
जर्मनी में 1949 से अब तक सात चांसलर हुए हैं. इस समय अंगेला मैर्केल चांसलर हैं. कौन थे उनके पहले के चांसलर, देखिए तस्वीरों में...
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोनराड आडेनावर (सीडीयू), 1949-1963
कोनराड आडेनावर जर्मनी के पहले चांसलर थे. उनकी विदेश नीति पश्चिम की ओर लक्षित थी और शासन शैली निरंकुश मानी जाती है. वे राइनलैंड के थे और उन्होंने बॉन को जर्मनी की राजधानी बनाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन वे इस इलाके की कार्निवाल की परंपरा से जी नहीं लगा पाए.
तस्वीर: picture alliance/Kurt Rohwedder
लुडविष एरहार्ड (सीडीयू), 1963-1966
1963 में सीडीयू ने 87 साल के आडेनावर पर हटने का दबाव डाला और उनकी जगह लुडविष एरहार्ड को चांसलर बनाया गया. एरहार्ड अर्थव्यवस्था मंत्री के तौर पर मशहूर हुए. उन्होंने सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था की वकालत की और पश्चिम जर्मनी के आर्थिक चमत्कार के जनक कहलाए.
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कुर्ट गेयॉर्ग कीसिंगर (सीडीयू), 1966-1969
जर्मनी का पहला सीडीयू एसपीडी महागठबंधन कीसिंगर के काल में बना. इस गठबंधन ने ठहरी हुई अर्थव्यवस्था को एक बार फिर गति दी. इसी सरकार ने आपातकाल में विशेषाधिकार का कानून भी पारित किया. इसके विरोध में युवाओं ने प्रदर्शन किए. कीसिंगर नाजी अतीत के कारण विवादों में थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
विली ब्रांट (एसपीडी), 1969-1974
सामाजिक विद्रोह के कारण सरकार में बदलाव हुआ. विली ब्रांट जर्मनी के पहले सोशल डेमोक्रैटिक चांसलर बने. वारसा में नाजी काल में मारे गए यहूदियों के स्मारक पर घुटने टेक कर उन्होंने मेलमिलाप का नया संकेत दिया. 1971 में उन्हें इसके लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हेल्मुट श्मिट (एसपीडी), 1974-1982
ब्रांट के इस्तीफे के बाद हेल्मुट श्मिट अगले चांसलर बने. तेल संकट, मुद्रा स्फीति और आर्थिक परेशानियां उनकी सबसे बड़ी चुनौतियां थी. श्मिट ने इनसे निबटने के लिए कड़े कदम उठाए. उग्र वामपंथी रेड आर्मी फ्रैक्शन के खिलाफ उन्होंने कड़ी कार्रवाई की. वे संसद में विश्वास मत हार कर पद गंवा बैठे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हेलमुट कोल (सीडीयू), 1982-1998
कोल रिकॉर्ड 16 साल तक चांसलर के पद पर रहे. उन्हें लंबी पारी वाला लेकिन सुधार न करने वाला नेता माना जाता था. लेकिन जर्मनी का एकीकरण और पूर्व जीडीआर का विकास उनकी ऐतिहासिक उपलब्धियां हैं. उन्होंने सिर्फ जर्मन एकता का ही नहीं, यूरोपीय एकता का भी समर्थन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्रोएडर (एसपीडी), 1998-2005
कोल के बाद सत्ता परिवर्तन का माहौल बन गया था. श्रोएडर के शासन में पहली रेड ग्रीन गठबंधन सरकार बनी. उन्हीं के समय में नाटो की सेना पहली बार अफगानिस्तान गई. सामाजिक कल्याण प्रणाली को बदला गया. एजेंडा 2010 नाम वाले इन सुधारों का जर्मनी में काफी विरोध हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अंगेला मैर्केल (सीडीयू), 2005 से अब तक
जर्मनी की पहली महिला चांसलर अंगेला मैर्केल बनी. वे व्यावहारिक शासन के लिए जानी जाती हैं. फुकुशिमा में परमाणु दुर्घटना के बाद मैर्केल ने घोषणा की कि जर्मनी परमाणु बिजली बनाना बंद कर देगा, जबकि वह पहले इसके खिलाफ थीं.