रूस और यूक्रेन के बीच हिंसक संघर्ष अब तीसरे हफ्ते में प्रवेश कर चुका है. एशिया और अफ्रीका के देशों को शांति का पाठ पढ़ाने वाला यूरोप आज अपने ही पड़ोसियों को शांत नहीं कर पा रहा है. यह बात उसके लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है.
बीते दो हफ्तों में रूस की ताकत और यूक्रेन की लाचारी के साथ ही साथ अमेरिका की विश्व व्यवस्था को लेकर प्रतिबद्धता, संयुक्त राष्ट्र संघ की नाकामी, यूरोपीय संघ में एकजुटता और तेजी से निर्णय लेने की क्षमता का अभाव जैसी बातें एक के बाद एक कर सामने आ चुकी हैं.
दुनिया भर के तमाम छोटे-बड़े देश रूस-यूक्रेन युद्ध और उसकी बारीकियों पर ध्यान लगाए हुए हैं. खास तौर पर अपने पड़ोसियों से परेशान वो देश जो पश्चिमी देशों की सुरक्षा गारंटियों पर निर्भर हैं या जिनकी पश्चिमी देशों से अनबन है.
कोरिया प्रायद्वीप पर यह तीनों ही बातें लागू होती हैं. यहां उत्तर कोरिया के रवैये से दक्षिण कोरिया परेशान है, तो उत्तर कोरिया भी दक्षिण की अमेरिका से दांतकांटे की दोस्ती से खुश नहीं है.
अमेरिका के साथ लंबे समय से चली आ रही खींचतान से भी उत्तर कोरिया की मुश्किलें काफी रही हैं. लिहाजा जहां तक कोरियाई प्रायद्वीप का सवाल है तो रूस-यूक्रेन युद्ध ने प्रायद्वीप के सामरिक और कूटनीतिक समीकरणों और देशों की नीतियों पर सीधा असर डाला है.
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उत्तर कोरिया ढूंढ सकता है 'आपदा में अवसर'
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन विश्व व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को धता बताते हुए जिस तरह रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है, उससे इसी तरह की मंशा रखने वाले देशों के हौसले बुलंद होंगे इस बात में कोई दो राय नहीं है.
यही वजह है कि कहीं न कहीं चीन को लेकर उसके पड़ोसियों की चिंताएं बढ़ गयी हैं. उत्तरी कोरिया के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध का पहला सबक यही है कि जब तक उसकी सैन्य ताकत से खुद अमेरिका को डर नहीं लगेगा तब तक वह सुरक्षित नहीं है.
अगर यह परमाणु ताकत नहीं तो और क्या है कि दुनिया भर में अपनी दखल देने वाला अमेरिका साफ तौर पर कह चुका है कि वह यूक्रेन मसले में सैन्य दखल या कार्रवाई नहीं करेगा.
इस बात की आशंका को सच कर दिखाते हुए उत्तरी कोरिया ने इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट के मंसूबे को फिर से जीवंत रूप दे डाला है. अमेरिकी अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, रूस के यूक्रेन पर हमले के 48 घंटे के अंदर, 26 फरवरी और 4 मार्च को उत्तरी कोरिया ने 2 नए प्रकार के इंटेरनकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल परीक्षण किये.
खबरों के अनुसार उत्तर कोरिया परमाणु परीक्षण में काम आई सुरंगों को भी फिर से बहाल कर रहा है. अगर उत्तर कोरिया जल्द ही परमाणु परीक्षण और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल लांच के रास्ते पर फिर बढ़ निकले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. और अगर ऐसा होता है तो यह 2017 के बाद पहली ऐसी घटना होगी.
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दक्षिण कोरिया में राजनीतिक बदलावों की भूमिका
अगर उत्तर कोरिया के नजरिये से देखा जाय तो उसके अपने सुरक्षा कारणों से यह जरूरी है. दक्षिण कोरिया में हाल में हुए राष्ट्रपति चुनाव उत्तर कोरिया और प्रायद्वीप में शांति की कोशिशें कर रहे लोगों के लिए कोई खास अच्छी खबर नहीं हैं. इसी हफ्ते एक बड़े उलटफेर में दक्षिण कोरिया में रूढ़िवादी नेता यून सुक-योल ने राष्ट्रपति पद संभाल लिया है.
पीपल पावर पार्टी के सुक-योल को चुनाव में 48.5 प्रतिशत वोट मिले सत्तरूढ़ पार्टी के ली जे-म्युंग मात्र 0.7 प्रतिशत वोटों से पीछे रह गए. म्युंग मून जे-इन की डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी थे. संविधान के अनुसार मून दूसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकते थे, लिहाजा ली को मैदान में उतरा गया था.
यह साफ है कि उत्तर कोरिया के मिसाइल टेस्ट के तार सीधे तौर पर यून सुक-योल की जीत से जुड़े हैं. अपनी छवि के अनुरूप सुक-योल ने आते ही यह बयान दिया है कि उत्तर कोरिया की हरकतों पर लगाम कसने के लिए उस पर अमेरिका और दक्षिण कोरिया को मिलकर औचक हमला करना चाहिए. इसी बयान में उन्होंने अमेरिका की थाड मिसाइल इंटरसेप्टर भी खरीदने की बात कही. थाड मिसाइल को लेकर पहले उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में खासी नोकझोंक हो चुकी है.
सुक-योल के यह तीखे बोल उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन के कानों में खतरे की घंटी बन कर बजे होंगे इस बात में कोई दो राय नहीं. यही उत्तर कोरिया के लिए यूक्रेन युद्ध का दूसरा सबक है यानी सुक-योल के आने के बाद अब शान्तिवार्ताओं की भूमिका कमजोर पड़ेगी. भूतपूर्व राष्ट्रपति मून जे-इन की विदेशनीति और उत्तरी कोरिया को लेकर शांति बहाली की कोशिशें अब शायद नहीं होंगी. इन तमाम बातों का कोरिया प्रायद्वीप पर दूरगामी असर पड़ेगा.
क्या कोरिया प्रायद्वीप युद्ध की ओर बढ़ रहा है?
उत्तर कोरिया के मिसाइल टेस्ट और दक्षिण कोरिया में म्युंग की जीत से ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में कोरिया में अशांति के बादल और गहरायेंगे. अगर दक्षिण कोरिया की तरफ से उकसाने वाली बातें कही जाती हैं तो आशंका यही है कि उत्तर कोरिया उसे बहुत गंभीरता से लेगा. गलतफहमियों को दूर करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी दक्षिण कोरिया की है. उम्मीद की जाती है कि राष्ट्रपति यून सुक-योल इस जिम्मेदारी को गंभीरता से लेंगे वरना उत्तरी कोरिया तो सही-गलत की समझ पहले ही खो चुका है और अमेरिका या दक्षिणी कोरिया के संभावित हमलों का जवाब देने की तैयारी में लगा ही है.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)