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रोमानियाई तानाशाही बनी सैरगाह

२३ अगस्त २०१३

ग्रिम बैरक जहां रोमानिया के क्रूर तानाशाह निकोला चाउषेस्कू और उसकी पत्नी एलेना को मारा गया, वह जगह अब सैलानियों के लिए खोल दी गई है. डिक्टेटर टूरिज्म को बढ़ावा देने का एक तरीका.

Rumänien Bukarest - Palast des Parlamentes
Rumänien Bukarest - Palast des Parlamentesतस्वीर: picture-alliance/dpa

बुखारेस्ट से 100 किलोमीटर दूर पश्चिमोत्तर में ट्रागोविस्टे की पूर्व सैन्य छावनी संग्रहालय बना दी गई है. सितंबर से यहां लोगों का आना शुरू हो जाएगा. संग्रहालय के निदेशक ओविदिऊ कार्स्टिना के मुताबिक, "कई रोमानियाई और विदेशियों ने मांग की कि वो उस दीवार को देखना चाहते हैं जहां चाउषेस्कू और उनकी पत्नी एलेना को 25 दिसंबर 1989 में गोली मारी गई थी."

चाउषेस्कू की मौत 1989 में पूर्वी और मध्य यूरोप को आंदोलित करने वाली क्रांति की अहम तस्वीर बन गई.

22 दिसंबर को जब कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय के सामने गुस्साई भीड़ जमा हुई तो चाउषेस्कू हेलिकॉप्टर से बुखारेस्ट भाग गए. यह उनकी अंतिम यात्रा थी. उन्हें ट्रागोविस्टे में सेना ने रोका और फिर फौरी सुनवाई के बाद उन्हें गोली मार दी. 20 साल के दमनकारी शासन का ऐसा भयानक अंत हुआ. उस शासन में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए कोई जगह नहीं थी और कहीं से भी कोई आवाज उठती तो उसे दबा दिया जाता. देश में खाने और बिजली की कमी थी. इतना ही नहीं चाउषेस्कू की सत्ता भाईभतीजावाद से ग्रस्त थी और उसकी पत्नी एलेना नंबर दो की बॉस थी.

कार्स्टिना के मुताबिक, "हमारा उद्देश्य है घटनाओं को उसी क्रम में दिखाना, जैसे वो हुईं थीं, मुकदमे की सुनवाई, चाउषेस्कू के जीवन या उसकी शख्सियत पर कोई टिप्पणी किए बगैर." जहां तानाशाह को मारा गया वो बैरक 1907 में बनाए गए थे, लेकिन ये तबसे ऐसे ही खड़े हैं. दीवारें भूरे पीले रंग की हैं. लोहे के पलंग पर गंदे हो चुके गद्दे पड़े हुए हैं. यहां उस समय चाउषेस्कू सोया था. सुनवाई के लिए बनाई गई बैरक में यह सब तबसे वैसा ही पड़ा हुआ है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जिस दीवार के आगे उन्हें गोली मारी गई थी, वहां से थोड़ी ही दूर गोली के निशान भी हैं. सुनवाई और सजा ए मौत पूरी दुनिया में प्रसारित हुई थी. छोटी न्यायिक प्रक्रिया की आलोचना भी हुई. कार्स्टिना कहते हैं, "हम कोई विवाद पैदा नहीं करना चाहते बल्कि रोमानिया के इतिहास का लैंडमार्क बताना चाहते हैं." समाजवादी वासिले डांचू कहते हैं, "हर देश को उसके इतिहास को देखना चाहिए, किसी घटना को बिना छिपाए. हम चाहे जो कर लें हम उस शर्मनाक सुनवाई की छवि मिटा नहीं सकते, एक ऐसी घटना जो तंत्र का ढह जाना दिखाती है."

इतिहास के रूबरू

इसके अलावा रोमानिया में देखने के लिए बुखारेस्ट की संसद है. हाउस ऑफ पीपल नाम वाली इस इमारत को बनाने के लिए चाउषेस्कू ने वहां से 40,000 लोगों को घरों से हटा कर दूसरी जगह बसाया. 350,000 वर्ग मीटर की ये इमारत उस समय तैयार की गई थी जब रोमानिया में खाने की कमी थी और बिजली की कटौती रोज की समस्या. इस इमारत में इतना संगमरमर लगाया गया है कि ओलंपिक में इस्तेमाल होने वाले 400 स्विमिंग पूल इससे भर जाएं.

यह पैलेस अब रोमानिया की सबसे मशहूर इमारतों में है. 2012 में यहां करीब डेढ़ लाख पर्यटक आए जिनमें से एक लाख विदेशी थे. हालांकि सारे लोगों को चाउषेस्कू को टूरिस्ट ऑब्जेक्ट बनाना पसंद नहीं आया. स्थानीय टूर ऑपरेटर एसोसिएशन की अध्यक्ष लुसिया मोरारिऊ कहती हैं, "उन लोगों को क्यों उकसाना जो उसका शोक मना रहे हैं. रोमानिया में और भी अच्छी जगहें हैं." वो नाम गिनाती हैं, यूनेस्को की वैश्विक धरोहर डैन्यूब का डेल्टा, रेतेजात पर्वतों का सुंदर इलाका या फिर यूरोप में सबसे ज्यादा भालुओं और भेड़ियों की जनसंख्या.

देश के दक्षिण में स्कोर्निसेती गांव, जहां चाउषेस्कू का 1918 में जन्म हुआ था वहां पर्यटक जाना पसंद करते हैं. यहां अभी भी पानी की सप्लाई और बिजली नहीं है. इस पैतृक घर को चाउषेस्कू के भतीजे एमिल बार्बुलेस्कू ने लोगों के लिए खोला. वे अभी भी पास के ही घर में रहते हैं. वह स्थानीय कम्युनिस्ट मिलिशिया के प्रमुख हैं और पुराने अच्छे दिनों को याद करते हैं. वो कहते हैं, "इतिहास उन्हें (चाउषेस्कू को) वहीं रखेगा जहां के वो हकदार हैं."

इस गांव में चाउषेस्कू को मानने वाले अभी भी बहुत लोग हैं. 58 साल के इयोन डोंगा बताते हैं. "उस समय बहुत रोक टोक थी." हालांकि वह ये भी कहते हैं कि उनके परिवार को "किसी तरह की कमी नहीं" थी, साथ ही ये भी मानते हैं कि तानाशाह को मारा जाना ठीक था लेकिन अधिकारियों ने जिस तरह काम किया वो सही नहीं था.
एएम/एनआर (एएफपी)

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