रूस की नई नौसैनिक अवधारणा का मकसद उसकी सैनिक ताकत का प्रदर्शन है. डॉयचे वेले के यूरी रेचेटो को संदेह है कि यह महात्वाकांक्षी परियोजना कभी लागू हो भी सकेगी.
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मैं जब पांच साल का था तो मैंने अपनी मां से विनती की थी, "जब सैनिक आएं तो मुझे टेबल के नीचे छुपा देना." वो 70 का दशक था, मैं सोवियत संघ में रहता था, शीत युद्ध का समय था. किसी दिन सैनिकों द्वारा पश्चिम से देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती किए जाने का डर पश्चिम के हमले के डर से ज्यादा था. हो सकता है कि इसकी वजह मेरी शांतिवादी परवरिश रही हो, लेकिन इस डर में मैं अकेला नहीं था. मैं किसी को नहीं जानता था जो सेना में भर्ती होना चाहता हो. मैं किसी को नहीं जानता था जिसे सेना पर नाज हो.
हर रविवार को सरकारी टेलिविजन में दिखाए जाने वाले सेना समर्थक प्रोग्राम के बावजूद, स्कूल में सैन्य शिक्षा पर अनिवार्य कोर्स के बावजूद, हर साल होने वाले स्कूली सैनिक परेड के बावजूद. 70 के दशक का प्रोपेगैंडा वह नहीं कर पाया जो आज के प्रोपेगैंडा ने कर दिखाया है. रूस के लोगों को अपनी सेना से प्यार हो गया है. रूसी जनमत सर्वे संस्थान के अनुसार 86 प्रतिशत लोगों को भरोसा है कि उनकी सेना जरूरत पड़ने पर उनकी रक्षा कर सकती है. 40 प्रतिशत सम्मान का अनुभव करते हैं, 59 प्रतिशत गर्व और उम्मीद का. देश का बड़ा बहुमत सेना को सम्मानजनक संस्थान मानता है जो युवा लोगों को विकास का मौका देता है.
शायद इन 86 प्रतिशत लोगों को रविवार को खुशी हुई होगी जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने नौसेना की नई सैन्य अवधारणा पेश की. संदेश यह है कि रूस शांतिप्रिय देश है, वह किसी को धमकाता नहीं, वह किसी पर हमला नहीं करता. लेकिन वह हमेशा तैयार रहता है और कोई यदि उस पर हमला करे तो वह छोड़ेगा नहीं. और उसके बाद सटीक नेविगेशन और तेज रॉकेटों से लैस तेजी से घूमने वाले जहाज. यह सब तर्कसंगत है और नई सैनिक अवधारणा के अनुकूल है. पिछले साल सेना प्रमुख ने कहा था कि 2020 तक रूस की सेना को 11,00 नई बख्तरबंद गाड़ियां मिलेंगी, 30 जहाज और पनडुब्बी तथा 14,000 गाड़ियां. लेकिन पश्चिमी प्रतिबंध और बढ़ता आर्थिक संकट इस योजना को खतरे में डाल सकते हैं.
इसके अलावा सरकारी ऑर्डरों के लिए संसाधनों की लूट को रोकना पड़ा. व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में सरकारी धन की लूट को आतंकवाद के समर्थन के बराबर घोषित करने की धमकी दी और साथ ही शिकायत की थी कि हथियारों की कीमत उनके निर्माण के दौरान ग्यारह गुना बढ़ जाती है. जब यह समस्या समाप्त हो जाएगी और रूस की योजनाओं के लिए धन की गारंटी होगी, रूस के लोग अपनी सेना पर नाज कर सकेंगे. तब उन्हें इस बात का डर नहीं रहेगा कि सेना द्वारा फेंका गया रॉकेट छोड़ते ही फट तो नहीं जाएगा, जैसा कि रविवार को हुआ.
ऐतिहासिक आजादी की याद
8 मई 1945 की तारीख गवाह है हिटलर की जर्मनी के बिना शर्त हथियार डालने की, और इसी के साथ यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की. जर्मनी में कई स्मारकों पर इसे मित्र देशों से मिली आजादी के दिन के तौर पर याद करते है.
तस्वीर: DW/F. Müller
हुर्टगेन फॉरेस्ट की लड़ाई
जर्मनी में आखेन के पास स्थित हुर्टगेन फॉरेस्ट में अमेरिकी सेनाओं ने जर्मन सशस्त्र बलों के विरूद्ध निर्णायक युद्ध लड़ा. जर्मनी की धरती पर मित्र सेना की यह एक महत्वपूर्ण जीत थी. यह अक्टूबर 1944 से लेकर फरवरी 1945 तक चली जर्मनी के इतिहास में सबसे लंबी लड़ाई रही.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Oliver Berg
रेमागन का पुल
7 मार्च 1945 को बॉन शहर के दक्षिण में स्थित रेमागन के रेलवे पुल को ठीक ठाक हालत में देख कर अमेरिकी सेनाएं हैरान थीं. उन्होंने उस पर कब्जा जमाया और हजारों अमेरिकी सैनिकों ने पहली बार राइन नदी को पार किया. इस घटना को "रेमागन का चमत्कार" कहा जाता है. कब्जे के 10 दिनों के भीतर ही बमबारी के कारण पुल ध्वस्त हो गया. आज उसके अवशेषों पर एक शांति स्मारक बना हुआ है.
