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रूस और ईरान क्यों उत्तर कोरिया के करीब जा रहे हैं?

१२ मई २०१९

लंबे समय से दुनिया में अलग थलग पड़े उत्तर कोरिया के साथ अमेरिका के रिश्ते सुधरेंगे या नहीं, यह तो पता नहीं है लेकिन रूस और ईरान जरूर उत्तर कोरिया से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं. आखिर क्यों?

Nordkorea Pjöngjang Gemälde Führer Kim Il Sung and Kim Jong Il
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Ng Han Guan

उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने जब रूसी शहर व्लादिवोस्तोक का दौरा किया तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उनके सम्मान में एक शानदार भोज दिया. यहां नजारा फरवरी में किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की वियतनाम में हुई मुलाकात से बिल्कुल अलग था जहां दोनों नेता अहम वार्ताओं को छोड़ कर चल दिए थे. व्लादिवोस्तोक में किम ने ट्रंप के रवैये की आलोचना की. वहीं रूस के साथ संबंधों को उन्होंने "रणनीतिक और पारंपरिक" बताया.

रूस अकेला देश नहीं है जो उत्तर कोरिया के करीब आने की कोशिश कर रहा है. पिछले दिनों ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने कहा कि वह जल्द ही उत्तर कोरिया का दौरा करेंगे. हालांकि उन्होंने अपनी इस यात्रा के मकसद के बारे में कुछ नहीं बताया लेकिन इतना साफ है कि ईरान भी उत्तर कोरिया के साथ रिश्तों को रणनीतिक रूप से अहम मान रहा है.

ट्रंप प्रशासन कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने के इरादे से उत्तर कोरियाई नेता के साथ बात कर रहा है. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किम के शासन को एक तरह की वैधता मिली है. ऐसे में रूस और ईरान भी उत्तर कोरिया के करीब जा रहे हैं.

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ईरानी कनेक्शन

उत्तर कोरिया के साथ ईरान के संबंधों की शुरुआत 1980 के दशक के शुरुआती दिनों में हुई. इराक-ईरान युद्ध के दौरान उत्तर कोरिया ने ईरान को हथियारों की आपूर्ति की तो दोनों देश और करीब आए.

दोनों देशों के रिश्तों को 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद और विस्तार मिला. जब उत्तर कोरिया को सस्ते दामों पर मिलने वाली गैस की सप्लाई बंद हो गई तो उसने ईरान की तरफ देखा. ईरान तेल संसाधनों से मालामाल उन चंद देशों में रहा है जिसने हमेशा उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते बनाए रखे.

ऐतिहासिक रूप से उत्तर कोरिया और ईरान, दोनों को एक दूसरे की जरूरत रही है. ईरानी विदेश मंत्री ने भी ऐसे समय में उत्तर कोरिया का दौरा करने की घोषणा की जब उनका देश अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण नाजुक दौर से गुजर रहा है. लंबे समय तक तेल को ईरान की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा समझा जाता रहा है. लेकिन अमेरिका फिर से ईरान पर शिकंजा कस रहा है. उसने हाल में ईरानी तेल की ब्रिकी पर लगे प्रतिबंध को लेकर दी गई रियायत खत्म कर दी है.

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उत्तर कोरिया भी अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों को गच्चा देना चाहता है, जिनके तहत उत्तर कोरिया सिर्फ सीमित मात्रा में अन्य देशों से तेल ले सकता है. ऐसे में, अमेरिकी वित्त विभाग की पूर्व सलाहकार एलिजाबेथ रोजेनबर्ग अपने एक लेख में कहती हैं कि ईरान ऐसे देशों को अपना तेल निर्यात बढ़ाना चाहता है जो अमेरिकी प्रतिबंधों की ज्यादा परवाह नहीं करते.

चूंकि ईरान और उत्तर कोरिया के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट करने की राष्ट्रपति ट्रंप की "अधिकतम दबाव" वाली नीति कारगर साबित नहीं हो रही है, तो ऐसे में मौजूदा हालात उत्तर कोरिया और ईरान को सहयोग के नए अवसर देते हैं.

रूस से नजदीकी

दूसरी तरफ, रूस पूर्वोत्तर एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहता है. सोवियत संघ शीत युद्ध के दौरान उत्तर कोरिया के सबसे बड़े समर्थकों में से एक था. सोवियत संघ ने चीन के साथ मिल कर 1950 से तक 1953 तक चले कोरियाई युद्ध में उत्तर कोरिया का साथ दिया था. सोवियत संघ ने 1950 के दशक में उत्तर कोरियाई वैज्ञानिकों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने के लिए बुनियादी जानकारी मुहैया कराई.

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 2001 में उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन का क्रेमलिन में स्वागत किया.तस्वीर: picture-alliance/AP Images/A. Zemlianichenko

रूस बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में उत्तर कोरियाई सरकार को लगातार सहायता और हथियार देता रहा, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा में लगातार उसका प्रभाव बना रहा. लेकिन जैसे ही 1991 में सोवियत संघ खत्म हुआ, उसके साथ ही उत्तर कोरिया के साथ उसके संबंध भी ध्वस्त हो गए. जब रूस में व्लादिमीर पुतिन ने सत्ता संभाली तो उन्होंने ऐतिहासिक संपर्कों की डोर पकड़ कर उत्तर कोरिया से रिश्तों को फिर परवान चढ़ाने की कोशिश की.

वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक 38 नॉर्थ में वरिष्ठ रिसर्चर स्टीफन ब्लैंक कहते हैं कि उत्तर कोरिया के साथ संबंध मजबूत कर रूस का फायदा होगा. वह कहते हैं कि इस वक्त उत्तर कोरिया रूस का समर्थन चाहता है ताकि वह अपनी राजनयिक परिस्थितियों से निपट सके. दूसरी तरफ रूस भी उत्तर कोरिया से कई रियायतें चाहता है ताकि वह अपनी कई रुकी हुई परियोजनाओं को दोबारा शुरू कर सके और कोरियाई प्रायद्वीप को लेकर होने वाली वार्ताओं में अपनी भूमिका को सुनिश्चित कर सके.

रिपोर्ट: लेविस सैंडर्स/एके

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