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रूस के डिफॉल्ट का क्या मतलब है?

१६ मार्च २०२२

रूस को सरकारी बॉन्डों के ब्याज के भुगतान में भारी दिक्कत हो रही है. एक तरफ विदेशी मुद्रा जब्त हो गई है तो दूसरी तरफ बैंकों के कामकाज पर पाबंदी है. आशंका कि है रूस भुगतान करने में नाकाम होगा. ऐसा हुआ तो और क्या होगा?

Zentralbank in Moskau
तस्वीर: Natalia Seliverstova/Sputnik/dpa/picture alliance

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों का कहना है कि रूस सरकारी बॉन्डों के ब्याज का भुगतान नहीं कर पाएगा. रूस पर अरबों डॉलर का विदेशी कर्ज है जिस पर उसे ब्याज देना है. इस आशंका ने 1998 की याद ताजा कर दी है जब रूस के भुगतान करने में नाकामी ने दुनिया भर में आर्थिक उथल पुथल मचा दी थी.
भुगतान में नाकाम रहने यानी डिफॉल्ट का खतरा इस बार ज्यादा बड़ा है. अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण अब इसे रोक पाना मुश्किल लग रहा है. कितना बड़ा है संकट और क्या होंगे इसके नतीजे.

क्यों कहा जा रहा है कि रूस डिफॉल्ट करेगा? 

दुनिया भर की सरकारें बॉन्ड जारी कर अंतरराष्ट्रीय बाजारों और निवेशकों से कर्ज लेती हैं. जिस पर उन्हें ब्याज देना होता है. समय पर ब्याज की रकम चुकता ना हो तो यह डिफॉल्ट कहा जाता है. इसके कुछ तात्कालिक तो कुछ दूरगामी असर असर होते हैं. इसका खामियाजा कर्ज लेने वाले के साथ ही देने वाले को भी भुगतना होता है.
बुधवार को रूस के सामने दो बॉन्ड के लिए 11.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर के ब्याज का भुगतान करने की तारीख है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधो के कारण बैंकों पर रूस के साथ लेन देन पर पाबंदी है. इसके साथ ही सरकार के पास विदेशी मुद्रा का जो भंडार है उसका भी ज्यादातर हिस्सा जब्त हो चुका है.
रूसी वित्त मंत्री एंटन सिलुआनोव ने कहा है कि सरकार ने डॉलरों में कूपन जारी करने के निर्देश दिए हैं. हालांकि अगर बैंक यह नहीं कर पाए तो भुगतान रूबल में किया जाएगा. आधिकारिक रूप से डिफॉल्ट के पहले 30 दिन का अतिरिक्त समय मिलता है. तो इसका मतलब है कि रूस के पास पैसा है लेकिन वह भुगतान नहीं कर सकता क्योंकि बैंकों पर पाबंदियां हैं और विदेशी मुद्रा का भंडार जब्त है.
रेटिंग एजेंसियों ने रूस की रेटिंग नीचे गिरा दी है और अब यह निवेश ग्रेड के भी नीचे यानी "जंक" में चली गई है. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिश का कहना है कि "सी" रेटिंग का मतलब है, "डिफाल्ट या फिर डिफॉल्ट जैसी प्रक्रिया" शुरू हो चुकी है. 

रूबल की कीमत में रिकॉर्ड गिरावट आई हैतस्वीर: Jakub Porzycki/NurPhoto/picture alliance

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रूबल से क्या मदद मिल सकेगी?

रूस के कुछ बॉन्ड के लिए रूबल में भुगतान हो सकता है. इसके लिए कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी गई है. हालांकि इन बॉन्ड के लिए नहीं जिनका भुगतान बुधवार को होना है. इसके साथ ही संकेत यह भी हैं कि रूबल की कीमत मौजूदा दर से तय हो होगी जो बहुत नीचे जा चुकी है. इसका मतलब है कि निवेशक को कम पैसे मिलेंगे. बुधवार को फिश ने कहा कि जिस बॉन्ड के बारे में बात हो रही है उसके लिए स्थानीय मुद्रा में भुगतान का मतलब है, "30 दिन का ग्रेस पीरियड खत्म होने के बाद सरकारी डिफॉल्ट."
जिन डॉलर बॉन्ड के लिए रूबल में भुगतान की अनुमति है वहां भी कई मुश्किलें हैं. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एसोसिएशन ऑफ फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस के कार्यकारी उपाध्यक्ष क्ले लॉरी का कहना है, "जाहिर है कि रूबल मूल्यहीन नहीं हैं लेकिन उनका मूल्य तेजी से नीचे जा रहा है. मेरा अनुमान है कि यह कानूनी मामला बन सकता है. क्या यह असाधारण स्थिति खुद रूसी सरकार ने पैदा की है क्योंकि रूसी सरकार ने ही यूक्रेन पर हमला किया है. यह लड़ाई अदालत में चलेगी."

कैसे पता चलता है कि किसी देश ने डिफॉल्ट किया है?

डिफॉल्ट का पता तब चलता है जब या तो रेटिंग एजेंसी किसी देश की रेटिंग को डिफॉल्ट कर दे या फिर अदालत इस बारे में फैसला करे.
बॉन्डहोल्डर जिनके पास डिफॉल्ट स्वैप यानी डिफॉल्ट के खिलाफ इंश्योरेंस की तरह काम आने वाली सेवा है वे वित्तीय फर्मों के प्रतिनिधियों की डिटर्मिनेशन कमेटी से कह सकते हैं कि वो इस बारे में फैसला करे. कमेटी का फैसला यह तय करेगा कि भुगतान में नाकामी के बाद पैसा मिलेगा या नहीं क्योंकि अभी आधिकारिक तौर पर डिफॉल्ट की घोषणा नहीं हुई है. यह तय करना काफी जटिल है इसमें बहुत सारे वकील शामिल होंगे.

