रूस के न्योनोकसा में एक परीक्षण स्थल पर अचानक धमाका हो गया. इस हादसे में पांच परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो गई. हादसे के बाद न्योनोकसा से 47 किलोमीटर दूर सेवेरोड्विंस्क शहर में विकिरण फैल गया है.
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रूस में एक परीक्षण स्थल पर घातक विस्फोट ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की परमाणु मिसाइल बनाने की बात पर दुनिया का ध्यान खींचा है. रूस की सरकार को लगता है कि इससे मास्को को हथियारों की दौड़ में एक नई बढ़त मिलेगी. न्योनोकसा परीक्षण स्थल पर विस्फोट की वजह से स्थानीय विकिरण के स्तर में तेजी से वृद्धि हुई है. पश्चिमी विशेषज्ञों ने 8 अगस्त को हुए इस विस्फोट को 2018 में पहली बार पुतिन द्वारा 9M730 ब्यूरोवेस्तनिक परमाणु ऊर्जा संचालित क्रूज मिसाइल से जोड़ा है. हालांकि रूसी सरकार ने अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं की है कि यह घटना ब्यूरोवेस्तनिक प्रोजेक्ट से जुड़ी हुई थी. साथ ही जो मिसाइल फटा है, उसकी पहचान भी जाहिर नहीं की गई है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पृथ्वी पर किसी भी लक्ष्य को निशाना बनाने की सैद्धांतिक क्षमता वाली परमाणु-चालित मिसाइल अच्छी लग सकती है, लेकिन इसमें कई तरह की तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. यहां तक की लाभ से ज्यादा नुकसान भी हो सकता है. रूस की न्यूक्लियर एजेंसी रोसातोम ने कहा कि ब्लास्ट के दौरान उसके पांच कर्मचारी मारे गए. वे सभी एक मिसाइल के "आइसोटोप पावर सोर्स" के लिए इंजीनियरिंग और तकनीकी सहायता में जुटे थे.
हथियारों की एक नई दौड़ की आशंका तेज
इस साल शीत युद्ध के दौर में हुए इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस (आईएनएफ) संधि टूट जाने के बाद रूस और अमेरिका के बीच हथियारों की एक नई दौड़ की आशंका तेज हो गई है. फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस में सुरक्षा अध्ययन के प्रमुख कोरेंटिन ब्रस्तलाइन कहते हैं, "परमाणु मिसाइल को विकसित करने का उद्देश्य इसे एक सीमा देना है जो सिद्धांतिक रूप से असीमित है. यह आपको ढोने वाले ईंधन की मात्रा की रूकावट को भी दूर करता है. असीमित रेंज के साथ, आप दुश्मन पर प्रहार करने के लिए उनके क्षेत्र में देर तक चक्कर लगा सकते हैं. उन रास्तों का उपयोग कर सकते हैं, जिसकी वे निगरानी नहीं करते हैं. अमेरिकी रडार और उनके एंटी-मिसाइल डिफेंस को चकमा दे सकते हैं."
उन्होंने कहा कि रूस के ऊपर अमेरिकी मिसाइल डिफेंस पर बढ़त बनाने का जुनून है. यह शीत युद्ध के समय से ही चला आ रहा है. उस समय अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की अध्यक्षता में स्ट्रैटेजिक डिफेंस इनिशिएटिव कार्यक्रम चलाया गया था, जिसे "स्टार वार्स" के रूप में जाना जाता है. ब्रस्तलाइन कहते हैं, "रूस को डर है कि एक दिन अमेरिका के पास आक्रामक और रक्षात्मक साधनों का उपयोग करके उनके शस्त्रागार को बर्बाद की क्षमता होगी. अमेरिकी मिसाइल रक्षा प्रणालियों में प्रवेश करने में सक्षम होने के या अमेरिकी मिसाइल रक्षा प्रणालियों को विफल करने के लिए रूस अपने विकल्पों को तेजी से बढ़ा रहा है."
अमेरिका और रूस: किसकी सेना में कितना दम?
