रोहिंग्या रिफ्यूजी 'जबरदस्ती वापस नहीं भेजे जाएंगे'
१५ नवम्बर २०१८
लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने यहां आसरा देने वाले बांग्लादेश का कहना है कि किसी भी रोहिंग्या को जबरदस्ती वापस नहीं भेजा जाएगा. यानी जो अपनी मर्जी से जाएंगे, सिर्फ उन्हें म्यांमार भेजा जाएगा.
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गुरुवार से रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने की तैयारी शुरू हो गई है. पहले जत्थे में 2,200 से ज्यादा शरणार्थियों को भेजने की योजना है. बांग्लादेश के 'शरणार्थी राहत और वापसी आयोग' के प्रमुख अब्दुल कलाम ने कहा है कि शरणार्थियों से कोई जबरदस्ती नहीं होगी. उन्होंने पत्रकारों को बताया, "मैं कैंपों में जाऊंगा और शरणार्थियों से बात करूंगा. उन्हें तभी ट्रांजिट कैंपों में ले जाया जाएगा, अगर वे इसके लिए राजी होंगे."
उन्होंने यह नहीं बताया कि कितने शरणार्थी अपनी मर्जी से बांग्लादेश को छोड़ कर वापस म्यांमार जाने के इच्छुक हैं. वैसे बांग्लादेश 2,260 शरणार्थियों को वापस भेजने की तैयारी कर रहा है. हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि म्यांमार में हालात सुधरने तक शरणार्थियों को वापस ना भेजा जाए.
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में अगस्त 2017 में सेना की कार्रवाई से बचने के लिए लगभग सात लाख से ज्यादा रोहिंग्या लोग भागकर दक्षिणी बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले में चले आए. म्यांमार की सेना की कार्रवाई में कितने लोग मारे गए, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इसे 'जातीय सफाए की मिसाल' करार दिया.
रोहिंग्या: ये घाव अपनी कहानी खुद कहते हैं..
म्यांमार में सेना की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. इनमें से कई लोगों के शरीर के निशान उन पर हुए जुल्मों की गवाही देते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ ऐसे ही लोगों की फोटो खींची.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
शाहिद, एक साल
पट्टियों में लिपटी एक साल के नन्हे शाहिद की टांगें. यह तस्वीर दिमाग में जितनी जिज्ञासा पैदा करती है, उससे कहीं ज्यादा त्रासदी को दर्शाती है. शाहिद की दादी म्यांमार के सैनिकों से बचकर भाग रही थी कि बच्चा गोद से गिर गया. यह तस्वीर कॉक्स बाजार में रेड क्रॉस के एक अस्पताल में ली गयी. (आगे की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं.)
तस्वीर: Reuters/H. McKay
कालाबारो, 50 साल
50 साल की कालाबारो म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुंगदूत गांव में रहती थी. गांव में म्यांमार के सैनिकों ने आग लगा दी. सब कुछ भस्म हो गया है. कालाबारो के पति, बेटी और एक बेटा मारे गये. कालाबारो घंटों तक मरने का बहाना बनाकर लेटी ना रहती तो वह भी नहीं बचती. लेकिन अपना दाया पैर वह न बचा सकी.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
सितारा बेगम, 12 साल
ये पैर 12 साल की सितारा बेगम के हैं. जब सैनिकों ने उसके घर में आग लगायी तो उसके आठ भाई बहन तो घर से निकल गये, लेकिन वह फंस गयी. बाद में उसे निकाला गया, लेकिन दोनों पैर झुलस गये. बांग्लादेश में आने के बाद उसका इलाज हुआ. वह ठीक तो हो गयी लेकिन पैरों में उंगलियां नहीं बचीं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
नूर कमाल, 17 साल
17 साल के नूर कमाल के सिर पर ये घाव हिंसा की गवाही देते हैं. वह अपने घर में छिपा था कि सैनिक आए, उसे बाहर निकाला और फिर चाकू से उसके सिर पर हमला किया गया. सिर में लगी चोटें ठीक हो गयी हैं, लेकिन उसके निशान शायद ही कभी जाएं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
अनवारा बेगम, 36 साल
अपने घर में सो रही 36 वर्षीय अनवारा बेगम की जब आंख खुली तो आग लगी हुई थी. जलती हुई एक चिंगारी ऊपर गिरी और नाइलोन का कपड़ा उनके हाथों से चिपक गया. वह कहती हैं, "मुझे तो लगा कि मैं बचूगीं नहीं, लेकिन अपने बच्चों की खातिर जीने की कोशिश कर रही हूं."
