पोर्न देखने की लत से भारत में रेप की घटनाएं होती हैं. ऐसा मानने वालों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हो गए हैं. ठोस और प्रामाणिक अध्ययन न होने के बावजूद इस दलील को मानने का आधार क्या है?
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प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में नीतीश ने पोर्न वेबसाइटों को अपराधों की जड़ मानते हुए उन पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की है क्योंकि उनके मुताबिक वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा अनुचित कंटेंट देखने नहीं दिया जा सकता. हो सकता है कि नीतीश की मांग में उनकी संवेदनशीलता और चिंता शामिल हों लेकिन आमतौर पर ऐसी दलीलें संकीर्ण और पलायनवादी नजरिया दिखाती हैं. आग घर में लगी है और बुझाने के लिए जंगल की ओर दौड़ पड़े हैं. यही तर्क आगे चलकर और अपने समांतर, महिलाओं पर ही सख्तियां और टोकाटाकी की दलीलों को सही ठहराने की ओर प्रवृत्त होने लगता है. खाने-पीने से लेकर घूमने-फिरने और पहनने-ओढ़ने तक. कौन नहीं जानता कि कैसी कैसी फब्तियां, इशारे, घूरती निगाहें और गालियां लड़कियों और महिलाओं को सहनी पड़ती हैं. एक तरह से ओनस महिलाओं पर ही आ जाता है, वे ऐसा न करें तो वैसा न होगा, इसी तरह पुरुष पोर्न न देखें तो रेप नहीं करेंगे. गौर कीजिए, महिलाओं पर भार की तरह और पुरुष के लिए लाचारी की तरह काम करती हैं ये दलीलें.
फिर तो हमें इस पोर्न से पहले टेक्स्ट, तस्वीर, ऑडियो और वीडियो के रूप में नरम किस्म का पोर्न और अन्य अश्लील और भद्दी सामग्रियां परोसने वाले जरियों पर भी कार्रवाई करनी चाहिए. हिंदी में और अन्य भाषाओं में मुख्यधारा की मसाला फिल्में जो परोसती हैं वो क्या है, मनोरंजन और सूचना से जुड़ी वेबसाइटों में क्या है. और कौन सी चीज किस अपराध के लिए कैटालिस्ट का काम कर रही है, ये हम कैसे जानेंगे. और तो छोड़िए अपने घर और समाज में स्त्रियों के प्रति हमारा अपना व्यवहार क्या है - उसे भी तो देखना होगा. जिम्मेदार और जवाबदेह माने जाने वाले गणमान्य लोग क्यों नहीं खुलकर कहते कि समस्या हमारे घरों में हैं जहां हम पिता पति बेटे भाई और दोस्त के रूप में स्त्रियों के प्रति अनुदार बने रहते हैं, उन पर सिक्का जमाए रखना चाहते हैं और उन्हें लगातार नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हैं.
रेप के लिए कहां कितनी सजा
हाल ही में जर्मनी ने अपने बलात्कार विरोधी कानून को और सख्त बनाने के लिए कदम उठाए हैं. जानिए, जर्मनी में और बाकी देशों में रेप के लिए क्या कानून है.
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जर्मनी
जर्मन कानून में अब तक रेप की कोशिश का विरोध न करने पर मामला रेप का नहीं बनता था. अब इस परिभाषा में बदलाव किया गया है. अब छूने, अंगों को टटोलने और दबोचने को भी यौन हिंसा के दायरे में लाया गया है.
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फ्रांस
फ्रांस में रेप का मतलब है ऐसी कोई भी यौन गतिविधि जिसमें दोनों की सहमति ना हो. वहां 20 साल तक की सजा हो सकती है. गाली-गलौज पर भी दो साल तक की सजा का प्रावधान है.
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इटली
1996 में इटली के रेप विरोधी कानून में व्यापक बदलाव किए गए. इसके बाद पत्नी के साथ जबर्दस्ती को भी रेप के दायरे में लाया गया. इसके लिए 10 साल तक की सजा हो सकती है.
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स्विट्जरलैंड
स्विट्जरलैंड में रेप तभी माना जाता है जब योनि संसर्ग हुआ हो. अन्य यौन हमलों को यौन हिंसा माना जाता है. इसके लिए 10 साल तक की जेल हो सकती है. 2014 के बाद शादी में भी रेप को अपराध माना गया है.
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स्वीडन
स्वीडन में जबरन किसी के कपड़े उतारने पर भी दो साल की कैद हो सकती है. मजबूर लोगों का यौन शोषण, मसलन सोते वक्त या नशे की हालत में या किसी तरह डरा कर सेक्स करने की कोशिश करना भी रेप है.
