1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

रेत में लुप्त होता रेगिस्तान का जहाज

२७ दिसम्बर २०१०

राजस्थान की आन, बान और शान कहा जाने वाला रेगिस्तान का जहाज़ ऊंट अब राजस्थान से ही लुप्त होने लगा है. देश भर के 70 प्रतिशत ऊंट अकेले राजस्थान में पाए जाते हैं. तेजी से घट रहे हैं ऊंट और उन्हें पालने वाले.

तस्वीर: DW

भारत जो कभी दुनिया भर में ऊंटों की संख्या के लिहाज़ से पांचवें स्थान पर होता था अब लुढ़क कर सातवें स्थान पर आ पहुंचा है. पिछले 18 वर्षों में राजस्थान में इनकी संख्या आठ लाख से घट कर पांच लाख ही रह गयी है.

ऊंटों की कमी

राजस्थान का उत्त्तर- पश्चिमी जिला बीकानेर जहां जनवरी 2011 में विश्व-विख्यात ऊंट उत्सव का आयोजन होना है, ऊंटों की घटती संख्या से प्रभावित होता जा रहा है.

आयोजक अभी से ऊंटों को इकठ्ठा करने में जुट गए है ताकि उत्सव के महत्त्व को बनाकर रखा जा सके. बीकानेर में ही है देश के नामी- गिरामी ऊंट विशेषज्ञ, डॉक्टर तरुण गहलोत जो ऊंटों की संख्या को लेकर खासे चिंतित है.

कम होते ऊंटतस्वीर: DW

उन्हें भय है कि यदि यही आलम रहा तो कहीं रेगिस्तान का यह जहाज, रेगिस्तान से ही विदा ना ले ले. और वो भी तब, जब इस से से प्राप्त होने वाले उत्पाद अपने फायदों के कारण विश्व भर में अपनी अलग से जगह बनाने लगे है.

वे बताते हैं कि ऊंटनी का दूध यदि बिना उबाले पिया जाये तो तपेदिक जैसी बीमारी को भी ठीक कर सकता है. वे यह भी बताते है कि यह दूध मधुमेह का इलाज करने में भी कारगर है.

बीकानेर के पास नापासर के एक गांव में बड़ी संख्या में राईका जाति के लोग रहते है जो ऊंट पालते है. मरू-राईका जाति तो सिर्फ ऊंट पालन से ही अपनी गुजर बसर करती है.

कमाई अठन्नी खर्चा रुपैया

देवाराम से होती है बताते है कि नए जमाने की आग उनके पेशे को भी झुलसा गयी है और गुज़र- बसर भी मुश्किल हो गयी है. वे बताते है कि ना तो अब गोचर-भूमि ही रही है और ना ही चारागाह जहां उन का जानवर अपनी भूख मिटा सके. सौ रूपए की कमाई तो होती नहीं जब कि इस से ज्यादा का तो एक ऊंट चारा ही चर जाता है. वे इस बात को लेकर भी परेशान है कि उन का बेटा कान्हा राम, पीढ़ियों से चले आ रहे रोज़गार को अपनाने का बिल्कुल भी इच्छुक नहीं है. देवाराम अभी भी अपनी ऊंट- गाडी पर चलते है जबकि कान्हा राम अपनी मोटर- साईकिल पर फर्राटे भरते हैं.

बदल गई है जिंदगीतस्वीर: DW

कान्हा राम जबकि कहते हैं कि कि आधुनिक युग में ऊंट पालना बेमानी है और नयी पीढ़ी पर इसे थोपना, बिल्कुल गलत.

बीमार ऊंट

उधर बीकानेर के पशु -चिकित्सा महाविद्यालय के पशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनिल कटारिया बताते हैं कि इस बार ऊंट न्यूमोनिया से मर रहे है जबकि पिछले बरस इन की मृत्यु माता(कैमल पॉक्स) के कारण हुई थी.

ऊंटों को न्यूमोनियातस्वीर: DW

डॉक्टर अनिल कहते है कि ऊंटों की बीमारियों के लिए तो पर्याप्त दवाइयां मौजूद है पर ऊँट पालक ही बीमारी बहुत बढ़ जाने पर पशु- चिकित्सक से सम्पर्क करता है जिस से ईलाज करने में दिक्कत आती है. उनका यह भीं कहना था कि ऊंटों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत होती है जिस के कारण वे कम बीमार होते हैं

वैक्सीन के मुद्दे पर उनका कहना था कि यह सही है कि अभी ऊंटों के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं है पर इन पर शोध-कार्य पूरा हो चूका है और जल्द ही यह बाजार में मिलने लगेंगी.

कदम उठाना जरूरी

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को ऊंट बहुत पसंद आए. राष्ट्रपति भवन में उनके सम्मान समारोह में जब सीमा सुरक्षा बल के सजे धजे ऊंटों ने रोचक कारनामे पेश किये तो उन्होंने ऊंटों को अपने साथ ले जाने की पेशकश तक कर डाली थी.

आज भी दिल्ली में होने वाली छब्बीस जनवरी की परेड में ऊंटो की कदम ताल सर्वाधिक तालियाँ बटोरती है पर यह भी सही है कि ताली बजाने वाले इन हाथों को रेगिस्तान के जहाज को बचाने के लिए किसी सार्थक पहल करने की ज़रुरत है. कहीं ऐसा ना हो कि ऊंट किसी और करवट जा बैठे और हम उसके दर्शनों को ही तरसते रह जाए.

रिपोर्टः जसविंदर सहगल, जयपुर

संपादनः आभा एम

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें