तमिलनाडु के मेहनतकश कपड़ा मजदूर अब रेडियो पर अपनी समस्याएं बता कर कामकाजी माहौल को बेहतर बनाने में जुटे हैं. दिलचस्प है कि इस पहल की शुरुआत हुई थी एक टॉयलेट से.
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तमिलनाडु की एक कपड़ा मिल में 200 मजदूरों के लिए केवल दो टॉयलेट थे. मिल की एक कॉलर ने रेडियो स्टेशन पर फोन करके बताया कि कैसे वह लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करती है. कई बार टॉयलेट की लाइन में बारी नहीं आती तो मजदूरों से कहा जाता कि वह मिल के उस कोने में जाकर पेशाब कर लें जहां खराब कॉटन को फेंका जाता है.
कॉलर ने बताया कि उसने इन बातों से अपमान तो महसूस किया ही साथ ही उसे गुस्सा भी बहुत आया. फिर तय किया कि वह स्थानीय रेडियो को फोन लगाएगी. जाहिर है कॉलर को सुनने वालों में मजदूर संघ के साथ-साथ कंपनी का मैनेजमेंट भी शामिल रहा होगा, क्योंकि इसके बाद कपड़ा मिल में टॉयलेट बनाना शुरू कर दिया गया.
कैसे बने ये कपड़े
क्या आप जानते हैं हाई हील की खोज ईरानी सैनिकों ने की थी? टाई एक फ्रांसीसी महिला की देन है. कभी सोचा है कि कपड़े कैसे और कहां ईजाद हुए? लीजिए, जानिए...
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हील्स
हील्स यानी ऊंची एडी वाले जो जूते महिलाओं के लिए इतना मजबूत फैशन स्टेटमेंट हैं, उन्हें पुरुषों के लिए बनाया गया था.
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फारस की देन
सदियों पहले ईरानी सैनिक जब घोड़ों पर लड़ने जाते थे तो उन्हें ऊंची एड़ी की जरूरत महसूस हुई. तब ऊंची एड़ी वाले जूते बनने शुरू हुए.
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अमीरों की पसंद
इस खोज के सदियों बाद 1701 में फ्रांस के राजा लुई 16वें ने पहली बार ऊंची एड़ी वाले लाल जूते पहने. सफेद जुराबों के साथ पहने गए ये जूते फ्रांस के अमीरों के बीच लोकप्रिय हो गए.
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महिलाओं की ऊंचाई
महिलाओं को ऊंची एड़ी की ऊंचाई मिली फ्रांसीसी क्रांति के बाद. तब अपने छोटे कद को पुरूषों के बराबर करने के लिए महिलाओं ने ऊंची एड़ी के जूते पहनने शुरू किए.
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टाई
गले में कपड़ा बांधने का रिवाज क्रोएट सैनिकों ने शुरू किया. 1660 में पहली बार फ्रांसीसी सेना में काम कर रहे क्रोएशियाई लोगों ने टाई बांधी. वहां से फ्रांसीसी अमीर लोगों ने इसे उठा लिया.
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कॉलर बटन
19वीं सदी में पोलो खेलने वाले ब्रिटिश घुड़सवारों को कॉलर पर बटन लगाने की जरूरत महसूस हुई ताकि हवा से कॉलर्स फड़फड़ाएं नहीं.
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अमेरिकी ने देख लिया
अमेरिकी फैशन डिजायनर जॉन बर्क ने कॉलर बटन वाली पोलो शर्ट्स को देखा और अमेरिका जाकर ऐसी कमीजें बना दीं.
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पांचवीं जेब
1890 में लिवाईस 501 नाम से पहली जीन्स बनी. इसमें 01 का मतलब था पहली सीरीज. और 5 का आंकड़ा जेबों के लिए था. दरअसल अमेरिकी काउबॉय इस जेब का इस्तेमाल घड़ी और पैसे रखने के लिए करते थे.
