मृत्य जीवन का एक सच है. अलग अलग धर्म के लोग अपने धर्म के अनुसार मृतको का अंतिम संस्कार करते हैं. लेकिन लखनऊ में रहने वाले ईसाई समुदाय के लिए मृतकों का अंतिम संस्कार मुश्किल होता जा रहा है. इसका कारण है जगह की कमी.
विज्ञापन
मजबूरी में अब नये मृतको को दफन करने के लिये पुरानी कब्रों को खोद कर खत्म किया जा रहा है. ईसाई आबादी भी बढ़ी है लेकिन पिछले सौ साल में कोई नया कब्रिस्तान नहीं बना है. ऐसे में ईसाई समाज ने मांग शुरू की है कि सरकार उनको नया कब्रिस्तान बनाने की जगह उपलब्ध कराये.
लखनऊ भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी है. सन 2011 में हुए जनसंख्या सर्वेक्षण के मुताबिक उत्तर प्रदेश की आबादी करीब 20 करोड़ है. इसमें ईसाई समाज की संख्या केवल 35 हजार है. ज्यादातर ईसाई समुदाय के लोग लखनऊ में रहते हैं. ये कुछ इस वजह से भी है कि लखनऊ राजधानी थी और ब्रिटिश शासन काल में ईसाई अफसर यहीं रहते थे. उन्होंने कई चर्च और स्कूल बनवाये, जो आज भी मौजूद हैं.
ब्रिटिश काल से ही लखनऊ में ईसाई समाज के लिए दो कब्रिस्तान निर्धारित किये गये. इसमें एक माल एवन्यू में है, जिसको गोरा कब्रिस्तान कहते हैं. ऐसा इस वजह से क्योंकि इसमें सिर्फ ब्रिटिश अफसर ही दफन होते थे. आज भी उनकी कब्रें वहां मौजूद हैं. दूसरा कब्रिस्तान लखनऊ के निशातगंज इलाके में है. ये 1874 में बनाया गया था और इसमें आम ईसाई लोगो की कब्रें बनायी जाती हैं. आज भी ईसाई समाज अपने मृतको का अंतिम संस्कार यहीं करता है.
कब्रिस्तान में खुदाई से खुले ये राज
दक्षिण इस्राएल के एक कब्रिस्तान में खुदाई से मिले कंकाल सदियों पुरानी मान्यता को चुनौती दे रहे हैं. बाइबल में लिखा है कि प्राचीन फिलीस्तीन के लोग सभ्य नहीं थे जबकि फिलीस्तीनी कब्रिस्तान के कंकाल कुछ और ही कहानी कहते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Cohen
इस्राएल के ऐशकेलॉन शहर में मौजूद एक कब्रिस्तान में करीब 30 सालों के खुदाई के काम को अंजाम देने वाले रिसर्चर बताते हैं कि यहां की बलुई मिट्टी में मिले फिलीस्तीनी लोगों के कंकालों के पास गहने, वाइन और टेराकोटा की इत्र की बोतलें मिलीं हैं जो उनकी प्राचीन सभ्यता के सबूत हैं. और फिलीस्तीनियों को असभ्य माने जाने की धारणा पर सवाल खड़े करता है.
तस्वीर: picture-alliance/UPI Photo/D. Hill
बुक ऑफ सैमु्अल में प्राचीन फिलीस्तीन के गोलिएथ को एक "दैत्याकार योद्धा" बताया गया है, जिसे इस्राएल के यहूदी किंग डेविड ने मारा था. करीब तीन हजार साल पहले बेबिलोनिया का सेना के आक्रमण में फिलीस्तीन मिट गया था. अब तक फिलीस्तीनियों के बारे में केवल वही सब पता था जो ओल्ड टेस्टामेंट में उनके पड़ोसी और दुश्मनों यानि प्राचीन इस्राएलियों ने लिखा था.
तस्वीर: Imago/Leemage
फिलीस्तीनी लोग आखिर थे कौन? पता चला है कि ये व्यापारी और समु्द्री यात्री थे और इंडो-यूरोपीयन मूल की भाषाएं बोलते थे. इनमें खतना नहीं होता था और ये सूअर से लेकर कुत्ते तक सब कुछ खाते थे. इसके सबूत ऐशकेलॉन के अलावा चार अन्य फिलीस्तीनी साइटों गाजा, गाथ, ऐशडोड और एकरॉन में मिले हैं. इनका जीवन कठिनाइयों में बीता.
तस्वीर: Reuters/A. Cohen
इस कब्रिस्तान की खुदाई का काम 1985 में लियॉन लेवी इक्सपीडिशन के तौर पर हार्वर्ड युनिवर्सिटी के सेमेटिक म्युजियम और कुछ अन्य संस्थानों के सहयोग से शुरु हुआ था. यहां मिले 145 शवों के अवशेषों से सिर्फ उस वक्त के अंतिम संस्कार के तरीकों का ही पता नहीं चलता बल्कि उनकी हड्डियों की जांच से उनके जीवन से भी पर्दा उठता है.
