रूस, चीन की मुलाकात में पाकिस्तान, ईरान की चर्चा
७ नवम्बर २०११रूस और चीन के चार पूर्व सोवियत मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ मिल कर शंघाई सहयोग संगठन की नींव रखने के पूरे 10 साल बाद सेंट पीटर्सबर्ग में इन दोनों नेताओं की मुलाकात हो रही है. मकसद है अब तक ढीले ढाले रहे इस संगठन को चुस्त दुरुस्त करना.
रूस ने पहले इस संगठन को क्षेत्रीय स्तर पर नाटो के विकल्प के रूप में रखा और पिछली मुलाकातों में दूसरे क्षेत्रीय ताकतों को इसमें शामिल करने की बात कही. सोमवार की बैठक के बारे में रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अलेक्जेंडर लुकाशेविच ने पत्रकारों से कहा, "हम पाकिस्तान और ईरान के बारे में बात कर रहे हैं जिन्होंने इस संगठन की सदस्यता के लिए आवेदन किया है. भारत भी इससे जुड़ना चाहता है और अफगानिस्तान ने कहा है कि वह पर्यवेक्षक के रूप में इसमें शामिल होना चाहता है." इसके साथ ही लुकाशेविच ने ये भी कहा, "निश्चित रूप से एससीओ का विस्तार कोई आसान प्रक्रिया नहीं है. इसके लिए सावधानी से विश्लेषण और मूल्यांकन की जरूरत होती है."
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि चीन इस समूह को प्राथमिक रूप से एक आर्थिक संगठन के रूप में बनाए रखना चाहता है. इसके साथ इस ओर भी ध्यान दिलाया है कि पाकिस्तान की सदस्यता पर पिछले पांच साल से चर्चा हो रही है. रूस इस बात को लेकर थोड़ा परेशान है कि लंबा समय बीत जाने के बावजूद अब तक नाटो ने इसे औपचारिक मान्यता नहीं दी है.
2000 से 2008 के बीच रूस के राष्ट्रपति रहे पुतिन के अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में अपनी उम्मीदवारी का एलान करने के बाद चीनी प्रधानमंत्री से दूसरी बार मिलने जा रहे हैं. यूरोप में विकास की रफ्तार थमने के बाद रूस को अपने ऊर्जा निर्यात के नए ग्राहकों की तलाश है और ऐसे में द्विपक्षीय रिश्तों की उसके लिए खासतौर से काफी अहमियत है. एक वरिष्ठ रूसी अधिकारी ने बताया कि दोनों नेताओं की बातचीत में धीमे वैश्विक विकास का कीमतों पर असर और वित्तीय बाजारों की स्थिरता पर भी विशेष चर्चा होगी.
शंघाई सहयोग संगठन में रूसी राजदूत किरिल बार्स्की ने समाचार एजेंसी इंटरफैक्स से कहा, "आप उम्मीद कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री एससीओ क्षेत्र में आर्थिक मामलों का एक मूल्यांकन देंगे. वैसे भी वहां स्थिरता, अच्छी जीडीपी और निवेश के लिए बढ़ता आकर्षण मौजूद है."
रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह