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रुपया रिकॉर्ड खाई में

६ अगस्त २०१३

भारत में विदेशी पूंजी के पलायन के डर से रुपया फिर से रिकॉर्ड निचले स्तर पर गिर गया है. शेयर बाजार में आई तेज गिरावट के बाद वहां दर्ज कंपनियों की कुल संपत्ति ट्रिलियन डॉलर के नीचे आ गई.

तस्वीर: Fotolia/thomasp24

बेहतर होती अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कारण विदेशी पूंजी के वापस अमेरिका जाने को रुपये की गिरावट का कारण माना जा रहा है. इस साल सबसे खराब प्रदर्शन कर रही एशिया की मुख्य मुद्राओं में शामिल रुपया सुबह के कारोबार में अपने अस्तित्व के सबसे निचले दर प्रति डॉलर 61.51 रुपये पर पहुंच गया. इससे पहले उसका सबसे निचला स्तर 8 जुलाई को 61.21 रुपया था. आज की गिरावट के बाद 2013 में रुपये के मूल्य में 12 प्रतिशत की कमी आई है.

भारतीय शेयरों के दाम में भी गिरावट आई है. शेयरों की कीमत 1.03 फीसदी गिरी और सूचकांक 18,983 पर आ गया. एंजेल ब्रोकिंग के एसोसिएट डाइरेक्टर नवीन माथुर का कहना है, "रुपया भाग रही ट्रेन पर सवार है और किसी को पता नहीं कि वह कहां जाकर रुकेगी. देश के लिए यह अच्छा नहीं दिख रहा है."

शेयर बाजार लुढ़कातस्वीर: AP

कारोबारियों का कहना है कि पिछले महीनों में रुपये को बचाने के लिए बार बार हस्तक्षेप करने वाला रिजर्व बैंक मंगलवार को उस समय बाजार में नहीं था जब रुपये ने गोता लगाया. विश्लेषकों का कहना है कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के स्वस्थ होने के बीच अमेरिकी प्रोत्साहनों के घटने की अटकलें तेज हो रही हैं और डॉलर की मांग बढ़ गई है. धीमे घरेलू विकास, कमजोर निर्यात, विदेशी पूंजी का बढ़ता पलायन और भारत के भारी चालू खाता घाटे ने रुपये की कमर तोड़ दी है.

रुपये के अवमूल्यन के कारण खनिज तेल से लेकर रसायन और दाल तक हर उस चीज की कीमत बढ़ गई है जो भारत आयात करता है. विकास दर एक दशक में 5 फीसदी के सबसे निचले स्तर पर है और विदेश व्यापार का घाटा मार्च में खत्म हुए साल में मुख्य रूप से तेल और सोने की खरीद के कारण रिकॉर्ड स्तर पर था. इस घाटे को पूरा करने के लिए भारत अपने निर्यात को बढ़ाने में नाकामयाब रहा है.

आयात से बढ़ता बोझतस्वीर: Noah Seelam/AFP/Getty Images

रुपये का अवमूल्यन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की विवादों में घिरी सरकार के लिए एक और धक्का है जो 2014 में होने वाले चुनावों से पहले अर्थव्यवस्था को बेहतर हालत में देखना चाहती है. सोमवार को आए आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय उत्पाद में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी देने वाला सेवा क्षेत्र दो साल में पहली बार सिकुड़ा है, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था के जल्दी सुधरने की संभावना और कम हो गई है. सरकार से किसी सकारात्मक खबर के अभाव में बाजार का माहौल भी कमजोर है.

रुपये के लगातार कमजोर होने के कारण इन अटकलों को हवा मिल रही है कि भारत फिर से 1991 जैसे संकट की ओर बढ़ रहा है, जिसकी वजह से भारत को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेना पड़ा था. वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने चेतावनी दी है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत छोटा है. रिजर्व बैंक ने आर्थिक विकास की जगह रुपये की स्थिरता की प्राथमिकता देते हुए ब्याज दर स्थिर रखी है.

एमजे/एनआर (एएफपी)

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