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लखनऊ में दुनिया का सबसे बड़ा स्कूल

२२ अक्टूबर २०१२

स्कूल का पहला दिन हर बच्चे के लिए खास होता है, लेकिन अगर वह पहला दिन 40,000 बच्चों वाले स्कूल में हो तो. लखनऊ के एक स्कूल ने करीब चालीस हजार बच्चों के साथ गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम शामिल कर लिया है.

तस्वीर: AP

नाम भले ही सिटी मॉनटेसरी स्कूल हो, लेकिन यहां किसी अन्य स्कूलों की तरह 12वीं क्लास तक की पढ़ाई होती है. वैसे तो लखनऊ के इस स्कूल ने 2005 में ही 29,212 छात्रों के साथ रिकॉर्ड बना लिया था. इससे पहले सबसे बड़े स्कूल का रिकॉर्ड फिलिपीन्स के मनीला स्थित रिजाल हाई स्कूल के नाम था, जिसमें केवल 19,738 छात्र थे. लेकिन बीते कुछ सालों से लखनऊ का स्कूल बच्चों की संख्या बढ़ा कर अपना ही रिकॉर्ड तोड़े जा रहा है. 39,437 छात्रों के साथ शायद ही दुनिया का कोई स्कूल कभी इसे पछाड़ सके.

स्कूल प्रशासन का कहना है की अगले शिक्षा सत्र के आवेदनों को गिना जाए तो छात्रों की संख्या 45,000 को पार कर जाएगी. सीएमएस के नाम से जाने जाने वाले इस स्कूल में 2,500 टीचर हैं, 3,700 कंप्यूटर और 1,000 क्लासरूम.

पांच बच्चों से शुरुआत

आज हजारों बच्चों को शिक्षा देने वाले इस स्कूल की शुरुआत 1959 में केवल पांच बच्चों से हुई थी. उस समय जगदीश गांधी और उनकी पत्नी भारती ने 300 रुपये का कर्ज लेकर स्कूल शुरू किया. आज स्कूल की बीस शाखाएं हैं और ये हजारों बच्चे किसी एक इमारत में नहीं बल्कि इन सब शाखाओं में फैले हुए हैं. हालांकि ये सभी शाखाएं लखनऊ में ही हैं.

तस्वीर: Búú Ye´pamansha/Icra

शहर में स्कूल का काफी नाम है. स्कूल परीक्षाओं में अच्छे नतीजों और अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए जाना जाता है. पर किसी भी अन्य निजी स्कूल की तरह यहां भी बच्चों के माता पिता को इन सब सुविधाओं की अच्छी खासी कीमत देनी होती है. छोटी कक्षाओं के लिए महीने की फीस 1,000 रुपये जबकि बड़ी की 2,500 रुपये है. हर क्लास में करीब 45 बच्चे होते हैं.

भीड़ में खोती पहचान

ऐसे में छात्रों को इस स्कूल से जुड़े होने पर नाज तो है पर साथ ही स्कूल की भीड़ में खो जाने का डर भी. चौदह साल की रितिका घोष कहती हैं, "इतने बड़े स्कूल में पढ़ने के कई फायदे हैं. एक तो यह ही की आपके ढेर सारे दोस्त बन जाते हैं. लेकिन क्योंकि स्कूल इतना बड़ा है इसलिए आपको अपनी पहचान बनाने में दिक्कत भी आती है. आपको खूब मेहनत करनी पड़ती है कि लोग आप पर ध्यान दें, नहीं तो आप बस यहां पढ़ रहे हजारों बच्चों में से एक बन कर रह जाते हैं."

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पढ़ाई या खेल कूद

अन्य निजी स्कूलों की तरह यहां भी बच्चों पर अच्छे नतीजे लाने और स्कूल की अच्छी छवि बनाए रखने का बोझ है, इसलिए खेल कूद पर उतना ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. स्कूल की एक क्रिकेट टीम है. क्रिकेट कोच राजू सिंह चौहान बताते हैं कि इतने सारे बच्चों में से एक टीम का चयन करना कठिन काम है, "45 हजार बच्चों में से खेल प्रतिभा खोज निकालना मुश्किल है, इसलिए हम इंटर ब्रांच प्रतियोगिताएं रखते हैं ताकि हम बेहतरीन खिलाड़ी ढूंढ सकें और अंत में हमारे पास सबसे अच्छे ग्यारह खिलाड़ियों की टीम होती है."

भारत में स्कूलों के नाम के आगे पब्लिक, प्राइवेट, कॉन्वेंट या मॉनटेसरी लगाने का चलन है, लेकिन कम ही लोग इनका सही अर्थ समझ पाते हैं. मॉनटेसरी स्कूलों की शुरुआत इटली की मारिया मॉनटेसरी ने की थी. उनका मानना था की कम उम्र (3 से 9 साल) के बच्चों को एक साथ स्कूल में पढ़ाया जाए. पढ़ाने का मतलब भी उन पर किताबों का बोझ डालना नहीं बल्कि अलग अलग तरह के व्यवहारिक अभ्यास यानी एक्टिविटीज कराना है. कुछ प्री-स्कूल इस मॉडल को अपनाते हैं. लेकिन एक साथ हजारों बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अगर हो, तो इसे अपनाने मुश्किल ही होगा. वैसे भी पहला मॉनटेसरी स्कूल खोलने वाली मारिया कभी शिक्षा को व्यवसाय नहीं मानती है.

आईबी/ओएसजे (एएफपी)

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