रूस की विदेशी मुद्रा का भंडार जब्त हो गया है और रूबल की कीमत गिर गई हैतस्वीर: Vladimir Smirnov/TASS/dpa/picture alliance

रूसी डिफॉल्ट का क्या असर होगा?

निवेश के विशेषज्ञ बड़ी सावधानी से कह रहे हैं कि रूसी डिफॉल्ट का वैसा असर वित्तीय बाजार पर नहीं होगा जैसा 1998 के डिफॉल्ट के बाद हुआ था. तब रूबल बॉन्ड में रूस का डिफॉल्ट एशिया के वित्तीय संकट के ऊपर था.
अमेरिकी सरकार को कदम उठाने पड़े और बैंकों ने लॉन्ग टर्म कैपिटल मैनेजमेंट को बेलआउट किया. यह एक बड़ा अमेरिकी हेज फंड है जिसके डूबने की आशंका थी और अगर ऐसा होता तो वित्तीय व्यवस्था और बैंकिंग सिस्टम लड़खड़ा जाता.
इस समय यह कहना मुश्किल है कि क्या होगा क्योंकि हर सरकारी डिफॉल्ट अलग है और उसका असर सिर्फ तभी पता चलेगा जब डिफॉल्ट होगा. फ्रैंकफर्ट में डॉयचे बैंक के यूरो रेट स्ट्रैटजी के प्रमुख डानियल लेंज कहते हैं, "रूसी डिफॉल्ट अगर पूरे बाजार के लिहाज से देखें तो अब कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. अगर कोई चौंकाने वाली बात होती तो वो पहले ही नजर आ जाती. हालांकि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि छोटे सेक्टरों में समस्या नहीं होगी."
रूस के बाहर होने वाले इसके असर को कम किया जा सकता है क्योंकि विदेशी निवेशकों और कंपनियों ने 2014 के बाद रूस के साथ करार कम किए हैं या फिर छोड़ दिए हैं. 2014 में क्राइमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद अमेरिका और रूस ने पहले दौर के प्रतिबंध लगाए थे.
आईएमएफ के प्रमुख का कहना है कि लड़ाई ने इंसान की तकलीफों से लेकर ऊर्जा और भोजन की बढ़ी कीमतों तक लंबे चौड़े आर्थिक असर के रूप में पहले ही इतना ही नुकसान कर दिया है कि अब दुनिया भर के बैंकों के लिए एक तरह से देखें तो डिफॉल्ट का कोई महत्व ही नहीं रह गया है.
बॉन्ड के होल्डर यानी ऐसे फंड जो उभरते बाजारों के बॉन्ड में निवेश करते हैं वे गंभीर नुकसान उठा सकते हैं. मूडी की मौजूदा रेटिंग बताती है कि डिफॉल्ट होने पर निवेशकों को अपने निवेश पर 35 से 65 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है.

रूस की अर्थव्यवस्था पर डिफॉल्ट के गंभीर और दूरगामी असर हो सकते हैंतस्वीर: Dmitri Lovetsky/AP/picture alliance

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देश डिफॉल्ट करे तो क्या होता है?

आमतौर पर निवेशक और डिफॉल्ट करने वाली सरकार आपस में समझौता करते हैं. इसमें निवेशकों को नए बॉन्ड दिए जाते हैं जिनकी कीमत कम होती है लेकिन उन्हें आंशिक रूप से मुआवजा मिलता है. हालांकि मौजूदा परिस्थिति में यह कैसे होगा यह कहना मुश्किल है क्योंकि एक तरफ जंग चल रही है तो दूसरी तरफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने रूस के साथ बहुत सी कंपनियों और बैंकों के कामकाज पर रोक लगा दी है.
कुछ मामलों में निवेशक मुकदमा कर सकते हैं. इस मामले में माना जाता है कि रूसी बॉन्ड इस शर्त के साथ आते हैं कि निवेशकों का बहुमत एक सेटलमेंट के लिए रजामंद होगा और फिर बाकी बचे निवेशक भी उसी आधार पर सेटलमेंट करने पर राजी होंगे. इसके बाद दूसरे निवेशक कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकेंगे.
किसी देश के डिफॉल्ट करने पर उसे बॉन्ड मार्केट से पैसा उठाने से रोका जा सकता है. खासतौर से तब तक के लिए जब तक कि डिफॉल्ट का समाधान नहीं हो जाता और निवेशकों को भरोसा नहीं हो जाता कि सरकार भुगतान करना चाहती है और उसके पास क्षमता भी है. रूसी सरकार अब भी घरेलू बैंकों से रूबल उधार ले सकती है. ऐसे में उसे अपने बॉन्ड के लिए रूसी बैंकों पर निर्भर होना पड़ेगा.
रूस पहले ही प्रतिबंधों का गंभीर आर्थिक असर झेल रहा है. इसकी वजह से रूबल डूब गया है और बाकी देशों के साथ आर्थिक रिश्ते और कारोबार चौपट हो रहे हैं. ऐसे में डिफॉल्ट रूस के राजनीतिक और आर्थिक अलगाव का एक और संकेत होगा जो यूक्रेन पर हमले का नतीजा है.
एनआर/एके (एपी)

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