रॉश और सिप्ला कंपनियों की एंटीबॉडी कॉकटेल से भारत में पहले कोरोना संक्रमित व्यक्ति का उपचार किया गया है. यह एक महंगी और प्रयोगात्मक दवा है जिसका इस्तेमाल पिछले साल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर किया गया था.
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गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल ने जानकारी दी है कि इस 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल' का इस्तेमाल एक 82 साल के कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति पर सफलतापूर्वक किया गया है. मरीज का पिछले पांच दिनों से अस्पताल में इलाज चल रहा था. उन्हें इंट्रावेनस तरीके से यानी नसों के अंदर इंजेक्शन दे कर यह कॉकटेल चढ़ाने की प्रक्रिया करीब आधे घंटे चली, और उसके बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई. अस्पताल ने कहा है कि वो उनसे संपर्क में रहेगा और उनके स्वास्थ्य की निगरानी करता रहेगा.
यह एक प्रयोगात्मक दवा है जिसे हाल ही में भारत सरकार ने आपात इस्तेमाल की अनुमति दी थी. इसे अमेरिकी कंपनी रेजेनेरॉन और स्विट्जरलैंड की कंपनी रॉश ने मिलकर बनाया था. इसे पिछले साल अक्टूबर में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को भी दिया गया था जब वो कोरोना से संक्रमित हो गए थे. उस समय अमेरिकी नियामकों द्वारा इसे सिर्फ प्रयोगात्मक तौर पर दिए जाने की अनुमति दी गई थी.
इसमें दो एंटीबॉडी, कसिरिवीमैब और इमदेवीमैब, का मिश्रण होता है. इन्हें 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडी' कहा जाता है, क्योंकि इन्हें एक विशेष व्हाइट ब्लड सेल को क्लोन करके बनाया जाता है. भारत में इसे रॉश और सिप्ला मिल कर लाए हैं. हालांकि इसके इस्तेमाल की सीमाएं हैं. इसे सिर्फ हलके लक्षणों वाले मरीजों पर इस्तेमाल किया जा सकता है. मेदांता के प्रबंधक निदेशक डॉक्टर नरेश त्रेहान ने मीडिया को बताया कि जब शरीर में कोविड-19 वायरस से संक्रमण शुरुआती चरण में हो, उस समय इसे दिया जा सकता है.
इस चरण में वायरस अपने आप को बढ़ाने के लिए मरीज की कोशिकाओं में घुसने की कोशिश कर रहा होता है, ताकि वहां से उसे पोषण मिल सके. डॉ. त्रेहान ने बताया कि ये एंटीबाडी उसी समय वायरस को कोशिकाओं में घुसने से रोक देते हैं. ध्यान रखने की बात यह है कि यह उपचार कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित लोगों पर नहीं किया जाना चाहिए. डॉक्टर त्रेहान ने बताया कि अमेरिका और यूरोप में इसकी काफी जांच हो चुकी है और इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है.
यह एक महंगी दवा है. भारत में सिप्ला इसे बाजार में 59,000 रुपए प्रति खुराक के दाम पर उपलब्ध करा रही है. एक मरीज को एक ही खुराक की जरूरत पड़ती है.
कोरोना के इलाज का दावा करने वाली दवाएं
कोविड-19 से फैली महामारी से छुटकारा दिलाने वाले टीके या सटीक दवा का इंतजार हर किसी को है. लेकिन इस बीच कुछ ऐसी नई और पुरानी दवाएं पेश की गई हैं जो कोरोना वायरस से लोगों की जान बचा सकती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Narinder Naru
कोरोनील
पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव कोविड-19 के लिए देश की पहली आयुर्वेदिक दवा 'दिव्य कोरोनील टैबलेट' ले आए हैं. इसे गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वसारि रस और अणु तेल का मिश्रण बताया जा रहा है. निर्माताओं का दावा है कि इससे 14 के अंदर कोरोना ठीक हो जाएगा. ट्रायल के दौरान करीब सत्तर फीसदी लोगों के केवल तीन दिन में ही ठीक होने का दावा किया गया है.
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फेबीफ्लू
ग्लेनमार्क फार्मा की दवा फेवीपीरावीर गोली के रूप में खाई जा सकने वाली एंटी-वायरल दवा है. इसे कोविड-19 के हल्के या मध्यम दर्जे के संक्रमण वाले मामलों में दिया जा सकता है. करीब सौ रूपये प्रति गोली के दाम पर यह गोली भारतीय बाजार में फेबीफ्लू के नाम से मिलेगी. विश्व भर में इसके टेस्ट से अच्छे नतीजे मिले हैं. मरीजों में वायरल लोड कम हुआ और वे जल्दी ठीक हो पाए.
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डेक्सामेथासोन
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के लिए स्टीरॉयड ‘डेक्सामेथासोन’ का बड़े स्तर पर निर्माण करने की अपील की है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने इसका परीक्षण करीब 2,000 बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर किया. इसके इस्तेमाल से सांस के लिए पूरी तरह वेंटिलेटर पर निर्भर मरीजों की मौत को 35 फीसदी तक कम किया जा सका. यह बाजार में 60 साल पहले आई थी.
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कोविफोर
भारत के हैदराबाद की हीटेरो लैब ‘कोविफोर’ दवा ला रही है. यह असल में एंटीवायरस दवा ‘रेमडेसिविर’ ही है जिसे नए नाम से पेश किया जा रहा है. कंपनी ने इसे बनाने और बेचने के लिए भारतीय ड्रग रेगुलेटर संस्था से अनुमति हासिल कर ली है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Gilead Sciences
एविफाविर
इस दवा को रूस में इस्तेमाल करने की अनुमति मिल गई है. ट्रायल के दौरान इंफ्लुएंजा की इस दवा से कोविड-19 के मरीजों में हालत में जल्दी सुधार आता देखा गया है. यही कारण है कि रूस ने ट्रायल पूरा होने से पहले ही देश के सभी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल करने को कहा है.
तस्वीर: AFP/U. Perrey
सिप्ला की सिप्रेमी
सिप्ला कंपनी भी वही जेनेरिक एंटीवायरस दवा ‘रेमडेसिविर’ अपने ब्रांड सिप्रेमी के नाम पर लाई है. अमेरिका की ड्रग्स रेगुलेटर बॉडी, यूएस एफडीए ने कोविड के मरीजों में इमरजेंसी की हालत में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
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हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली यह दवा भारत में ही विकसित हुई थी. पहले उम्मीद की जा रही थी कि इससे कोविड-19 मरीजों को भी मदद मिल सकती है और अमेरिका ने भारत से इसकी बड़ी खेप भी मंगाई थी. लेकिन इससे खास फायदा नहीं होने के कारण फिलहाल कोरोना में इसे प्रभावी नहीं माना जा रहा है. ब्रिटेन और अमेरिका में इसका ट्रायल भी बंद हो गया है.