शीत युद्ध के जमाने के प्रतिद्वंद्वी अमेरिका और रूस अब भी सैन्य क्षमता के मामले में दबदबा रखते हैं. चलिए डालते हैं नजर कौन किस पर किस मामले में भारी पड़ता है.
तस्वीर: REUTERS
परमाणु हथियार
अमेरिका और रूस दोनों ही परमाणु ताकत हैं. लेकिन अमेरिका के पास जहां लगभग दो हजार परमाणु हथियार हैं वहीं रूस के पास लगभग 1,790.
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सैनिक
अमेरिका के पास 13,74 लाख सैनिक हैं जबकि रूस के पास आठ लाख फौजी हैं. दुनिया के कई इलाकों में अमेरिकी फौजी तैनात हैं.
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टैंक
रूस के पास अमेरिका के मुकाबले तीन गुना ज्यादा टैंक हैं. अमेरिका के पास जहां 5,884 टैंक हैं, वहीं रूस के पास 15,400 टैंक हैं.
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मिलिट्री रॉकेट लॉन्चर
मिलिट्री रॉकेट लॉन्चर के मामले में भी रूस अमेरिका पर भारी है. रूस के पास 3,800 मिलिट्री रॉकेट लॉन्चर हैं जबकि अमेरिका के पास 1,331 हैं.
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लड़ाकू हेलीकॉप्टर
अमेरिकी सेना के पास लड़ाकू हेलीकॉप्टर की संख्या 974 है. वहीं रूस सेना के बेड़े में 480 लड़ाकू हेलीकॉप्टर शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
बम वर्षक विमान
अमेरिका के पास बम वर्षक विमान भी रूस से कहीं ज्यादा हैं. अमेरिका के 2,785 बम वर्षकों के मुकाबले रूस के पास 1,400 बम वर्षक हैं.
तस्वीर: picture alliance/CPA Media
लड़ाकू विमान
अमेरिकी वायुसेना के पास जहां 2,296 लड़ाकू फाइटरजेट हैं, वहीं रूस के पास सिर्फ 750 ऐसे जेट हैं. यहां अमेरिका रूस से बहुत आगे है.
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विमान वाहक पोत
इस मामले में भी अमेरिका रूस पर भारी पड़ता है. रूस के पास जहां सिर्फ एक विमानवाहक युद्धपोत है वहीं अमेरिका के पास ऐसे 19 पोत हैं.
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लड़ाकू युद्धपोत
दूसरी तरफ, लड़ाकू युद्धपोत के मामले में रूस अमेरिका से आगे है. अमेरिका के 71 लड़ाकू युद्धपोतों के मुकाबले रूस के पास 100 ऐसे पोत हैं.
बात पनडुब्बियों की हो तो रूस अमेरिका से ज्यादा पीछे नहीं है. रूस के पास 60 पनडुब्बियां हैं जबकि अमेरिका के पास 70 पनडुब्बियां हैं.
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रक्षा बजट
अमेरिका और रूस के रक्षा बजट में जमीन आसमान का फर्क है. अमेरिकी रक्षा बजट जहां 588 अरब डॉलर है वहीं रूस का रक्षा बजट सिर्फ 66 अरब डॉलर है. (स्रोत: मिलिट्री बैलेंस 2017, आईआईएसएस)
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इस तरह की मिसाइल के निर्माण के लिए तकनीक की मांग काफी ज्यादा है. वजह ये है कि इसके लिए छोटे परमाणु रिएक्टर की आवश्यकता होती है, ताकि इसे मिसाइल में सेट किया जा सके. ऐसी स्थिति में वैज्ञानिकों और वहां काम करने वालों के लिए खतरा बना रहता है. नाम न बताने की शर्त पर फ्रांस के खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख ने बताया, "इस तरह के सुरक्षा कारणों की वजह से आमतौर पर हथियारों के विकास की गति पर रोक लगती है. लेकिन रूस समान सुरक्षा दिशानिर्देशों का सम्मान नहीं करता है क्योंकि वे उसे बहुत कठिन मानते हैं. इन सुरक्षानिर्देशों को देखते हुए फ्रांस ने केवल पनडुब्बियों और उसके चार्ल्स डी गॉल विमान वाहकों में ही परमाणु रिएक्टरों का इस्तेमाल किया है."