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मुमताज बेगम, 30 साल
30 साल की मुमताज बेगम के घर में घुसे सैनिकों ने उससे कीमती सामान लेने को कहा. जब मुमताज ने अपनी गरीबी का हाल बताया तो सैनिकों ने कहा, "पैसा नहीं है तो हम तुम्हें मार देंगे." और घर में आग लगा दी. उसके तीन बेटे मारे गये और उसे लहुलुहान कर दिया गया.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
इमाम हुसैन, 42 साल
इमाम हुसैन की उम्र 42 साल है. एक मदरसे में जाते वक्त हुसैन पर तीन लोगों ने हमला किया. इसके अगले ही दिन उसने अपने दो बच्चों और पत्नी को गांव के अन्य लोगों के साथ बांग्लादेश भेज दिया. इसके बाद वह भी इस हालात में कॉक्स बाजार पहुंचा.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मोहम्मद जुबैर, 21 साल
21 साल के मोहम्मद जुबैर के शरीर की यह हालात उसके गांव में एक धमाके का कारण हुई. जुबैर का कहना है, "कुछ हफ्तों तक मुझे कुछ दिखायी ही नहीं देता था." बांग्लादेश पहुंचने के बाद कॉक्स बाजार के एक अस्पताल में उसका 23 दिनों तक इलाज चला.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
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बांग्लादेश में रह रहे बहुत से शरणार्थियों का कहना है कि उनका दमन किया गया, उनके घरों को जला दिया गया और उनके परिवार की महिलाओं के साथ म्यांमार के सैनिकों और बहुसंख्यक बौद्ध उपद्रवियों ने बलात्कार किए.
बाग्लादेश और म्यांमार ने नवंबर 2017 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें शरणार्थियों की वापसी की बात शामिल है. इसके तहत नवंबर 2018 के मध्य में यह वापसी शुरू होनी थी. लेकिन रोहिंग्या समुदाय के लोगों का कहना है कि जिन लोगों को वापस भेजने के लिए चिन्हित किया गया है, उनमें से ज्यादा कॉक्स बाजार के कैंप में छिप गए हैं. इसलिए यह साफ नहीं है कि कितने लोग सचमुच वापस भेजे जा सकेंगे.
समुदाय के नेता नूर इस्लाम ने कहा, "इस लिस्ट में जिन परिवारों के नाम हैं उनमें से 98 फीसदी भाग गए हैं." रोहिंग्या समुदाय के लोगों का कहना है कि कुछ दिनों से कॉक्स बाजार के कैंप में सैनिकों की बढ़ती मौजदूगी से लोगों में चिंता थी.
हर रोहिंग्या शरणार्थी की है एक कहानी
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इस बीच, मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी बांग्लादेश और म्यांमार से अपील की है कि वे शरणार्थियों की वापसी की अपनी योजनाओं को 'तुरंत रोक दें'. उन्होंने कहा कि इससे वापस जाने वाले लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ेगी. एमनेस्टी से जुड़े निकोलस बेक्वीलिन ने एक बयान में कहा, "इस समय वापसी सुरक्षित नहीं होगी और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बांग्लादेश की जिम्मेदारी का उल्लंघन माना जाएगा."
हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सू ची पर रोहिंग्या लोगों के मानवाधिकार हनन को रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाते हुए उनसे अपना प्रतिष्ठित अवॉर्ड वापस लिया है. उधर, अमेरिकी उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने म्यांमार की नेता आंग सान सू ची से रोहिंग्या लोगों के खिलाफ हिंसा रोकने को कहा है.
एके/एनआर (डीपीए, एएफपी)
अपहरण, बलात्कार झेलते, लावारिस होते रोहिंग्या बच्चे
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर चरमपंथियों और सेना ने जिस तरह जुल्म किया है उसे सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सबसे ज्यादा सांसत में बच्चे हैं, जॉन ओवेन की इन तस्वीरों में देखिये.
तस्वीर: DW/J. Owens
गोली और चाकू मारा
अगस्त से लेकर अब तक 6 लाख से ज्यादा रोहिंग्या म्यांमार से भाग कर बांग्लादेश आए हैं. 10 साल के मोहम्मद बिलाल अपने गांव से भाग कर बांग्लादेश आए. वो कहते हैं, "सेना जिस दिन गांव आई, उसने गांव जला दिये, मेरी मां को गोली मार दी, वह भाग रही थी, मेरे पिता चल नहीं सकते थे, उन्हें चाकू मार दिया. मैंने अपनी आंखों से यह सब देखा."
