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समाज

रेप के लिए पोर्न जिम्मेदार है या मानसिकता?

शिवप्रसाद जोशी
१८ दिसम्बर २०१९

पोर्न देखने की लत से भारत में रेप की घटनाएं होती हैं. ऐसा मानने वालों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हो गए हैं. ठोस और प्रामाणिक अध्ययन न होने के बावजूद इस दलील को मानने का आधार क्या है?

Symbolbild- Pornokonsum in Internet
तस्वीर: picture-alliance/empics/Y. Mok

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में नीतीश ने पोर्न वेबसाइटों को अपराधों की जड़ मानते हुए उन पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की है क्योंकि उनके मुताबिक वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा अनुचित कंटेंट देखने नहीं दिया जा सकता. हो सकता है कि नीतीश की मांग में उनकी संवेदनशीलता और चिंता शामिल हों लेकिन आमतौर पर ऐसी दलीलें संकीर्ण और पलायनवादी नजरिया दिखाती हैं. आग घर में लगी है और बुझाने के लिए जंगल की ओर दौड़ पड़े हैं. यही तर्क आगे चलकर और अपने समांतर, महिलाओं पर ही सख्तियां और टोकाटाकी की दलीलों को सही ठहराने की ओर प्रवृत्त होने लगता है. खाने-पीने से लेकर घूमने-फिरने और पहनने-ओढ़ने तक. कौन नहीं जानता कि कैसी कैसी फब्तियां, इशारे, घूरती निगाहें और गालियां लड़कियों और महिलाओं को सहनी पड़ती हैं. एक तरह से ओनस महिलाओं पर ही आ जाता है, वे ऐसा न करें तो वैसा न होगा, इसी तरह पुरुष पोर्न न देखें तो रेप नहीं करेंगे. गौर कीजिए, महिलाओं पर भार की तरह और पुरुष के लिए लाचारी की तरह काम करती हैं ये दलीलें.

फिर तो हमें इस पोर्न से पहले टेक्स्ट, तस्वीर, ऑडियो और वीडियो के रूप में नरम किस्म का पोर्न और अन्य अश्लील और भद्दी सामग्रियां परोसने वाले जरियों पर भी कार्रवाई करनी चाहिए. हिंदी में और अन्य भाषाओं में मुख्यधारा की मसाला फिल्में जो परोसती हैं वो क्या है, मनोरंजन और सूचना से जुड़ी वेबसाइटों में क्या है. और कौन सी चीज किस अपराध के लिए कैटालिस्ट का काम कर रही है, ये हम कैसे जानेंगे. और तो छोड़िए अपने घर और समाज में स्त्रियों के प्रति हमारा अपना व्यवहार क्या है - उसे भी तो देखना होगा. जिम्मेदार और जवाबदेह माने जाने वाले गणमान्य लोग क्यों नहीं खुलकर कहते कि समस्या हमारे घरों में हैं जहां हम पिता पति बेटे भाई और दोस्त के रूप में स्त्रियों के प्रति अनुदार बने रहते हैं, उन पर सिक्का जमाए रखना चाहते हैं और उन्हें लगातार नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हैं.

भारत में एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2017 के दरमियान बलात्कार के सवा चार लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. अगर रेप का ये आंकड़ा लगातार बढ़ा है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि इंटरनेट के जरिए पोर्न का एक बहुत भीषण संजाल बन गया है, ये आंकड़ा इसलिए भी बढ़ा है कि पुरुषों में महिलाओं के प्रति एक सामान्य न्यूनतम व्यवहार और सम्मान की भावना कमतर होती जा रही है, स्त्रियां जिस तत्परता से आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनती हुई बढ़ रही हैं, पुरुष में वर्चस्व और अहम का दैत्य उतना ही आकार लेता जाता है, वो उसे हासिल करना चाहता है तो सिर्फ इसलिए नहीं कि वो महज उसकी वासना है, वो उसे हासिल कर पराजित करना चाहता है, उसका दोयम दर्जे का संदेश उसे देते रहना चाहता है. पितृसत्तात्मक ढांचे वाले सामाजिक जीवन में धंस चुकी ये वर्चस्व, अधिकार, कब्जे और श्रेष्ठता की हिंसा है. पुरुष मानसिकता स्त्री देह पर कब्जे की नीयत से बनी है. देह और वासना का उन्माद अपनी भीतरी तहों में सत्ता और ताकत का उन्माद है.