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अमेरिका
अमेरिका में अलग-अलग राज्यों में रेप की परिभाषा अलग-अलग है. लेकिन वहां सेक्स में सहमति पर जोर दिया गया है. सेक्स से पहले स्पष्ट सहमति जरूरी है.
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सऊदी अरब
यहां रेप के लिए मौत की सजा का प्रावधान है. हालांकि रेप को साबित करना बहुत मुश्किल है. जो महिलाएं रेप की शिकायत करती हैं अगर वे साबित ना कर पाईं तो उन्हें भी सजा हो सकती है.
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भारत
निर्भया कांड के बाद भारत में रेप विरोधी कानून में कई बदलाव किए गे हैं. अब रेप के लिए आमतौर पर सात साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. लेकिन विशेष परिस्थितियों में जैसे कि पुलिस हिरासत में रेप, रिश्तेदार या टीचर द्वारा रेप के मामले में 10 साल से उम्र कैद तक भी हो सकती है. अगर पीड़िता की मौत हो जाती है तो मौत की सजा भी हो सकती है.
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भारत में एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2017 के दरमियान बलात्कार के सवा चार लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. अगर रेप का ये आंकड़ा लगातार बढ़ा है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि इंटरनेट के जरिए पोर्न का एक बहुत भीषण संजाल बन गया है, ये आंकड़ा इसलिए भी बढ़ा है कि पुरुषों में महिलाओं के प्रति एक सामान्य न्यूनतम व्यवहार और सम्मान की भावना कमतर होती जा रही है, स्त्रियां जिस तत्परता से आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनती हुई बढ़ रही हैं, पुरुष में वर्चस्व और अहम का दैत्य उतना ही आकार लेता जाता है, वो उसे हासिल करना चाहता है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि वो महज उसकी वासना है, वो उसे हासिल कर पराजित करना चाहता है, उसका दोयम दर्जे का संदेश उसे देते रहना चाहता है. पितृसत्तात्मक ढांचे वाले सामाजिक जीवन में धंस चुकी ये वर्चस्व, अधिकार, कब्जे और श्रेष्ठता की हिंसा है. पुरुष मानसिकता स्त्री देह पर कब्जे की नीयत से बनी है. देह और वासना का उन्माद अपनी भीतरी तहों में सत्ता और ताकत का उन्माद है.
भारत जैसे देशों में बदकिस्मती ये भी है कि पुरुष के इस मनोविकार या मनोवृत्ति की पुख्ता छानबीन के काम युद्ध स्तर पर नहीं हो रहे हैं. कैंडल जुलूसों, नारों, टीवी बहसों, अखबारी कॉलमों और वेब ब्लॉगों में लड़ाइयां सिमट कर रह जाती हैं. वे और दूर जातीं और दीर्घ हो पातीं लेकिन वे अधिकतर तात्कालिक बन कर रह जाती हैं. निर्भया कांड के बाद फंड बना, गाइडलाइन्स बनीं, कानून सख्त हुआ, अदालतें फास्टट्रैक हुईं, लेकिन ये एक मोटी किताब में कुछ पन्नों के जुड़ने की तरह हुआ. इसने अपराधियों के मन में कोई भय नहीं बनाया, समाज को अधिक जागरूक और सचेत नहीं बनाया, संस्थागत दुष्चक्रों से निजात दिलाने में स्त्रियों की निर्णायक मदद नहीं की. हाल की घटनाओं से लगता है अपराधी और बेखौफ हुए हैं, जलाने और हत्या कर देने पर आमादा हैं. ऐसी बर्बरता कैसे आई समाज में. पुरुष इतने वहशी क्यों बन रहे हैं. कार्रवाइयां कमतर क्यों हैं. ऐसे बहुत से सवाल जाहिर हैं हमें असहज और लाजवाब करते हैं, इनसे पीछा छुड़ाने के लिए अजीबोगरीब तर्क और दलीलें हम ओढ़ लेते हैं.
अमेरिका विश्व में पोर्न का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और आंकड़ों के मुताबिक वहां बलात्कार के मामलों में पिछले दस साल में गिरावट ही दर्ज की गई है. जापान में भी यही स्थिति है. यूरोपीय देशों के अध्ययन भी कमोबेश यही इशारा करते हैं. 2015 में केंद्र के 857 पोर्न वेबसाइटों को बंद करने के नोटिफिकेशन के ठीक से अमल में न आ पाने पर हैरानी जताते हुए 2018 में उत्तराखंड के नैनीताल कोर्ट ने 827 वेबसाइटों को तत्काल बंद करने का आदेश दिया था. लेकिन माना जाता है कि पोर्न देखने के लिए इंटरनेट में ही और भीतरी दरवाजे खुल गए हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग भी जगजाहिर हैं. थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि रेप की इकलौती और सबसे महत्त्वपूर्ण वजह पोर्न ही है तो इसका समाधान क्या है. क्या पोर्न वेबसाइटें बंद कर दिए जाने से और कानूनों को और कड़ा कर दिए जाने से रेप की घटनाएं रुक जाएंगी, या उनमें कमी आ जाएगी. ऐसा मान लेना नादानी नहीं तो क्या है.