तस्वीर: Reuters/A. Cohen
कंकाल की हड्डियों की डीएनए, रेडियोकार्बन और अन्य एडवांस तरीकों की जांच हो रही है. ऐशकेलॉन में ऐसी पहली कब्र के बारे में 2013 में पता चला था. ऐशकेलॉन शहर प्राचीन फिलीस्तीनी बंदरगाह वाला शहर था, जहां कभी 13,000 लोग रहा करते थे. आज यह क्षेत्र दक्षिण इस्राएल के एक लोकप्रिय राष्ट्रीय पार्क में पड़ता है.
तस्वीर: Reuters/A. Cohen
इन लोगों के शवों के पास से मिले लाल और काले रंग के बर्तन देखकर पता चला है कि वे एजियन सी में प्राचीन यूनान और मध्यपूर्व के नगर और सभ्यताएं जब नष्ट हो रही थीं तो ये उस कांस्य युगीन सभ्यता से आये थे. सन 1200 से ईसा पूर्व 600 तक आज के गाजा इलाके से तेल अवीव के बीच की समुद्री पट्टी में इनके बसे होने के साक्ष्य मिले हैं.
तस्वीर: Imago/Xinhua
ऐशकेलॉन के इस 3,000 साल पुराने कब्रिस्तान में लगभग 200 लोगों की हड्डियां मिली हैं. फिलीस्तीनी लोगों के बारे में आज तक की सबसे सही जानकारी इन हड्डियों के रेडियोकार्बन डेटिंग और यहां मिले बर्तनों की जांच से ही मिलेगी. धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कहानियों के कई किरदारों और घटनाओं से पर्दा उठने का इंतजार जारी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Hollander
7 तस्वीरें1 | 7
लेकिन अब इसमें जगह की कमी होने लगी है. नये मुर्दों के लिए जगह नहीं बची है. हाल में संजोग वाल्टर, जो अपने मित्र के अंतिम संस्कार करने निशातगंज ईसाई कब्रिस्तान गए थे, उन्होंने देखा कि कब्र एक पुरानी कब्र को खोद कर बनायी गयी. वाल्टर बताते हैं की जिस पुरानी कब्र को खत्म किया गया, वह 1905 में बनी थी, "शायद वह किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की कब्र रही हो. लेकिन उसको खोद कर खत्म कर दिया गया. तब हम लोगों ने अपने मित्र को वहीं दफनाया." वाल्टर के अनुसार यह काम ईसाई धर्म की मान्यताओ के विरुद्ध है. वे कहते हैं कि ईसाई समाज में कब्र का बहुत अहम स्थान है. लोग पक्की कब्र बनवाते हैं और कोशिश यह रहती है कि यह हमेशा रहे. उसको खत्म न किया जा सके, इसीलिए कब्रों के ऊपर एंजेल के प्रतीक बना दिये जाते हैं. लेकिन लखनऊ में अब कब्रों को पलटा जा रहा है.
ईसाई समाज के फादर मोरिस कुमार के अनुसार कब्रों का मामला बहुत संवेदनशील होता है. वे पूछते हैं कि अगर उनके परिजन की ही कब्र हो, तो वे कैसे इजाजत दे दें कि उसको खोद कर खत्म कर दिया जाये. फादर मोरिस असेंबली ऑफ बेलिएवेस चर्च इन इंडिया के उत्तर प्रदेश के संयोजक हैं.
दुनिया में किस धर्म के कितने लोग हैं?
दुनिया में दस में से आठ लोग किसी ना किसी धार्मिक समुदाय का हिस्सा हैं. एडहेरेंट्स.कॉम वेबसाइट और पियू रिसर्च के 2017 के अनुमानों से झलक मिलती हैं कि दुनिया के सात अरब से ज्यादा लोगों में कितने कौन से धर्म को मानते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
ईसाई
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 31.5 प्रतिशत और आबादी लगभग 2.2 अरब है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Tibbon
मुसलमान
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसे मानने वालों की आबादी 1.6 अरब मानी जाती है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 1.6 अरब है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Al-Shaikh
धर्मनिरपेक्ष/नास्तिक
जो लोग किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते, उनकी आबादी 15.35 प्रतिशत है. संख्या के हिसाब यह आंकड़ा 1.1 अरब के आसपास है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Uz Zaman
हिंदू
लगभग एक अरब आबादी के साथ हिंदू दुनिया में तीसरा बड़ा धार्मिक समुदाय है. पूरी दुनिया में 13.95 प्रतिशत हिंदू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
चीनी पारंपरिक धर्म
चीन के पारंपरिक धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 39.4 करोड़ है और दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत है.
