पहले के प्रतिबंधों की तरह ही यह रोक भी रूस के यूक्रेन विवाद में शामिल होने की कथित रिपोर्टों के आधार पर लगाई गई हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको ने नए प्रतिबंधों का स्वागत करते हुए कहा कि ये कदम उनके देश के साथ यूरोपीय एकता का सबूत हैं. उन्होंने कहा कि क्रीमिया, जिसे रूस ने अपने में मिला लिया है, उसे फिर से यूक्रेन का हिस्सा बनाना चाहिए. पोरोशेंको ने कहा, "क्रीमिया फिर से हमारा होगा, जरूरी नहीं कि सैन्य कार्रवाई से ही हो."
यूरोपीय संघ के नए प्रतिबंध रूस की हथियार निर्माता कंपनियों और ऊर्जा कंपनियों को जाने वाला यूरोपीय धन रोक देंगे. इससे गासप्रोम, रोसनेफ्ट, ट्रांसनेफ्ट जैसी ऊर्जा कंपनियों और ओपीके ओबोर्नप्रोम, यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन जैसी हथियार निर्माता कंपनियों पर असर होगा.
इसके अलावा डोनेट्स्क, लुगांस्क और क्रीमिया के अधिकारियों की संपत्ति फ्रीज कर दी गई है और उनके ईयू में आने पर रोक लगा दी गई है. यह रोक शुक्रवार से लागू होगी.
डर यह भी है कि रूस यूरोप के कई देशों में गैस सप्लाई रोक भी सकता है या कम कर सकता है. ऐसे में कई देशों को ठंड के मौसम में भारी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. पोलैंड की पीजीएनआईजी गैस यूटिलिटी कंपनी ने दावा किया है कि रूस के गासप्रोम से मिलने वाली गैस की आपूर्ति आधी कर दी गई है. बुधवार को कंपनी के बयान में कहा गया कि 45 फीसदी आपूर्ति कम हुई है. पोलैंड को जाने वाली यह गैस पाइपलाइन यूक्रेन और बेलारूस से होकर जाती है. कंपनी ने कहा कि वह नहीं जानती कि मुश्किल तकनीकी है या राजनीतिक.
विश्लेषकों का कहना है कि इसके जरिए मॉस्को यूरोपीय संघ और यूक्रेन के बीच तनाव को बढ़ा भी सकता है. बैंक ऑफ अमेरिका के मेरिल लिंच कहते हैं, "हमें लगता है कि गासप्रोम इस तरह से 16 सितंबर को यूक्रेन और ईयू के बीच होने वाली बातचीत से पहले अपना भाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. "
पोलैंड रूस की गैस पर निर्भर है. सालाना वह करीब 16 अरब क्यूबिक मीटर गैस इस्तेमाल करता है जिसका 60 फीसदी आयात किया जाता है. और इसमें से अधिकतर हिस्सा रूस से आता है.
शुक्रवार से शुरू होने वाली यूरोपीय संघ के वित्त मंत्रियों की बैठक में संघ की आर्थिक स्थिति और नीति के बारे में चर्चा की जा रही है. सबसे बड़ी चुनौती है बजट में बिना कोई समझौता किए विकास की दर बढ़ाना कि कैसे नौकरियां बढ़े और बाजार में तेजी आए. अमेरिका और जापान तो 2008 की आर्थिक मंदी से उबर आए हैं लेकिन यूरोपीय संघ अभी तक धीमी गति से ही चल रहा है.
यूरोपीय संघ में एक से एक कानून हैं. फिर चाहे केले का आकार हो या शहद की तरलता, सब किताबों में लिखा हुआ है. जरा भी इधर उधर होने का मतलब है गड़बड़. देखें तस्वीरों में यूरोपीय संघ के अजीबोगरीब कानून.
केला कानून के मुताबिक, यूरोपीय संघ में आयात किए जाने वाले केले या उगाए जाने वाले केले कम से कम 14 सेंटीमीटर लंबे और 2.7 सेंटीमीटर मोटे होने चाहिए. फल कटा पिटा नहीं होना चाहिए और पूरा पका भी नहीं.
तस्वीर: Fotolia/Santiago Cornejoशायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि शहद सुचालक होता है, यानी इससे करंट पार हो सकता है. लेकिन ईयू ने सोचा कहीं ब्रेकफास्ट के दौरान किसी को करंट न लग जाए. इसलिए तय कर दिया गया कि शहद की सुचालकता 0.8 माइक्रोसीमन्स प्रति सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
तस्वीर: Fotolia/Jag_czऊर्जा बचाने के लिए यूरोपीय संघ में पारंपरिक गोल बल्बों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. लेकिन एलईडी लाइट जैसे दूसरे बल्बों को भी यूं ही कहीं नहीं फेंका जा सकता, क्योंकि उनमें जहरीला पारा होता है. मुश्किल भले ही हो पर कम से कम ये नए बल्ब पुराने वालों की तरह रोशनी तो देते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी का उत्तरी हिस्सा समंदर और रेत के लिए मशहूर है. ना तो यहां कोई पहाड़ हैं और इसीलिए ना ही कोई केबल कार. यहां सबसे ज्यादा ऊंचाई भी सिर्फ 168 मीटर ही है. पर फिर भी यहां यूरोपीय संघ का रोपवे कानून लागू होता है. कारण? शायद कभी कोई यहां रोपवे बनाना चाहे, तो उसे बनाने के नियम तो होना ही चाहिए ना.
तस्वीर: Fotolia/JM Fotografieप्लास्टिक पीले डब्बे में, पेपर नीले में, रिसाइकल नहीं किए जा सकने वाला कचरा भूरे डब्बे में. कम से कम जर्मनी में तो यही कानून है. लेकिन यूरोपीय संघ के दूसरे देशों में ये डब्बे दूसरे रंग के हैं, नीले की बजाए हरा, पीले की बजाए लाल. कहीं तो सारा कचरा एक साथ जाता है. इसके लिए भी कानून बनाना गलत नहीं होगा.
तस्वीर: Fotolia/grafikplusfotoयूरोपीय संघ के अलग अलग देशों में अलग अलग प्लग अडाप्टर चाहिए. क्योंकि ब्रिटेन, माल्टा, आयरलैंड और साइप्रस जैसे कई ईयू देश हैं जहां यूरोप्लग जाता ही नहीं. यहां मानक की जरूरत है ताकि एक ही प्लग सब जगह चल सके. अब ईयू हर कंपनी के मोबाइल फोन चार्जर एक जैसे बनाने पर कानून बनाने जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaरोम, पैरिस, लंदन, वॉरसा, जागरेब, स्टॉकहोम या बर्लिन सभी जगह ट्रैफिक लाइट पर दिखाई जाने वाली आकृति बिलकुल अलग अलग हैं. जर्मनी के एकीकरण के बाद 1990 में पूर्वी हिस्से का ये आम्पेलमेंशन लुप्त होने की कगार पर था. इसके लिए ईयू में कोई नियम नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaहर देश के पोस्ट बॉक्स भी अलग अलग हैं. यूरोपीय संघ में इनके लिए कोई नियम नहीं है. इसलिए हर देश का सांस्कृतिक इतिहास पोस्ट बॉक्स में दिखाई देता है.
रिपोर्टः आभा मोंढे (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी)
संपादनः ईशा भाटिया