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रैनबैक्सी को अरबों का जुर्माना

१४ मई २०१३

अमेरिका में मिलावटी दवाइयां बेचने की आरोपी भारत की सबसे बड़ी दवा कंपनी रैनबैक्सी वहां 50 करोड़ डॉलर का जुर्माना भरने को तैयार हो गई है. जेनेरिक दवा मामले में यह सबसे बड़ा जुर्माना है.

लगभग एक साल तक चली जांच के बाद रैनबैक्सी की अमेरिकी इकाई को दवा बनाने में गड़बड़ियों का दोषी माना गया. अमेरिका की खाद्य और दवा प्रशासन ने इससे पहले रैनबैक्सी पर 30 से ज्यादा दवाइयों के भारत से निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. ये दवाइयां भारत में तैयार होती हैं. कंपनी ने 2011 में एक समझौता किया था, जिसमें कहा गया था कि उसकी दवाइयों पर अंकित आंकड़े सही हैं और वह तीसरी पार्टी के साथ मिल कर अपनी दवाइयों के बेहतर निर्माण के लिए तैयार है.

रैनबैक्सी लेबोरेट्रीज लिमिटेड ने संघीय अपराध के आरोपों को स्वीकार कर लिया और इसके अलावा अलग से अमेरिका के सभी 50 प्रांतों और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के साथ नागरिक समझौते के लिए तैयार हो गई.

अशुद्ध दवाइयां

ताजा समझौते के तहत कंपनी ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि वह अशुद्ध दवाइयां बेच रही थी, जो भारत की दो फैक्ट्रियों में तैयार हो रही थीं. संघीय वकीलों ने कहा कि अशुद्ध दवाइयों में एक जेनेरिक एंटीबायोटिक दवा भी शामिल है. इसके अलावा कील मुंहासों, एपिलेप्सी और नसों में दर्द की दवाइयां भी शामिल हैं.

तस्वीर: Latvian Biomedical Research and Study Centre

अभी इस बात का पता नहीं लग पाया है कि क्या अशुद्ध दवाइयों के इस्तेमाल से सेहत पर भी कोई असर पड़ा है. इस मामले की शुरुआत 2007 में मेरीलैंड में हुई थी, जब एक याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. कंपनी का दावा है कि इन दवाइयों के इस्तेमाल से सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है.

रैनबैक्सी ने कई और गड़बड़ियों को भी माना है, जिनमें सैंपल दवाइयों को गलत परिस्थितियों में रखने की बात है. इन दवाइयों का परीक्षण किया जाना था. इसके अलावा वह उन दवाइयों को भी अमेरिका में बेचता रहा, जो शुद्धि परीक्षण पर खरी नहीं उतरी. कंपनी ने कहा कि उसने 2006 और 2007 में दवाइयों के परीक्षण से जुड़े मामलों में गलत बयान जारी किए. कई बार बयान जारी करने के बाद परीक्षण किए गए और कई मामलों में तो परीक्षण बयान जारी करने के कई हफ्तों या महीनों बाद किया गया.

कई गड़बड़ दवाइयां

कंपनी का कहना है कि उसने जांच में पूरा सहयोग किया और उम्मीद जताई कि भविष्य में वह बेहतर प्रदर्शन करेगी, "हमें इस बात का दुख है कि हमारे पुराने मामलों की वजह से जांच शुरू हुई, लेकिन हम मानते हैं कि इस मामले को हल करने से रैनबैक्सी के सभी शेयरधारकों के लिए लाभ होगा." रैनबैक्सी के सीईओ और महाप्रबंधक अरुष शॉनी का कहना है कि इस मामले से कंपनी के वित्तीय स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

कंपनी पर हाल के दिनों में कई तरह की जांच हुई है. संघीय जांच के अलावा नवंबर में रैनबैक्सी को जेनेरिक दवा लिपिटर को उस वक्त बंद कर देना पड़ा था, जब इसमें कांच के महीन टुकड़े मिले थे. उसे कई बैच की दवाइयों को वापस लेना पड़ा था. संघीय जांच एजेंसी का कहना है कि मरीजों पर इसका बहुत कम असर पड़ा.

तस्वीर: Fotolia/Doruk Sikman

दवा सुरक्षा के जानकार पीऊ चैरिटेबल ट्रस्ट के एलेन कॉकेल का कहना है कि चीन में हेपारिन मामले के बाद 2008 में दवाइयों की सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया गया. खून को पतला करने वाली इस दवा से कई लोगों की मौत हो गई थी, "पिछले कुछ सालों में संघीय जांच एजेंसी और दूसरी एजेंसियों ने वैश्विक दवा निर्माताओं पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे सेहत पर बुरा असर पड़ता है. एजेंसी के पास अब नए संसाधन और प्रशासन है, जिससे दवाइयों पर और बारीकी से नजर रखी जा सकेगी."

ठाकुर ने खोला राज

रैनबैक्सी ने सोमवार को जुर्माने के तौर पर 15 करोड़ डॉलर देने और सभी मामलों के निपटारे के लिए 35 करोड़ डॉलर देने का वादा किया. कुल मिला कर भारतीय मुद्रा में ये करीब 27 अरब रुपये बनते हैं. इस रकम में से 4.9 करोड़ डॉलर (करीब ढाई अरब रुपये) रैनबैक्सी के पूर्व अधिकारी दिनेश ठाकुर को मिलेंगे, जिन्होंने इस पूरे मामले का राजफाश करने में बड़ी भूमिका निभाई. उन्होंने अमेरिकी अदालत में अर्जी दायर कर कहा था कि कंपनी जान बूझ कर गलत आंकड़े और बयान जारी कर रही है.

ठाकुर का कहना है कि उन्होंने पहले रैनबैक्सी को इन गड़बड़ियों के बारे में बताया और कहा कि इसे दुरुस्त किया जाए, "लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो मेरे पास अदालत जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा."

ठाकुर के वकील एंड्रयू बियाटो का कहना है कि ठाकुर ही इस जानकारी के प्रमुख स्रोत थे.

एजेए/एमजी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)

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