तस्वीर: picture alliance/CPA Media
बौद्ध धर्म
दुनिया भर में 37.6 करोड़ लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. यानी दुनिया में 5.25 प्रतिशत लोग भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का अनुकरण कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS
जातीय धार्मिक समूह/अफ्रीकी पारंपरिक धर्म
इस समूह में अलग अलग जातीय धार्मिक समुदायों को रखा गया है. विश्व आबादी में 5.59 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Heunis
सिख
अपनी रंग बिरंगी संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है
तस्वीर: NARINDER NANU/AFP/Getty Images
यहूदी
यहूदियों की संख्या दुनिया भर में 1.4 करोड़ के आसपास है. दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.20 प्रतिशत है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/W. Rothermel
जैन धर्म
मुख्य रूप से भारत में प्रचलित जैन धर्म के मानने वालों की संख्या 42 लाख के आसपास है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/N. Ut
शिंटो
यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या सिर्फ 40 लाख के आसपास है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Mayama
11 तस्वीरें1 | 11
फादर मोरिस बताते हैं कि लखनऊ में कई ईसाई कब्रिस्तान अब संरक्षित स्मारक घोषित कर दिये गये हैं. इस वजह से वहां अब मुर्दे नहीं दफन हो सकते. ऐसे दो कब्रिस्तान एक चौक और दूसरा आलमबाग में मौजूद हैं.
फादर मोरिस का कहना है, "अब हम लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि हमें नयी जगह उपलब्ध करायी जाये जहां नया कब्रिस्तान बनाया जाये. इसके अलावा अपने पैसे से खरीदकर भी जमीन तो ली जा सकती है लेकिन उसको कब्रिस्तान घोषित करना सरकार का काम है." फिलहाल ईसाई समाज लखनऊ में अपने लिए एक अदद कब्रिस्तान की तलाश में हैं जहां वे अपने मुर्दों को शांति से दफन कर सकें.
सबसे ज्यादा बढ़ेगी मुस्लिम आबादी
दुनिया भर में फिलहाल सबसे अधिक बच्चे ईसाई मांओं की कोख से जन्म लेते हैं. लेकिन अगले 20 सालों में सबसे अधिक बच्चों को मुस्लिम मांएं जन्म देंगी. अमेरिकी रिसर्च केंद्र प्यू रिसर्च ने यह आंकड़े पेश किये हैं.
तस्वीर: Reuters/John Stillwell
ईसाई मांएं पीछे
प्यू के मुताबिक अगले 20 सालों में मुस्लिम मांओं के बच्चे, ईसाई मांओं के बच्चों से अधिक होंगे. कारण हाल में सालों में ईसाइयों की मौत में बढ़त्तोरी है. और एक दूसरी वजह ईसाइयों का उम्रदराज होना भी है. वहीं मुस्लिम समुदाय में अधिक युवाओं की वजह से बच्चों की जन्म दर में तेजी आयेगी और उनकी आबादी में इजाफा होगा.
प्यू के अनुसार, विश्व स्तर पर मुस्लिम समुदाय की अधिक युवा आबादी के चलते जन्मदर में इजाफा होगा. साल 2030 से 2035 के दौरान सबसे अधिक बच्चे मुस्लिम (22.5 करोड़) समुदाय में पैदा होंगे, वहीं ईसाई धर्म में यह संख्या तकरीबन 22.4 करोड़ रह सकती है. इसके बावजूद दुनिया की कुल ईसाई आबादी तब भी अधिक रहेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Johnson
मुस्लिम और ईसाई जन्मदर
रिसर्च केंद्र के आंकड़ों मुताबिक साल 2055 से 2060 के दौरान, दोनों समुदायों की जन्म दर में तकरीबन 60 लाख का अंतर आ सकता है. उस वक्त तक मुस्लिम समुदाय में जन्म लेने वालों की संख्या तकरीबन 23.2 करोड़ तक होगी, वहीं ईसाइयों में यह आंकड़ा 22.6 करोड़ तक हो सकता है.
तस्वीर: Reuters/John Stillwell
बड़ा धार्मिक समुदाय
प्यू के ये नये अनुमान इसके पुराने दावों की ही तर्ज पर हैं. साल 2015 में प्यू ने कहा था कि आने वाले दशकों में मुस्लिम समुदाय दुनिया में सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाला धार्मिक समुदाय रहेगा. प्यू के ये अनुमान भी इसी ओर इशारा करते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Nagori
सबसे अधिक बच्चे
साल 2010 से 2015 के बीच, दुनिया भर में जितने भी बच्चों ने जन्म लिया था, उसमें से 31 फीसदी बच्चे मुसलमानों के थे. साल 2015 में दुनिया भर में तकरीबन 24 फीसदी मुसलमान थे. दो साल पहले प्यू ने अनुमान लगाया था कि साल 2050 तक दुनिया भर में मुस्लिमों और ईसाइयों की संख्या लगभग बराबर हो जायेगी.