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जीन्स का फैशन
जब जेम्स डीन और मार्लन ब्रैंडो हॉलीवुड की फिल्मों में नीली जीन्स, सफेद कमीज और लेदर जैकेट पहने दिखे तो पूरी दुनिया जीन्स की दीवानी हो गई.
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अब तो 5 जेब
महिलाओं और पुरूषों की जीन्स ही नहीं, स्कर्ट्स तक में अब पांचवीं जेब का होना आम है.
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कंधे पर फीतियां
पहली बार कंधे पर फीतियों वाली कमीजें ब्रिटिश सैनिकों ने पहले विश्व युद्ध में पहनी थीं. वजह जाहिर थी, ज्यादा हथियार उठाना.
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बो टाई
लुई 15वें की प्रेमिका पैविन फर्स्ट ने बो टाई का इस्तेमाल किया था क्योंकि तब नंगी गर्दन को लोग ओछी निगाहों से देखते थे.
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पुरुषों के गले में
1870 में क्रोएशियाइयों ने बो टाई का इस्तेमाल पुरूषों के लिए करना शुरू किया. धीरे धीरे इसका आकार छोटा होता गया.
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टांगों पर जेब
1930 के दशक में अमेरिकी और ब्रिटिश वायु सैनिकों की पैंटों में पहली बार जेबें दिखी थीं. ये जेबें पैराट्रूपर्स के लिए साज ओ सामान रखने के लिए बनाई गई थीं.
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आ गए तीन नए रेडियो स्टेशन
पिछले एक साल के दौरान तमिलनाडु में तीन ऐसे रेडियो स्टेशन सामने आए हैं, जो फ्री हैं और मोबाइल फोन से ऑपरेट होते हैं. इन रेडियो स्टेशनों पर कपड़ा मजदूर फोन करके अपनी समस्याओं को बताते हैं. चेन्नई, तिरुपुर और डिंडीगुल में चल रहे रेडियो पर मजदूर कपड़ा फैक्ट्री में होने वाले शोषण, कामकाज के लंबे घंटे, कम तनख्वाह और खराब माहौल पर चर्चा करते हैं. तकरीबन 200 कॉलर रोज इन रेडियो स्टेशनों पर फोन करते हैं.
तमिलनाडु है बड़ा गढ़
तमिलनाडु में टैक्सटाइल और कपड़ा उद्योग का बड़ा गढ़ है. वहां हर साल तकरीबन 40 अरब डॉलर का कारोबार होता है. मजदूर संघ से जुड़े लोग बताते हैं कि तमिलनाडु में कई कंपनियां नियमों को ताक पर रखकर काम करती हैं. बहुत कम ही कंपनियां है, जहां शिकायत पेटी या मजदूरों की समस्याओं को सुनने वाली कोई आंतरिक समिति होती है. ऑल वूमन तमिलनाडु टैक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन (टीटीसीयू) की अध्यक्ष तिव्यारखुन सेसुराज ने कहा, "मजदूर नौकरी जाने के डर से अपनी बातें खुलकर नहीं कह पाते."
क्या कहते हैं श्रोता
चेन्नई की कपड़ा मिल में काम करने वाली पदमा बताती हैं कि वह इस रेडियो को रोज सुनती हैं. उन्होंने कहा, "रेडियो पर आने वाला शो एक ऐसी लत है जो हमें ताकत देती है." एक अन्य मजदूर कानी कहती हैं कि वह बैंकग्राउंड में रेडियो चालू कर काम करती रहती हैं. वह कहती हैं, "मुझे रेडियो शो में आने वाले मुद्दों पर बात करना अच्छा लगता है." कानी कहती हैं कि जब इतने सारे लोग आपको सुनते हैं तो आप खुद को अपने काम से जुड़ी तकलीफों में अकेला महसूस नहीं करते.
