रूस पर नरमी दिखाने वाला अमेरिकी ट्रंप प्रशासन अचानक इस पर तल्ख होता नजर रहा है. विशेषज्ञों की माने तो रूस के उदासीन रुख ने अमेरिका को ब्रिटेन की तरफ मोड़ दिया है. लेकिन क्या यही एक कारण है या वजह कुछ और हैं.
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अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने 19 रूसी नागरिकों और पांच संस्थानों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन संस्थानों में रूस की प्रमुख खुफिया एजेंसियां, फेडरल सिक्योरिटी एजेंसी और मेन इंटेलिजेंस डायरेक्टरेट (जीआरयू) शामिल है. इसके अलावा देश की इंटरनेट रिसर्च एजेंसी पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. इस फैसले के चलते अब प्रतिबंधित लोग और संगठन अमेरिकी नागरिकों, संस्थाओं और कंपनियों से किसी तरह का संबंध नहीं रख सकेंगे. अमेरिका ने यह कार्रवाई 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हस्तक्षेप और साइबर अटैक की घटनाओं के लिए की है.
साल 2016 में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही चुनाव नतीजे में रूसी हस्तक्षेप का मामला कई बार चर्चा में आया है. हालांकि पिछले दो सालों में यह पहला मौका है जब अमेरिका ने रूस को सीधे-सीधे चुनाव में हस्तक्षेप और साइबर हमलों की घटनाओं के लिए जिम्मेदार बताया है.
अमेरिकी प्रतिबंधों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रूस ने कहा कि अमेरिका ने ऐसे वक्त पर यह फैसला लिया है जब देश में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं. लेकिन वह इसका जवाब देगा.
अमेरिका और रूस: किसकी सेना में कितना दम?
शीत युद्ध के जमाने के प्रतिद्वंद्वी अमेरिका और रूस अब भी सैन्य क्षमता के मामले में दबदबा रखते हैं. चलिए डालते हैं नजर कौन किस पर किस मामले में भारी पड़ता है.
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परमाणु हथियार
अमेरिका और रूस दोनों ही परमाणु ताकत हैं. लेकिन अमेरिका के पास जहां लगभग दो हजार परमाणु हथियार हैं वहीं रूस के पास लगभग 1,790.
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सैनिक
अमेरिका के पास 13,74 लाख सैनिक हैं जबकि रूस के पास आठ लाख फौजी हैं. दुनिया के कई इलाकों में अमेरिकी फौजी तैनात हैं.
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टैंक
रूस के पास अमेरिका के मुकाबले तीन गुना ज्यादा टैंक हैं. अमेरिका के पास जहां 5,884 टैंक हैं, वहीं रूस के पास 15,400 टैंक हैं.
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मिलिट्री रॉकेट लॉन्चर
मिलिट्री रॉकेट लॉन्चर के मामले में भी रूस अमेरिका पर भारी है. रूस के पास 3,800 मिलिट्री रॉकेट लॉन्चर हैं जबकि अमेरिका के पास 1,331 हैं.
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लड़ाकू हेलीकॉप्टर
अमेरिकी सेना के पास लड़ाकू हेलीकॉप्टर की संख्या 974 है. वहीं रूस सेना के बेड़े में 480 लड़ाकू हेलीकॉप्टर शामिल हैं.
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बम वर्षक विमान
अमेरिका के पास बम वर्षक विमान भी रूस से कहीं ज्यादा हैं. अमेरिका के 2,785 बम वर्षकों के मुकाबले रूस के पास 1,400 बम वर्षक हैं.
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लड़ाकू विमान
अमेरिकी वायुसेना के पास जहां 2,296 लड़ाकू फाइटरजेट हैं, वहीं रूस के पास सिर्फ 750 ऐसे जेट हैं. यहां अमेरिका रूस से बहुत आगे है.
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विमान वाहक पोत
इस मामले में भी अमेरिका रूस पर भारी पड़ता है. रूस के पास जहां सिर्फ एक विमानवाहक युद्धपोत है वहीं अमेरिका के पास ऐसे 19 पोत हैं.
