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रूस सीरिया और अरब मीडिया

कैर्स्टेन क्निप/एमजे९ अक्टूबर २०१५

सीरिया में रूसी हस्तक्षेप पर अरब मीडिया में जोरदार बहस हो रही है. अरब मीडिया पुतिन की योजनाओं के असर की चिंता कर रहा है और चेतावनी दे रही है. उसका असर सीरिया के बाहर पूरी अरब दुनिया पर हो सकता है.

तस्वीर: Reuters/Ministry of Defence of the Russian Federation

लड़ाकू विमान, संदिग्ध रूप से जल्द ही कार्रवाई को तैयार थल सैनिक और कैस्पियन सागर से रॉकेट हमले. रूस पूरी ताकत से सीरिया में असद सरकार की मदद कर रहा है. टेलिविजन चैनल अल अरबिया को संदेह है कि इससे सीरिया को शांत करने में मदद मिलेगी. "जिहाद के आह्वान से स्वतंत्र रूसी वहां वैसे ही विफल रहेंगे जैसे हिजबोल्लाह और ईरान रहे हैं." अल अरबिया का कहना है कि रूस ऐसे शासन की मदद करने की कोशिश कर रहा है जो पतन के कगार पर खड़ा है.

यदि राष्ट्रपति बशर अल असद राजनीतिक रूप से बच भी जाते हैं, तो यह साफ नहीं है कि रूस क्या करेगा, कहना है अल हयात अखबार का. उसे संदेह है कि स्थित बेहतर होगी. इसलिए अखबार रूसी दावों पर विश्वास नहीं कर रहा है. "रूसी दावा कर रहे हैं कि वे सीरिया को दूसरा लीबिया नहीं बनने देंगे, जैसे कि सीरिया की हालत लीबिया से बेहतर हो."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

चेच्न्या युद्ध की याद

अल अराबी अल जदीद वेबसाइट को भी शीघ्र हालत के बेहतर होने की उम्मीद नहीं है. वह दूसरे चेच्न्या युद्ध की याद दिलाता है जिसमें पुतिन ने ग्रोज्नी शहर को ध्वस्त कर दिया था. वेबसाइट का कहना है कि पुतिन आज वही मानसिकता सीरिया में दिखा रहे हैं. "यह मानसिकता न सिर्फ सीरिया को नष्ट करेगी, बल्कि इसके दूरगामी नतीजे होंगे." इस हस्तक्षेप से रूस ने सीरिया के लोगों को अपने खिलाफ कर लिया है. अरब और इस्लामी देश भी रूस के खिलाफ हो जाएंगे जैसा अफगानिस्तान युद्ध के समय हुआ था.

अखबार शर्क अल अवसात का कहना है कि रूस ने सीरिया की हालत को और जटिल बना दिया है. हस्तक्षेप से पहले गंभीरता से विचार नहीं किया गया है. अखबार सीरिया में उड़ान निषिद्ध इलाका बनाने की मांग करता है और इसकी जिम्मेदारी अमेरिका पर डालता है. "यह न्यूनतम है जो अमेरिका कर सकता है. इसके जरिए वह सीरिया में निष्क्रियता के बाद अपनी बची खुची साख बचा पाएगा."

धार्मिक युद्ध का खतरा

अखबार अल कुद्स अल अराबी का कहना है कि यह अमेरिका को इसलिए भी करना चाहिए कि इराक रूस की नजदीकी ढूंढ रहा है. अखबार इस बात की भी चेतावनी देता है कि इस बात का खतरा है कि विवाद और व्यापक रूप ले सकता है. सीरिया के बाद अमेरिका और रूस यमन में भी आमने सामने हो सकते हैं. "अमेरिका और रूस की उपस्थिति इलाके को चिंतित करती रहेगी, भले ही वह इलाके के भविष्य को ज्यादा प्रभावित न करे. लेकिन समाधान को और मुश्किल बनाने में योगदान देगी."

अखबार अल हयात का कहना है कि असल खतरा रूस से है. यह इसलिए भी चिंताजनक है कि रूस के पास ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं हैं. "या तो रूस को देश को छोड़कर एक व्यक्ति के साथ बंधने की रणनीति के जोखिमों का पता है, या उसे एक दिन पता चलेगा कि वह अपने ही बनाए जाल में फंस गया है. यानि एक गृहयुद्ध में और जिहादियों के साथ सीधी लड़ाई में जैसा कि वह अफगानिस्तान से जानता है." सऊदी अखबार अल वतन का विश्वास है कि इस युद्ध में असल मुद्दा सीरिया के धार्मिक चरित्र का है. सीरिया बढ़ते पैमाने पर ईरान के प्रभाव में आता जा रहा है और ईरान इस सुन्नी बहुल देश में शिया संप्रदाय का प्रचार करेगा.

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