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लखनऊ में उर्दू पढ़ते विदेशी

७ सितम्बर २०१३

विदेशों में दक्षिण एशिया की पढ़ाई करने वाले छात्र तो अक्सर लखनऊ आकर उर्दू सीखा करते हैं लेकिन इस साल एक निजी संस्थान ने लखनऊ की तहजीब और जुबान सिखाने का बीड़ा उठाया, तो दर्जनों विदेशी छात्र पहुंच गए.

तस्वीर: DW/Suhail Waheed

इन छात्रों ने तीन सप्ताह में उर्दू सीखी और लखनऊ के खानों का लुत्फ भी उठाया. लखनऊ वालों ने इनकी जमकर मेजबानी की तो विदेशी छात्रों ने भी हंसी ठिठोली की और लखनवी तहजीब में, कुछ दिनों के लिए ही सही, ढल जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

अमेरिका के मिशीगन की सारा ने अपने दोस्तों के साथ शाहरुख खान की 'चेन्नई एक्सप्रेस' देखी और शाहरुख के बजाए आमिर खान को अपना पसंदीदा हीरो बताया. यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया की जिल को लखनऊ के शीरमाल और कबाब इतने पसंद आए कि कह पड़ीं, "काश ये सब अमेरिका में भी मिलता." उन्होंने इतना मसालेदार खाना पहले कभी नहीं खाया, "यहां की बिरयानी और शीरमाल को बहुत मिस करूंगी."

कमाल की तहजीब

उन्हें लखनऊ के लड़कों की थोड़ी छेड़खानी भी झेलना पड़ी. पर उनके लहजे में तल्खी नहीं आई. बताया कि सुबह 8 बजे से 4 बजे तक क्लास के बाद उन्होंने ज्यादातर वक्त अपने मेजबान परिवार के साथ गुजारा और कहा कि यहां के लोग बहुत अच्छे हैं. जिल को अच्छी खासी उर्दू आती है, गालिब के शेर तक याद हैं.

हार्वर्ड से मास्टर डिग्री ले चुके समर प्रोग्राम के तहत आए जिमी ब्राउन लखनऊ तो पहली बार आए पर भारत में उनका ये दूसरा दौरा है. उन्होंने बताया कि पहले जब जयपुर आए थे तो लखनऊ की इतनी तारीफ सुनी कि इस बार यहां चले आए, "यहां की तहजीब वाकई कमाल की है." दोस्तों के संग इमामबाड़े की तस्वीरें लीं कि लखनऊ की यादें हमेशा जिंदा रहें.

थोड़ी हंसी ठिठोली भीतस्वीर: DW/Suhail Waheed

कैसे करें 'आदाब'

लिएम जेसिका, साइमन, लॉरा फिंच, क्लोबुकोला, अगेरो, जेनिफर, बेन मिलर.. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, इंपीरियल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के करीब चार दर्जन विदेशी छात्रों ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से लेकर दूसरे भाषा संस्थानों में उर्दू हिन्दी सीखी. लखनऊ का मशहूर अभिवादन 'आदाब' भी सीखा.

नवाब जाफर मीर अबदुल्ला ने इनको तकनीक इस तरह बताई, "लखनवी आदाब के लिए पहले अपने जिस्म को एकदम रिलैक्स रखिए, फिर कोहनी को करीब 45 डिग्री पर मोड़िए ठुड्डी के सामने हथेली ले जाकर अपनी तरफ घुमा लीजिए और फिर थोड़ा थोड़ा ऊपर नीचे लाइए ले जाइए यानी हिलाइए. इस दौरान आंखें आधी खुली होनी चाहिए लेकिन जिसे आप आदाब अर्ज कर रहे हैं उस पर टिकी भी होनी चाहिए."

उस महफिल में तो लगा यूरोप लखनऊ हो गया है. ढेर सारे विदेशी लेकिन सभी लखनऊ के पारंपरिक पोशाकों में, कोई कुर्ता पायजामे में तो कोई धोती में. कुछ लड़कियों ने साड़ी पहन रखी थी तो कुछ ने लखनऊ के चिकन के सलवार सूट पहन रखे थे. माथे पर बिंदी भी और हाथ हाथ भर चूड़ियां. इतना ही नहीं, ये हाथ मेहंदी से भी सजे थे.

लखनऊ की खातिरदारी

जब कोई इतना भारतीय हो जाए तो उसकी खातिर में कैसे कोई कोताही करता. दम बिरयानी, गलावटी कबाब, चिकेन जाफरानी, टमाटर का शोरबा, पनीर पसंदा, रूमाली रोटी, शाही टुकड़ा और मटका कुल्फी खाकर हिंदुस्तानी वेशभूषा वाले ये लोग चटखारे लिए बिना नहीं रह पाए. मौका था यूके इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनीशिएटिव स्टडी प्रोग्राम के तहत आए छात्रों के लिए एक रात्रि भोज का. इस संस्था ने पहली बार विदेशी छात्रों को स्टडी टूर कराया. इसकी सफलता से उत्साहित संस्था ने अब हर साल ऐसे कार्यक्रम करने का फैसला किया है.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 09/09 और कोड 4022. हमें भेज दीजिए ईमेल के जरिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/Stauke

अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज के निदेशक डॉक्टर एहतेशाम के मुताबिक हर साल करीब 30-35 विदेशी छात्र तीन सप्ताह के समर लैंग्वेज प्रोग्राम के तहत उनके संस्थान में उर्दू सीखने आते हैं. इसके अलावा आठ महीने के सेमेस्टर में भी सात आठ छात्र उर्दू सीखते हैं. उन्होंने बताया, "इनमें से ज्यादातर छात्र होटल के बजाए किसी परिचित के घर पर पेइंग गेस्ट के रूप में रुकते हैं. यह इसलिए किया जाता है ताकि वे लखनऊ की तहजीब को करीब से देख सकें."

रिपोर्टः सुहेल वहीद, लखनऊ

संपादनः अनवर जे अशरफ

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