भारत जैसे देशों में बदकिस्मती ये भी है कि पुरुष के इस मनोविकार या मनोवृत्ति की पुख्ता छानबीन के काम युद्ध स्तर पर नहीं हो रहे हैं. कैंडल जुलूसों, नारों, टीवी बहसों, अखबारी कॉलमों और वेब ब्लॉगों में लड़ाइयां सिमट कर रह जाती हैं. वे और दूर जातीं और दीर्घ हो पातीं लेकिन वे अधिकतर तात्कालिक बन कर रह जाती हैं. निर्भया कांड के बाद फंड बना, गाइडलाइन्स बनीं, कानून सख्त हुआ, अदालतें फास्टट्रैक हुईं, लेकिन ये एक मोटी किताब में कुछ पन्नों के जुड़ने की तरह हुआ. इसने अपराधियों के मन में कोई भय नहीं बनाया, समाज को अधिक जागरूक और सचेत नहीं बनाया, संस्थागत दुष्चक्रों से निजात दिलाने में स्त्रियों की निर्णायक मदद नहीं की. हाल की घटनाओं से लगता है अपराधी और बेखौफ हुए हैं, जलाने और हत्या कर देने पर आमादा हैं. ऐसी बर्बरता कैसे आई समाज में. पुरुष इतने वहशी क्यों बन रहे हैं. कार्रवाइयां कमतर क्यों हैं. ऐसे बहुत से सवाल जाहिर हैं हमें असहज और लाजवाब करते हैं, इनसे पीछा छुड़ाने के लिए अजीबोगरीब तर्क और दलीलें हम ओढ़ लेते हैं.

तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/S. Pal Chaudhury

अमेरिका विश्व में पोर्न का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और आंकड़ों के मुताबिक वहां बलात्कार के मामलों में पिछले दस साल में गिरावट ही दर्ज की गई है. जापान में भी यही स्थिति है. यूरोपीय देशों के अध्ययन भी कमोबेश यही इशारा करते हैं. 2015 में केंद्र के 857 पोर्न वेबसाइटों को बंद करने के नोटिफिकेशन के ठीक से अमल में न आ पाने पर हैरानी जताते हुए 2018 में उत्तराखंड के नैनीताल कोर्ट ने 827 वेबसाइटों को तत्काल बंद करने का आदेश दिया था. लेकिन माना जाता है कि पोर्न देखने के लिए इंटरनेट में ही और भीतरी दरवाजे खुल गए हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग भी जगजाहिर हैं. थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि रेप की इकलौती और सबसे महत्त्वपूर्ण वजह पोर्न ही है तो इसका समाधान क्या है. क्या पोर्न वेबसाइटें बंद कर दिए जाने से और कानूनों को और कड़ा कर दिए जाने से रेप की घटनाएं रुक जाएंगी, या उनमें कमी आ जाएगी. ऐसा मान लेना नादानी नहीं तो क्या है.

पोर्न को लेकर नैतिकता, सजा या शुद्धतावाद की आड़ लेने से ज्यादा ऐसी विधियों और विशेषज्ञों की जरूरत है जो गलत और भ्रामक धारणाओं पर किशोर और युवा पीढ़ी से स्पष्ट और सरल भाषा में संबोधित हो सके, नुकसानों और समस्याओं के बारे में बताएं, सेक्स से जुड़े जो भी उनके भ्रम हैं उनसे उन पर खुल कर बात करें, उन्हें उनकी यौन दुविधाओं, संदेहों, व्यवहारों और यौन अचरजों के बारे में पूछ सकें. सबसे जरूरी है घरों और परिवारों में पुत्र संतानों की परवरिश कुछ इस तरह से हो कि वे विनम्र, सहृदय और नेक बनें. उनमें ये भावना न भरी जाए कि उनका जन्म राज करने और ताकत का इस्तेमाल करने के लिए ही हुआ है. विरासत और उत्तराधिकार में शक्ति और कब्जे की लालसा और सामाजिक दर्जे में ऊंच-नीच स्त्री-पुरुष संबंधों का बेड़ा गर्क कर रही है. घर से लेकर समाज तक सजगता का पर्यावरण बनाए बिना, एकतरफा कार्रवाइयों से तो कुछ होने वाला नहीं.

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