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लंदन ओलंपिक को 'ग्रीन' बनाने की कोशिश

१५ मई २०१२

लंदन इस बार के ओलंपिक खेलों को अब तक का सबसे 'ग्रीन' ओलंपिक बनाना चाहता है. इसके लिए शहर में साफ सफाई से ले कर जहरीली गैसों को कम करने तक के बारे में विचार किया जा रहा है.

आर्सेलर मित्तल ऑर्बिट स्कल्पचर, ओलंपिक पार्क, लंदनतस्वीर: dapd

2012 में जब लंदन को ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए चुना गया तभी खेलों को पर्यावरण के लिहाज से अच्छा बनाने की भी बात कही गई. उस वक्त टोनी ब्लेयर की सरकार ने दावा किया खेलों की तैयारी कुछ इस तरह से की जाएगी कि लंदन और हरा भरा बनाया जा सके.

हालांकि हर बार ओलंपिक या ऐसे अन्य खेलों के दौरान यही वादा किया जाता है कि शहरों को और खूबसूरत बनाया जाएगा और खेलों की तैयारी में इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि उनसे पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे. लेकिन अधिकतर यह वादे केवल कागजों तक ही सीमित हो कर रह जाते हैं.

ब्रिटेन में ग्रीनपीस के अध्यक्ष जॉन सेवेन ने इस बारे में कहा, "ओलंपिक खेलों के आयोजन में विरोधाभास है. जब आप कोई कार्यक्रम आयोजित करते हैं, चाहे वह दो दिन के लिए हो या दो हफ्ते के लिए, उसे पर्यावरण के लिए ढालना बहुत मुश्किल हो जाता है." ऐसे खेल समारोह में दुनिया भर से लोग आते हैं और ऐसे में शहर की साफ सफाई एक बड़ी चुनौती बन जाती है. सेवेन कहते हैं, "यहां थोड़े से वक्त के लिए बहुत सारे लोग आने वाले हैं. वे यहां आपके संसाधनों का इस्तेमाल करेंगे और फिर से वापस चले जाएंगे."

लेकिन अगर अन्य खेलों से तुलना की जाए तो कहा जा सकता है कि लंदन अपना वादा पूरा करने में एक हद तक कामयाब हो पाया है. जॉन सेवेन बताते हैं कि जिस जगह ओलंपिक पार्क बना है वहां पहले प्रूदूषित औद्योगिक स्थल हुआ करता था, "इसकी मरम्मत की गई है. इसे नई शक्ल देने के लिए बहुत बड़ा अभियान चलाया गया है और इसे शहर का एक महत्वपूर्ण अंग बनाया जाएगा. इसलिए यह 2004 के एथेंस ओलंपिक जैसा नहीं है, जहां अब उस वक्त इस्तेमाल की गई इमारतें खंडहर बन गई हैं."

लंदन का केव गार्डनतस्वीर: Reuters

ओलंपिक स्टेडियम बनाने के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल किया गया उसमें इस बात पर खास ध्यान दिया गया कि उस से कार्बन डाई ऑक्साइड का कम उत्सर्जन हो. प्रदूषित जमीन को साफ किया गया, बारिश के पानी को इकठ्ठा कर के उसका इस्तेमाल किया गया.

लेकिन इसके बाद भी कई जगह चूक हुई. एक विंड टर्बाइन के प्रोजेक्ट को खारिज करना पड़ा जो पर्यावरणविदों के लिए बेहद निराशाजनक रहा. इसके अलावा खेलों के साथ बीपी और डाउ केमिकल जैसी कंपनियों के नाम जुड़ने से भी खेलों की छवि पर बुरा असर पड़ा. पिछले साल मेक्सिको की खाड़ी में बीपी के तेल का रिसाव हुआ. वहीं डाउ केमिकल्स का नाम 1984 की भोपाल त्रासदी से जुड़ा है.

लेकिन इस सब के बाद भी जानकार मानते हैं कि आने वाले सालों में लंदन अपने वादे पर बना रहेगा. जिन इलाकों में खेलों के कारण साफ सफाई हुई है उन पर भविष्य में भी ध्यान दिया जाएगा. हालांकि बुरी अर्थव्यवस्था के चलते इन वादों के पूरे होने पर संदेह बना ही रहेगा.

आईबी/एएम (एएफपी)

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