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लड़ाकू युद्धपोत
दूसरी तरफ, लड़ाकू युद्धपोत के मामले में रूस अमेरिका से आगे है. अमेरिका के 71 लड़ाकू युद्धपोतों के मुकाबले रूस के पास 100 ऐसे पोत हैं.
बात पनडुब्बियों की हो तो रूस अमेरिका से ज्यादा पीछे नहीं है. रूस के पास 60 पनडुब्बियां हैं जबकि अमेरिका के पास 70 पनडुब्बियां हैं.
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रक्षा बजट
अमेरिका और रूस के रक्षा बजट में जमीन आसमान का फर्क है. अमेरिकी रक्षा बजट जहां 588 अरब डॉलर है वहीं रूस का रक्षा बजट सिर्फ 66 अरब डॉलर है. (स्रोत: मिलिट्री बैलेंस 2017, आईआईएसएस)
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इससे पहले 4 मार्च को रूसी एजेंट सर्गेइ स्क्रिपाल और उनकी बेटी यूलिया को जहर दिए जाने के मामले में भी अमेरिका ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ संयुक्त बयान जारी कर रूस पर इस घटना में शामिल होने का आरोप लगाया है. हालांकि रूस किसी भी तरह की साजिश में शामिल होने से इनकार करता आया है.
रूसी विशेषज्ञों को आशंका है कि भविष्य में अमेरिका, रूस के खिलाफ और भी अधिक सख्त रुख अपना सकता है. एक राजनयिक ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, "अमेरिका के मौजूदा प्रशासन ने रूस को लेकर अपनी नीतियों को निर्णायक मोड़ दिया है. जिसके चलते संतुलन बदला है." एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, "अमेरिका यह महसूस करता रहा है कि ट्रंप ने रूस को लेकर दोस्ताना रुख अपनाया लेकिन रूस ने कभी उस गर्मजोशी से अमेरिका पर भरोसा नहीं जताया. ऐसे में लगता है कि रूस अमेरिका से अच्छे संबंध रखना ही नहीं चाहता." इसी रुख ने ट्रंप को हताश किया है जिसके बाद अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ नर्व एजेंट हमले को लेकर एकजुटता दिखाई है.
अमेरिका के पूर्व खुफिया अधिकारी यूगेन रुमर कहते हैं कि ट्रंप की इस नीति में बदलाव का कारण स्पेशल काउंसलर रॉबर्ट म्यूलर की वह जांच भी हो सकती है जिसमें यह पता करने की कोशिश की जा रही है कि क्या रूस ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में दखल दिया था. वहीं कुछ अधिकारी मानते हैं कि सीरियाई गृह युद्ध में रूस का बढ़ता दखल भी अमेरिकी फैसले का एक कारण हो सकता है. 15 मार्च को इन प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए अमेरिकी अधिकारियों ने कहा था कि आगे भी ऐसे फैसले लिये जा सकते हैं.
हथियारों की सबसे बड़ी दुकान है अमेरिका
दुनिया में हथियारों की खरीद बिक्री पर नजर रखने वाले इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया है कि 2013-17 के बीच हथियारों की बिक्री 10 फीसदी बढ़ गई है. देखिए दुनिया में हथियारों के बड़े दुकानदार और खरीदार देशों को.
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संयुक्त राज्य अमेरिका
हथियारों के सौदागर के रूप में सबसे आगे चलने वाले अमेरिका ने अपनी बढ़त और ज्यादा कर ली है. बीते पांच सालों में दुनिया में बेचे गए कुल हथियारों का करीब एक तिहाई हिस्सा यानी करीब 34 फीसदी अकेले अमेरिका ने बेचे. अमेरिकी हथियार कम से कम 98 देशों को बेचे जाते हैं. इनमें बड़ा हिस्सा युद्धक और परिवहन विमानों का है.