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राइषवाल्ड फॉरेस्ट युद्ध कब्रिस्तान
अमेरिकी सेना अपने सैनिकों को देश वापस ले गई लेकिन युद्ध में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों को जर्मनी के ही 15 कब्रिस्तानों में दफनाया गया. इनमें से सबसे बड़ी कब्रगाह कॉमनवेल्थ वॉर सीमिट्री जर्मन-डच सीमा के पास है.
तस्वीर: Gemeinfrei/DennisPeeters
सीलो हाइट्स मेमोरियल
पूर्वी सीमा पर सोवियत रेड आर्मी ने 16 अप्रैल 1945 को अंतिम बड़ा आक्रमण किया था. सीलो हाइट्स की लड़ाई भोर में बमों की बरसात के साथ शुरु हुई और बर्लिन की ओर बढ़त बनाती गई. इस युद्ध में करीब 9 लाख सोवियत सैनिकों के सामने 90,000 जर्मन सशस्त्र बल के सैनिक थे, जिनमें से हजारों इस युद्ध में मारे गए.
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टोरगाउ में एल्बे दिवस
जर्मन धरती पर सोवियत और अमेरिकी सेनाओं की सबसे पहली मुलाकात टोरगाउ में एल्बे नदी पर 25 अप्रैल 1945 को हुई. इसी मुलाकात के साथ पूर्वी और पश्चिमी फ्रंट के बीच दूरी खत्म हुई. टोरगाउ में दोनों पक्षों के बीच हाथ मिलाने की तस्वीरें ऐतिहासिक बन गईं. उस दिन को एल्बे दिवस के रूप में याद किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Schmidt
जर्मन-रूसी संग्रहालय, बर्लिन
8-9 मई 1945 की रात को जर्मन सेना ने जिस जगह पर बिना शर्त आत्मसमर्पण करने के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे, वह थी बर्लिन-कार्लहोर्स्ट की ऑफिसर्स मेस. आज उसी जगह बने म्यूजियम में सरेंडर रूम में उस मूल दस्तावेज को संभालकर रखा गया है, जिसे अंग्रेजी, जर्मन और रूसी भाषा में लिखा गया था.
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सोवियत वॉर मेमोरियल, ट्रेप्टोवर पार्क
विशाल ट्रेप्टोवर पार्क में स्थित स्मारक और मिलिट्री कब्रिस्तान कुल मिलाकर करीब 100,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. इसे द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद बर्लिन की लड़ाई में मारे गए रेड आर्मी सैनिकों की स्मृति में बनाया गया था.
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सेसिलियनहोफ पैलेस में पोट्सडाम कॉन्फ्रेंस
नाजी जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद तीन प्रमुख मित्र देशों के राष्ट्राध्यक्ष पोट्सडाम के सेसिलियनहोफ पैलेस में ही मिले थे. 1945 की गर्मियों में यहां हुई जोसेफ स्टालिन, हैरी ट्रूमन और विंस्टन चर्चिल की मुलाकात को पोट्सडाम कॉन्फ्रेंस के नाम से जाना गया. इसमें ही युद्ध के बाद के यूरोप की व्यवस्था को लेकर चर्चा हुई और जर्मनी को चार ऑक्यूपेशन जोन्स में बांटने का निर्णय हुआ.
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एलाइड म्यूजियम
बर्लिन भी चार सेक्टरों में बंटा हुआ था. सेलेनडॉर्फ जिला अमेरिकन सेक्टर था, जहां स्थित अमेरिकी सेना का सिनेमा "आउटपोस्ट" आज एलाइड म्यूजियम का हिस्सा है. यहां 1945 में पश्चिमी बर्लिन पर कब्जे के राजनैतिक इतिहास और सैनिक प्रतिबद्धताओं के बारे में विस्तृत जानकारी रखी गई है.
तस्वीर: AlliiertenMuseum/Chodan
शोएनहाउजेन पैलेस, बर्लिन
प्रशियन शासकों का यह महल 1990 में जर्मनी और कब्जा करने वाली सेनाओं के बीच हुए महत्वपूर्ण गोल मेज सम्मेलन का गवाह बना. अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ - इन चारों शक्तियों ने जर्मनी में हासिल किए अपने सभी अधिकार छोड़ने का फैसला किया, जिससे आगे चलकर जर्मन एकीकरण का रास्ता साफ हुआ.