तस्वीर: DW/J. Owens
तकलीफ पीछा नहीं छोड़ती
मोहम्मद की बहन नूर ने भी यह कत्लेआम देखा. वह और उसका भाई अब बांग्लादेश में लावारिस बच्चों के एक केंद्र में रहते हैं. यहां उसे नियमित खाना मिलता है और वह खेलती है. म्यांमार में उसे भूखा रहना पड़ता था. उसकी तुलना में अब हालात कुछ बेहतर हैं लेकिन उसने जो तकलीफ झेली वह उसे अब भी परेशान करती है. उसने कहा, "मुझे मेरे मां बाप, मेरा घर, मेरा देश याद आता है."
तस्वीर: DW/J. Owens
संकट की गहरी जड़ें
रोहिंग्या मुसलमानों का संकट पिछले दूसरे विश्व युद्ध के बाद करीब 70 सालों से चला आ रहा है. इस संकट में 2016 से अब तक 2000 लोगों की जान गई जिनमें 12 साल के रहमान की मां भी थी. रहमान कहते हैं, "उन्होंने मेरे घर जला दिये, मेरी मां बीमार थी इसलिए वह वहां से नहीं निकल सकी."
तस्वीर: DW/J. Owens
बच्चों को बचाओ
5 साल की दिलु आरा अपनी बहन रोजिना के साथ इस कैंप में आई. उसने अपने मां बाप को सेना के हाथों मरते देखा है. उसने बताया, "मैं रोये जा रही थी और गोलियां हमारे सिर के ऊपर से निकलीं, मैं किसी तरह बच गयी." अंतरराष्ट्रीय संगठन सेव द चिल्ड्रन कुटुपालोंग में उन बच्चों की मदद कर रहा है जो बिन मां बाप के यहां पहुंचते हैं. बांग्लादेश में रह रहे शरणार्थी बच्चों में 60 फीसदी रोहिंग्या हैं.
तस्वीर: DW/J. Owens
जानवरों की तरह शिकार
जादेद आलम उन सैकड़ों बच्चों में हैं जो कुटुपालोंग में बिना मां बाप के पहुंचे. उनकी खुशकिस्मती है कि उनकी चाची उनका ख्याल रखती हैं और बहुत अच्छे से. वह मंडी पाड़ा नाम के गांव में पले बढ़े और वह वहां फुटबॉल खेलते थे. सेना के हमले के बाद सब कुछ बदल गया. वो बताते हैं, "उन्होंने हमसे घर छोड़ने को कहा. जब मैं अपने मां बाप के साथ भाग रहा था उन्होंने उन्हें गोली मार दी, वो वहीं मर गये."
तस्वीर: DW/J. Owens
बच्चों का अपहरण
सभी परिवार के लोग इस संकट की वजह से ही नहीं बिछड़े. रहमान अली अपने 10 साल के बेटे जिफाद के गायब होने के बाद कई हफ्ते से इन कैंपों की खाक छान रहे हैं. कई सालों से बच्चों के अपहरण की अफवाहें कैम्प में उड़ती रही हैं और रहमान को डर है कि उनका बेटा भी मानव तस्करों के हाथ लग गया है. रहमान ने कहा, "ना मैं खा सकता हूं, ना सो सकता हूं, मैं इतना परेशान हूं कि लगता है पागल हो गया हूं."
तस्वीर: DW/J. Owens
"मेरा दिमाग ठीक नहीं है"
जब गोलीबारी शुरू हुई तो सोकिना खातून ने अपने बच्चों को बचाने के लिए जो भी मुमकिन था सब किया लेकिन वह 15 साल की यास्मिन और 20 साल की जमालिता को नहीं बचा सकीं, जो उस वक्त पड़ोस के गांव में थे. वो बताती हैं, "उनके दादा दादी के सामने उनका गला काट दिया गया, मैं तो सन्न रह गयी, मुझे दर्द महसूस नहीं होता. मेरा दिमाग ठीक नहीं है." सोकिना अपने 9 बच्चों को बचाने में कामयाब रही.
तस्वीर: DW/J. Owens
हमला, बलात्कार
यास्मिन को लगता है कि वह 15 साल की है लेकिन वह इससे कम उम्र की ही दिखती है. गांव में वह पत्थरों से खेलती थी और खेतों में भागा करती थी लेकिन अब उसे बस यही याद है कि म्यांमार की सेना ने हमला किया, उन्हें मारा, उनके पिता और भाइयों की हत्या की और सैनिकों के समूह ने बलात्कार किया. यास्मिन कहती है, "मैं अपने शरीर में बहुत तकलीफ महसूस करती हूं."