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सऊदी अरब
अमेरिका अपने हथियारों का करीब आधा हिस्सा मध्यपूर्व के देशों को बेचता है और करीब एक तिहाई एशिया के देशों को. सऊदी अरब मध्य पूर्व में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है. दुनिया में बेचे जाने वाले कुल हथियार का करीब दसवां हिस्सा सऊदी अरब को जाता है. सऊदी अरब हथियारों की दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा खरीदार देश है. अमेरिका के 18 फीसदी हथियार सऊदी अरब खरीदता है.
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रूस
अमेरिका के बाद हथियार बेचने वालों में दूसरे नंबर पर है रूस. बेचे गए कुल हथियारों में 20 फीसदी रूस से निकलते हैं. रूस दुनिया के 47 देशों को अपने हथियार बेचता है साथ ही यूक्रेन के विद्रोहियों को भी. रूस के आधे से ज्यादा हथियार भारत, चीन और विएतनाम को जातें हैं. रूस के हथियार की बिक्री में 7.1 फीसदी की कमी आई है.
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फ्रांस
हथियारों बेचने वाले देशों में तीसरे नंबर पर है फ्रांस. कुल हथियारों की बिक्री में उसकी हिस्सेदारी 6.7 फीसदी की है. फ्रांस ने हथियारों की बिक्री में करीब 27 फीसदी का इजाफा किया है और वह दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन गया है.
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जर्मनी
फ्रांस के बाद जर्मनी का नंबर आता है. बीते पांच सालों में जर्मनी की हथियार बिक्री में कमी आई है बावजूद इसके वह चौथे नंबर पर काबिज है. जर्मनी ने मध्य पूर्व के देशों को बेचे जाने वाले हथियारों में करीब 109 फीसदी का इजाफा किया है.
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चीन
अमेरिका और यूरोप के बाद हथियार नियातकों में नंबर आता है चीन का. बीते पांच सालों में उसके हथियारों की बिक्री करीब 38 फीसदी बढ़ी है. चीन के हथियारों का मुख्य खरीदार पाकिस्तान है. हालांकि इसी दौर में अल्जीरिया और बांग्लादेश भी चीन के हथियारों के बड़े खरीदार बन कर उभरे हैं. चीन ने म्यांमार को भी भारी मात्रा में हथियार बेचे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L.Xiaolong
इस्राएल
हथियारों की एक बड़ी दुकान इस्राएल में है. बीचे पांच सालों में उसने अपने हथियारों की बिक्री करीब 55 फीसदी बढ़ाई है. इस्राएल भारत को बड़ी मात्रा में हथियार बेच रहा है.
तस्वीर: Reuters
दक्षिण कोरिया
हथियारों के कारोबार में अब दक्षिण कोरिया का भी नाम लिया जाने लगा है. उसने अपने हथियारों की बिक्री बीते पांच सालों में करीब 65 फीसदी बढ़ाई है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Ahn Young-joon
तुर्की
इस दौर में जिन देशों के हथियारों की बिक्री ज्यादा बढ़ी है उनमें तुर्की भी शामिल है. उसने हथियारों का निर्यात 2013-17 के बीच करीब 165 फीसदी तक बढ़ा दिया है.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
भारत
हथियारों के खरीदार देश में भारत इस वक्त सबसे ऊपर है. दुनिया में बेच जाने वाले कुल हथियारों का 12 फीसदी भारत ने खरीदे हैं. इनमें करीब आधे हथियार रूस से खरीदे गए हैं. भारत ने अमेरिका से हथियारों की खरीदारी भी बढ़ा दी है इसके अलवा फ्रांस और इस्राएल से भी भारी मात्रा में हथियार खरीदे जा रहे हैं.
तस्वीर: REUTERS/A. Abidi
पाकिस्तान
पाकिस्तान के हथियारों की खरीदारी में कमी आई है. फिलहाल दुनिया में बेचे जाने वाले कुल हथियारों का 2.8 फीसदी पाकिस्तान में जाता है. पाकिस्तान ने अमेरिका से हथियारों की खरीदारी काफी कम कर दी है.