विशेषज्ञों ने विकिरण पर जताई चिंता
विशेषज्ञों ने इस हादसे की 1986 के चेरनोबिल परमाणु आपदा से किसी भी तरह की तुलना को खारिज किया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर हुए विकिरण को लेकर चिंता जताई हैं. रूस के मौसम सेवा विभाग ने कहा है कि विस्फोट के बाद नजदीकी शहर सेवेरोड्विंस्क में विकिरण का स्तर मानक से 16 गुना अधिक था. इस वजह से वहां ले लोगों ने काफी ज्यादा आयोडीन खरीदे. आयोडिन थायरॉयड ग्रंथि को विकिरण को अवशोषित करने से रोकने में मदद कर सकता है.
ब्रस्तलाइन का कहना है कि "बहुत ही संदिग्ध परिचालन हित" के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली मिसाइल विकसित करना "बेहद जटिल" था. वे कहते हैं, "परमाणु रिएक्टर को इतने छोटे आकार में विभाजित करने के लिए तकनीकी चुनौतियों और परीक्षणों पर अड़चनें बहुत अधिक हैं. यदि आप तकनीकी चुनौतियों, राजनीतिक, पर्यावरणीय परिणामों और परिचालन हित को एक साथ जोड़ते हैं, तो नकारात्मक नतीजा आता है."
अब तक ये सभी डील तोड़ चुके हैं ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कभी अपने ट्वीट तो कभी अपने फैसलों के चलते चर्चा में बने रहते हैं. ट्रंप ने जिस दिन से पद संभाला है, उस दिन से लेकर अब तक वह कई समझौतों, करारों और साझेदारियों को तोड़ चुके हैं.
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ईरान परमाणु संधि
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की नजर में ईरान परमाणु संधि अब तक का सबसे घटिया समझौता है. साल 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते के तहत ईरान ने अपने करीब नौ टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करके 300 किलोग्राम तक करने की शर्त स्वीकार की थी. इस समझौते का मकसद था परमाणु कार्यक्रमों को रोकना. इन शर्तों के बदले में पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध हटाने पर सहमत हुए थे.
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ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप
2016 में बराक ओबामा ने "ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप" (टीपीपी) पर दस्तखत किए थे. टीपीपी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थित 11 देशों के बीच हुआ एक व्यापार समझौता है. उद्देश्य था इन देशों के बीच आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्क में कमी लाना. लेकिन ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर दस्तखत कर इससे बाहर निकलने की घोषणा कर दी.
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पेरिस जलवायु समझौता
जून 2017 में ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने की घोषणा की थी. साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में दुनिया के लगभग 195 देशों ने हस्ताक्षर किए थे. यह समझौता दुनिया भर के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस पर रोकने की बात करता है. ट्रंप को इस फैसले के चलते दुनिया की काफी आलोचना सहनी पड़ी थी.
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घरेलू पर्यवारण नियमन
डॉनल्ड ट्रंप ने न केवल अंतराराष्ट्रीय करारों और संधियों पर सख्ती दिखाई. बल्कि अमेरिका के भीतर भी ट्रंप ने पर्यावरण से जुड़े कई नियमों में उलटफेर किय. हाल में ही अमेरिका की एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेसी के प्रमुख स्कॉट प्रूइट ने कहा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जिन वाहन उत्सर्जन मानकों को तय किया गया उन्हें खत्म किया जाएगा.
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ओबामाकेयर
'द पेशंट प्रोटेक्शन एंड एफोर्डेबल केयर एक्ट' (पीपीएसीए) को बराक ओबामा आम अमेरिकियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के मकसद से लाए थे. इस हेल्थकेयर प्लान के तौर पर शुरू किया गया था. जो ओबामाकेयर नाम के मशहूर है. साल 2010 पर इस पर कानून बना. मकसद था स्वास्थ्य मामलों पर खर्च की जानेवाली रकम को कम करना. लेकिन इसकी जगह ट्रंप नया हेल्थ केयर बिल लेकर आए हैं. (क्रिस्टीना बुराक/एए)
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रूसी सैन्य विशेषज्ञ अलेक्जेंडर गोल्ट्स ने मिसाइल को "पूरी तरह से बेकार और सतही" बताया. लेकिन रूसी सरकार का उद्देश्य उस समय आसान सैन्य रणनीति से अलग हो सकता है जब पुतिन की लोकप्रियता मॉस्को के साथ नियमित विरोध प्रदर्शनों की वजह से गिरावट पर है. पश्चिमी जगत में "फैसले करने वालों" के खिलाफ "अजेय" हथियारों को तैनात करने की धमकी और सैन्य श्रेष्ठता का उपयोग पुतिन और रूसी सरकार के लिए एक मजबूत कार्ड है.
ब्रस्तलाइन ने कहा, "राष्ट्रवाद को दिखाने का यह एक पहलू है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है. पुतिन यह दिखाना चाहते हैं कि रूस ऐसे सिस्टम विकसित कर रहा है जो अमेरिका के पास नहीं है और वह तकनीकी प्रतिस्पर्धा बनाए हुए हैं." पूर्व फ्रांसीसी खुफिया प्रमुख ने कहा, "व्लादिमीर पुतिन के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक आयाम है. वह दिखाना चाहते हैं कि रूस अभी भी एक महान शक्ति है."
दुनिया भर में इस वक्त नौ देशों के पास करीब 13,865 परमाणु बम हैं. हाल के सालों में परमाणु हथियारों की संख्या घटी है. चलिए देखते हैं कि किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: Reuters
रूस
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) के मुताबिक परमाणु हथियारों की संख्या के मामले में रूस सबसे आगे है. 1949 में पहली बार परमाणु परीक्षण करने वाले रूस के पास 6,500 परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Kolesnikova
अमेरिका
1945 में पहली बार परमाणु परीक्षण के कुछ ही समय बाद अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु हमला किया. सिप्री के मुताबिक अमेरिका के पास आज भी 6,185 परमाणु बम हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Jamali
फ्रांस
यूरोप में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार फ्रांस के पास हैं. उसके एटम बमों की संख्या 300 बताई जाती है. परमाणु बम बनाने की तकनीक तक फ्रांस 1960 में पहुंचा.
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चीन
एशिया में आर्थिक महाशक्ति और दुनिया की सबसे बड़ी थल सेना वाले चीन की असली सैन्य ताकत के बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन अनुमान है कि चीन के पास 290 परमाणु बम हैं. चीन ने 1964 में पहला परमाणु परीक्षण किया.
तस्वीर: Getty Images
ब्रिटेन
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन ने पहला परमाणु परीक्षण 1952 में किया. अमेरिका के करीबी सहयोगी ब्रिटेन के पास 200 परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kaminski
पाकिस्तान
अपने पड़ोसी भारत से तीन बार जंग लड़ चुके पाकिस्तान के पास 150-160 परमाणु हथियार हैं. 1998 में परमाणु बम विकसित करने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ है. विशेषज्ञों को डर है कि अगर अब इन दोनों पड़ोसियों के बीच लड़ाई हुई तो वह परमाणु युद्ध में बदल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP
भारत
1974 में पहली बार और 1998 में दूसरी बार परमाणु परीक्षण करने वाले भारत के पास 130-140 एटम बम हैं. चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत ने वादा किया है कि वो पहले परमाणु हमला नहीं करेगा. साथ ही भारत का कहना है कि वह परमाणु हथियार विहीन देशों के खिलाफ भी इनका प्रयोग नहीं करेगा.
तस्वीर: Reuters
इस्राएल
1948 से 1973 तक तीन बार अरब देशों से युद्ध लड़ चुके इस्राएल के पास 80 से 90 नाभिकीय हथियार हैं. इस्राएल के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक है.
तस्वीर: Reuters/B. Ratner
उत्तर कोरिया
पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की मदद से परमाणु तकनीक हासिल करने वाले उत्तर कोरिया के पास 20 से 30 परमाणु हथियार हैं. तमाम प्रतिबंधों के बावजूद 2006 में उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण किया.