लखनऊ में दौड़ी मुलायम की साइकिल
६ मार्च २०१२राज्य में कांग्रेस की एक बार फिर मिट्टी पलीद होती दिख रही है, जो 50 से ज्यादा सीटें नहीं हासिल करती दिख रही है. राहुल गांधी का जलवा चुनाव प्रचार तक चला और उसके बाद सब कुछ टांय टांय फिस्स हो गया. बीजेपी का भी यूपी में डिब्बा गुल हो रहा है.
बयानबाजी और समीकरण
कांग्रेस के चौथे नंबर पर रह जाने से बीजेपी के नेताओं में जबरदस्त उत्साह है. राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस को अपना 'कोच' बदल देना चाहिए. उनका इशारा कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की तरफ था. जवाब में कांग्रेस के शकील अहमद ने कहा कि उन्हें संतोष है कि यूपी में बीजेपी न तो किसी को समर्थन देने की स्थिति में है और न ही सरकार बनाने का दावा कर सकती है क्यूंकि वह इतनी सीटें जीत ही नहीं पाई है. हालांकि इसके पहले ही बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र कह चुके हैं कि जन भावनाओं का ध्यान रखते हुए उनकी पार्टी किसी को भी समर्थन नहीं देगी और विपक्ष में बैठेगी.
उधर समाजवादी पार्टी के विक्रमादित्य रोड में पार्टी दफ्तर के बाहर जम कर नाच गाना चल रहा है. समाजवादी कार्यकर्त्ता ढोल मजीरों की धुन पर जश्न मना रहे हैं और उससे थोड़ी ही दूर माल एवेन्यू में बीएसपी कार्यालय के बाहर सन्नाटा छाया हुआ है. इस बीच समाजवादी पार्टी के नेता रामआसरे कुशवाह ने कहा है कि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए समाजवादी पार्टी को समर्थन देना चाहिए. उधर कांग्रेस प्रदेश इकाई की अध्यक्ष रीता जोशी ने कहा है कि उनकी पार्टी का मिशन 2012 नाकाम साबित हुआ है. हार की जिम्मेदारी उनकी है.
कांग्रेस का दांव उलटा पड़ा
विधानसभा चुनावों की घोषणा से 48 घंटे पहले केंद्र की यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों में 4.5 फीसदी आरक्षण देने की जो घोषणा की उसका फायदे होने के बजाए नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा. रुझानों से लगता है कि कांग्रेस की इस घोषणा से हिन्दू और पिछड़ा वर्ग दोनों ही उसके खिलाफ गोलबंद हो गए. इसी कारण समाजवादी पार्टी को इतना फायदा हुआ क्योंकि यूपी में वही एक पार्टी पिछड़ों का प्रतिनिधित्व कर रही है. बीजेपी को भी इस 'मज़हबी आरक्षण' का फायदा हुआ. उमा भारती को मैदान में उतारने का भी फायदा मिला और बीएसपी से निकले पिछड़े नेता गए बाबू सिंह कुशवाहा को राजनीतिक प्रश्रय देने का भी लाभ उसे मिला.
सरकार विरोधी रुझान
भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी बीएसपी की सरकार के खिलाफ रुझान चुनावों से पहले ही दिखने लगा था . एनआरएचएम घोटाले के बाद तो सरकार के खिलाफ आम जनमत लगभग तैयार हो गया था. मायावती की सरकार में एक के बाद एक मंत्रियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की और लोकायुक्त की जांच के बाद करीब दर्जन भर मंत्रियों उनके पदों से हटाए जाने से सरकार पर भ्रष्टाचार का टैग लग गया था. हालांकि बीएसपी को अभी भी 100 सीट मिलने के अनुमान से ये तो साबित होता है कि बीएसपी का दलित वोट आधार अभी भी कायम है.
रिपोर्टः एस वहीद,लखनऊ
संपादनः ए जमाल