पोर्न को लेकर नैतिकता, सजा या शुद्धतावाद की आड़ लेने से ज्यादा ऐसी विधियों और विशेषज्ञों की जरूरत है जो गलत और भ्रामक धारणाओं पर किशोर और युवा पीढ़ी से स्पष्ट और सरल भाषा में संबोधित हो सके, नुकसानों और समस्याओं के बारे में बताएं, सेक्स से जुड़े जो भी उनके भ्रम हैं उनसे उन पर खुल कर बात करें, उन्हें उनकी यौन दुविधाओं, संदेहों, व्यवहारों और यौन अचरजों के बारे में पूछ सकें. सबसे जरूरी है घरों और परिवारों में पुत्र संतानों की परवरिश कुछ इस तरह से हो कि वे विनम्र, सहृदय और नेक बनें. उनमें ये भावना न भरी जाए कि उनका जन्म राज करने और ताकत का इस्तेमाल करने के लिए ही हुआ है. विरासत और उत्तराधिकार में शक्ति और कब्जे की लालसा और सामाजिक दर्जे में ऊंच-नीच स्त्री-पुरुष संबंधों का बेड़ा गर्क कर रही है. घर से लेकर समाज तक सजगता का पर्यावरण बनाए बिना, एकतरफा कार्रवाइयों से तो कुछ होने वाला नहीं.
भारत में रोजाना औसतन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं. क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाना ही है उपाय?
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तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
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अंग प्रदर्शन यानि बलात्कारियों को न्यौता
भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उनपर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख के कारण संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का ध्यान नहीं गया.
तस्वीर: DW/K. Keppner
कानून का डर नहीं
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में किए अपने सर्वे में पाया गया कि सर्वे में शामिल हर चार में एक पुरुष ने अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी महिला का बलात्कार किया है. इनमें से 72 से लेकर 97 फीसदी मामलों में इन पुरुषों को किसी कानूनी कार्यवाई का सामना नहीं करना पड़ा था.
तस्वीर: DW/P.M. Tewari
मनोरंजन का साधन हैं यौन अपराध
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ इतने ज्यादा यौन अपराधों का कारण प्रदेश की पुलिस ने वहां मोबाइल फोनों के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों को ठहराया. लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल पुलिस का कहना है कि मनोरंजन के बहुत कम साधन होने के कारण पुरुष यौन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं.
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महिलाओं से मिल रही है चुनौती
सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर कई बार महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और अब तक पुरुषों के कब्जे में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच कई पुरुषों को बौखला रही है. सदियों से स्थापित पुरुषसत्तात्मक समाज के समर्थक ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जिम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: UNI
महिलाओं को ज्यादा बड़ा खतरा किससे
दुनिया के सबसे युवा देश में आज बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2013 रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल दर्ज होने वाले इन करीब 98 फीसदी मामलों में बलात्कारी पीड़ित का जानने वाला था. ज्यादातर मामले जो प्रकाश में आते हैं वे सार्वजनिक जगहों पर अनजान लोगों द्वारा किए गए होते हैं जिस कारण इस सच्चाई पर ध्यान नहीं जाता.
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एक कदम आगे, दो कदम पीछे
एक ओर पहले के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़लिख रही हैं और कार्यक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. दूसरी ओर इस कारण वे शादी और बच्चे देर से पैदा कर रही हैं. भारत में शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने के मामले समाज के लिए असहनीय और खतरा बताए जाते हैं. इस कारण बहुत से युवा पुरुष को अपनी यौन इच्छा पूरी करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं मिलता और कई बार यही यौन हिंसा का कारण बनता है.
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हिंसा का चक्र गर्भ से ही शुरु
भारत में अजन्मे बच्चे की लिंग जांच कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं आम हैं. जो लड़कियां जन्म ले पाती हैं वे संख्या में इतनी कम हैं कि समाज का संतुलन बिगड़ गया है. स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में भारत 1970 से भी नीचे आ गया है. इसके अलावा बाल विवाह, कम उम्र में मां बनना, प्रसव से जुड़ी मौतें और घरेलू हिंसा के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को ही जिम्मेदार मानेंगे.