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रूस और चीन ने सीरिया प्रस्ताव को वीटो किया

५ अक्टूबर २०११

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सीरिया के खिलाफ प्रस्ताव को रूस और चीन ने वीटो कर दिया है. इस वीटो के बाद सुरक्षा परिषद में पश्चिमी और पूर्वी राजनयिकों के बीच गहरे मतभेद सामने आ गए.

जर्मन राजदूत पेटर विटिषतस्वीर: picture-alliance/dpa

सीरिया की सरकार कई महीनों से विपक्षी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बर्बर हिंसा का इस्तेमाल कर रही है, जो राष्ट्रपति बशर अल असद के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. मानवाधिकार ग्रुपों के अनुसार अब तक सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 2700 लोग मारे गए हैं. मीडिया पर सीरिया सरकार के प्रतिबंधों के कारण इन सूचनाओं की स्वतंत्र रूप से पुष्टि संभव नहीं है. एक महीना पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1900 लोगों के मरने की बात कही थी.

वीटो अधिकारों से लैस रूस सीरिया के खिलाफ सख्त प्रस्ताव पास करने का विरोध कर रहा है. सीरिया में उसका एक महत्वपूर्ण सैनिक अड्डा है. इसके अलावा वह और चीन सीरिया को हथियार बेचता है और उससे तेल खरीदता है. इन देशों की वीटो लगाने की धमकी के कारण गर्मियों के आरंभ में भी प्रस्ताव का मसौदा विफल हो गया था.

उस मसौदे को अब बहुत नरम बना दिया है. हालांकि नए मसौदे में भी सरकारी हिंसा की निंदा की गई है, लेकिन प्रतिबंधों को शामिल नहीं किया गया है. प्रतिबंधों की धमकी को हटाकर उसके स्थान पर लक्ष्यबद्ध कदमों की बात कही गई है.

सुरक्षा परिषद की बैठकतस्वीर: picture alliance/Photoshot

संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के राजदूत जेराद अरो ने मतदान के बाद कहा, "वीटो हमें रोक नहीं सकता. हम दमितों को आवाज देने का प्रयास जारी रखेंगे." उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति असद ने सारी वैधता खो दी है और कोई वीटो स्वयं अपनी जनता पर गोली चलाने का सर्टिफिकेट नहीं हो सकता. ब्रिटिश राजदूत मार्क लायल ग्रांट ने वीटो पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया और कहा, "स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है, अब तक 3000 लोग मरे हैं. यह मानवता के खिलाफ अपराध और सुधारों का अभाव है. यदि सरकार आधारभूत मानवाधिकार नहीं देगी तो फिर संवाद की बात कैसे की जा सकती है."

रूस के राजदूत विताली चुरकिन ने मसौदे की आलोचना करते हुए उसे टकराव की नीति की उपज बताते हुए कहा कि इससे संवाद में बाधा पड़ेगी. "हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते कि प्रतिबंधों की धमकी दी जा रही है." चुरकिन ने कहा कि सीरिया का विकास अकेले राष्ट्रपति के हाथों में नहीं है. "यदि मिस्टर असद के कानून सही नहीं हैं तो हमें उस पर बात करनी चाहिए. प्रतिबंध गलत रास्ता हैं." चीन के राजदूत ली बाओदोंग ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय को रचनात्मक मदद देनी चाहिए लेकिन घरेलू मामलों को बर्दाश्त करना चाहिए."

अमेरिकी राजदूत सूजन राइस ने भी कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया और कहा, "हम क्षुब्ध हैं कि परिषद असद की बर्बरता का जवाब देने में विफल रहा है." उन्होंने कहा कि अब सीरिया की जनता को पता है कि कौन से देश उनके साथ हैं."आज जिन्होंने प्रस्ताव का विरोध किया है और बर्बर तानाशाह को बचाया है उन्हें सीरिया की जनता को जवाब देना होगा. हम तब तक चैन की सांस नहीं लेंगे जबतक परिषद अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता."

ग्रांट और राइसतस्वीर: AP

जर्मनी ने बीच बचाव का प्रयास किया लेकिन उसने भी दो टूक शब्दों का प्रयोग किया. जर्मन राजदूत पेटर विटिष ने कहा कि सुरक्षा परिषद शांति और सुरक्षा को बचाने की यूएन चार्टर द्वारा प्रदत्त अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में विफल रहा है."हमने बहुत रियायतें दीं. हमें बहुत अफसोस है कि कुछ सदस्य सहमति के लिए तैयार नहीं थे."

सीरिया के राजदूत बशर जफारी ने विपक्ष को हथियारबंद आतंकी गिरोह की संज्ञा दी और कहा कि उन्हें पश्चिम का समर्थन मिल रहा है. "जो देश मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मेरे देश में घुसना चाहते हैं, वे आतंकवादियों को नजरअंदाज कर रहे हैं. वे आतंकी गुटों का समर्थन कर रहे हैं."

सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के प्रबल दावेदार देश भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका तटस्थ रहे. लेबनान ने भी मतदान में हिस्सा नहीं लिया. विपक्षी प्रदर्शनकारियों पर सैन्य कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा परिषद ने अब तक सिर्फ अध्यक्ष का बयान दिया है. अगस्त के शुरू में यह बयान जारी किया गया था, लेकिन उसमें कोई जिम्मेदारी नहीं होती है.

रिपोर्ट: डीपीए/महेश झा

संपादन: ईशा भाटिया

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