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रूस के साथ पुराना करार क्यों तोड़ना चाहते हैं ट्रंप?

२२ अक्टूबर २०१८

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यूरोप में परमाणु ताकत से लैस मिसाइलों की तैनाती खत्म करने वाले करार से बाहर आने की चेतावनी दी है. ट्रंप का कहना है कि रूस शीत युद्ध के दौर में हुए इस करार का उल्लंघन कर रहा है.

USA Elko  Trump Statement
तस्वीर: Reuters/J. Ernst

डॉनल्ड ट्रंप के इस बयान के बाद रूस की तरफ से जवाबी कदम उठाने की आशंका तेज हो गई है. इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ट्रीटी पर तब अमेरिका के राष्ट्रपति रहे रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बोचाव ने 1987 में दस्तखत किए थे. इसके तहत दोनों देशों को कम और मध्यम दूरी की परमाणु और पारंपरिक मिसाइलों को हटाना था. शनिवार को ट्रंप ने पत्रकारों से कहा, "दुर्भाग्य है कि रूस ने करार का सम्मान नहीं किया और हम इस समझौते को खत्म करने और उससे बाहर निकलने जा रहे हैं."

उधर रूस की तरफ से वहां के उप विदेश मंत्री सर्गेइ रयाबकोव ने रविवार को कहा कि करार से बाहर निकलने की अमेरिका की एकतरफा कार्रवाई "बेहद खतरनाक" है और इसकी वजह से "सैन्य तकनीकी" जवाबी कार्रवाई हो सकती है.

अमेरिकी अधिकारी मानते हैं कि रूस मिसाइल सिस्टम विकसित कर रहा है. इसके साथ ही उसने करार का उल्लंघन कर सतह से मार करने वाला एक सिस्टम तैनात भी कर दिया है जो यूरोप पर बहुत कम समय में परमाणु हमला कर सकता है. हालांकि रूस इस बात से लगातार इनकार कर रहा है.

तस्वीर: ZDF

अब 87 साल के हो चुके गोर्बाचोव ने कहा है कि अमेरिका अगर इस करार से बाहर आता है तो यह एक भूल होगी. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने और उनके अमेरिकी समकक्ष ने शीत युद्ध के दौरान हथियारों की दौड़ खत्म करने के लिए जो किया वह उसे खत्म कर देगा. समाचार एजेंसी इंटरफैक्स ने गोर्बाचोव का बयान छापा है. बयान में गोर्बाचोव कहते हैं, "क्या अमेरिका में वो लोग सचमुच समझ रहे हैं कि इसे आखिरकार क्या होगा?" रूस का कहना है कि इसी हफ्ते जब ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन से राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात होगी तो वो इस बारे में जवाब मांगेंगे.

ट्रंप का कहना है कि अगर रूस और चीन मिसाइलों का विकास नहीं रोकते हैं तो अमेरिका हथियारों का विकास करना जारी रखेगा. चीन इस करार में शामिल नहीं है. ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया मांगने पर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने सोमवार को कहा कि एकतरफा कार्रवाई का कई दिशाओं में नकारात्मक असर होगा. चीनी प्रवक्ता ने अमेरिका से इस मुद्दे को समझदारी से निपटाने की अपील की है और साथ ही कहा है कि वह "हरकत में आने से पहले 3 बार सोचे." चुनयिंग ने कहा, "इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि करार से इकतरफा बाहर निकलने के मुद्दे पर चीन के बारे में बात करना पूरी तरह से गलत है."

इधर ब्रिटिश रक्षा मंत्री गेविन विलियम्सन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि ब्रिटेन इस मुद्दे पर अमेरिका के पीछे खड़ा है, और यह भी कि रूस ने इस करार का मजाक बना दिया है. हालांकि नाटो के एक और सदस्य देश जर्मनी की प्रतिक्रिया कुछ अलग है. जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास का कहना है कि 30 साल से यह करार यूरोप के सुरक्षा ढांचे का स्तंभ रहा है. मास ने रविवार को कहा कि करार से बाहर आने के बारे में "हम अमेरिका से अनुरोध करते हैं कि वह संभावित नतीजों के बारे में सोचे."

ट्रंप ने इससे पहले कई अंतरराष्ट्रीय करारों को तोड़ने की बात कही और कुछ करारों से बाहर भी आ गए लेकिन बहुत से करार ऐसे हैं जिनके बारे में बात करके भी अब तक उन्हें तोड़ा नहीं गया है. रिपब्लिकन सीनेटर बॉब कॉर्कर ने इस करार की तुलना कारोबारी समझौते नाफ्टा से की है. मेक्सिको और कनाडा के साथ होने वाले इस करार को ट्रंप ने खत्म करने की चेतावनी दी थी. हालांकि जल्दी ही इस मुद्दे पर बात कर नई शर्तों के साथ करार कर लिया गया. कॉर्कर का अनुमान है कि शायद ट्रंप रूस से इस समझौते का पालन करा लेना चाहते हैं.

एनआर/आईबी (रॉयटर्स)

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