ऐसे हैं ट्रेंडी और स्टाइलिश मुस्लिम लिबास
मुस्लिम महिलाएं अपने कपड़ों को लेकर कितनी फैशनेबल हो सकती हैं? क्या वे स्टाइल और नए ट्रेंड्स फॉलो कर सकती हैं? इस्लाम और स्टाइल अब एक दूसरे से घुलमिल गए हैं. एक नजर कुछ स्टाइलिश मुस्लिम लिबास पर.
तस्वीर: Sebastian Kim
मॉडर्न तड़का
सैन फ्रांसिस्को के एक म्यूजियम में मुस्लिम महिलाओं के लिबासों को आधुनिकता के तड़के के साथ पेश किया गया है. सिल्क और क्रिस्टल से सजी यह ड्रेस मलेशियाई डिजाइनर बेरनार्ड चंद्रन ने डिजाइन की है. इस शो का मकसद उस फैशन को जांचने-परखने का भी है जिस पर अकसर बात तो होती है लेकिन उसे पेश करने के लिए जगह नहीं मिलती.
तस्वीर: Fine Arts Museums of San Francisco
जकार्ता से न्यूयॉर्क
डिजाइनर डियान पेलंगी ने पश्चिमी दुनिया में मुस्लिम फैशन को लोकप्रिय बनाया. 27 साल की पेलंगी उन चुनिंदा मुस्लिम डिजाइनरों में से हैं जिन्होंने अपने डिजाइनों को लंदन, मिलान और न्यूयॉर्क तक पेश किया है.
तस्वीर: Fine Arts Museums of San Francisco
राजनीतिक संदेश
शो का मकसद 'इस्लामोफोबिया' यानी इस्लाम से बढ़ते भय से टकराने का भी है. तस्वीर में नजर आ रही इस जैकेट में अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन को अरबी भाषा में उकेरा गया है. यह संशोधन धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करता है. इस जैकेट को लेबनान मूल की डिजाइनर सेलिना सेमान ने डिजाइन किया है.
तस्वीर: Sebastian Kim
ट्रंप का "मुस्लिम बैन"
सेलिना अपने डिजाइनों को राजनीतिक संदेश देने के लिए भी इस्तेमाल करती हैं. 2017 में उन्होंने "प्रतिबंधित" स्कार्फ डिजाइन किए थे. कुछ में उन देशों की सैटेलाइट तस्वीर पेश की गई थी जो ट्रंप के ट्रैवल बैन से प्रभावित हुए थे. तस्वीर में नजर आ रही मॉडल हैं होडा केटेबी, जो एक इरानी मूल की अमेरिकी हैं और एक पॉलिटिकल-फैशन-ब्लॉगर हैं.
तस्वीर: Fine Arts Museums of San Francisco/Driely Carter
स्पोर्ट्स फैशन
जैकेट, स्कार्फ और अन्य रोजमर्रा के कपड़ो के अलावा खेल की दुनिया में भी स्टाइल पीछे नहीं है. स्पोर्ट्सवेयर बनाने वाली दिग्गज कंपनी नाइकी का हिजाब और तैराकी के लिए बनाई गई अहेदा जनैटी की विवादास्पद बुर्किनी यहां नजर आ रही हैं. बुर्किनी को 2016 में अस्थायी रूप से फ्रांस के समुद्र तटों पर बैन कर दिया गया था.
तस्वीर: DW/A. Binder
सोशल मीडिया पर फैशन
सोशल मीडिया पर न जाने कितने ब्लॉगर्स, डिजाइनर, और फैशन मैग्जीन सक्रिय हैं. इंस्टाग्राम पर "हिजाबिस्तास" के नाम से एक पेज पर पारंपरिक हेडस्कार्फ को मॉर्डन तौर-तरीके से पेश किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर फैशन की दिशा में बढ़ रहे इन कदमों को भी इस प्रदर्शनी में दिखाया गया है. (एंजे बाइंडर)