महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की 2017 की रिपोर्ट दर्शाती है कि देश में 53.22 फीसदी बच्चों को यौन शोषण के एक या अधिक रूपों का सामना करना पड़ा, जिसमें से 52.94 फीसदी लड़के इन यौन उत्पीड़न की घटनाओं का शिकार हुए.
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देश में जब बात बच्चों से यौन उत्पीड़न के मामलों की आती है तो दिमाग में लड़कियों के साथ होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाएं आंखों के सामने उमड़ने लगती हैं, लेकिन इसका एक पहलू कहीं अंधकार में छिप सा गया है. चेंज डॉट ओआरजी के माध्यम से बाल यौन उत्पीड़न के मामले को उठाने वाली याचिकाकर्ता, फिल्म निर्माता और लेखक इंसिया दरीवाल ने मुंबई से फोन पर आईएएनएस को बताया, "सबसे बड़ी समस्या है कि इस तरह के मामले कभी सामने आती ही नहीं क्योंकि हमारे समाज में बाल यौन उत्पीड़न को लेकर जो मानसिकता है, उसके कारण बहुत से मामले दर्ज ही नहीं होते और होते भी हैं, तो मेरी नजर में बहुत ही कम ऐसा होता है."
दरीवाल के अनुसार लोग इस बात को स्वीकारते ही नहीं हैं कि लड़कों के साथ भी ऐसा कुछ हो सकता है, "इस तरह के मामले सामने आने पर समाज की पहली प्रतिक्रिया होती है कि लड़कों के साथ तो कभी यौन शोषण हो नहीं सकता, क्योंकि वे पुरुष हैं और पुरुषों के साथ कभी यौन उत्पीड़न नहीं होता." वे आगे कहती हैं, "समाज का लड़कों को देखने का यह जो नजरिया है, वह ठीक नहीं है क्योंकि पुरुष बनने से पहले वह लड़के और बच्चे ही होते हैं और बच्चों में कोई लड़के-लड़की का भेद नहीं होता."
वे बताती हैं कि लड़कों का शोषण अधिकतर पुरुषों द्वारा ही हो रहा है, "मेरे हिसाब से यह काफी नजरअंदाज कर दी जाने वाली सच्चाई है और मैं पहले भी कई बार बोल चुकी हूं कि हम जो बच्चों और महिलाओं पर यौन हिंसा समाज में देख रहे हैं, कहीं न कहीं हम उसकी जड़ को नहीं पकड़ पा रहे हैं."
लड़कों के साथ यौन उत्पीड़न होने पर उस पर पर्दा करने के बारे में उन्होंने कहा, अगर कोई लड़का अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले को लेकर बोलता भी है, तो पहले लोग उसपर हंसेंगे, उसका मजाक उड़ाएंगे और उसकी बातों का विश्वास भी नहीं करेंगे, कहेंगे तुम झूठ बोल रहे हो, यह तो हो ही नहीं सकता. हंसी और मजाक बनाए जाने के कारण लड़कों को आगे आने से डर लगता है, इसलिए समाज बाल यौन उत्पीड़न में एक अहम भूमिका निभा रहा है."
दरीवाल बताती हैं कि पिछले कुछ समय से इस दिशा में लोगों में जागरूकता आई है और सरकार भी इस ओर ध्यान दे रही है, "आज सामान्य कानूनों को निष्पक्ष बनाने की प्रक्रिया चल रही है, इसकी शुरुआत पॉस्को कानून से हुई और अब धारा 377, पुरुषों के दुष्कर्म कानून को भी देखा जा रहा है. अब अखिरकार हम लोग लिंग समानता की बात कर सकते हैं, जिससे वास्तव में समानता आएगी. लिंग समानता का मतलब यह नहीं है कि वह एक लिंग को ध्यान में रखकर सारे कानून बनाए, यह सिर्फ महिलाओं की बात नहीं है. पुरुष और महिलाओं को समान रूप से सुरक्षा मिलनी चाहिए."
बच्चों की इन हरकतों को अनदेखा ना करें
बच्चों की इन हरकतों को अनदेखा ना करें
अपनी परेशानी को बच्चे हमेशा शब्दों में जाहिर नहीं कर पाते. अगर आपको अपने बच्चे में कुछ बदलाव दिख रहे हैं, तो उससे बात करें. यह सुनिश्चित करें कि वह यौन उत्पीड़न का शिकार तो नहीं हो रहा है.
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चुपचाप रहना
अगर आपका बच्चा अचानक ही चुपचाप रहने लगा है, तो इसे बच्चे का नखरा समझ कर अनदेखा मत कीजिए. शायद वह आपसे कुछ कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा है. बच्चे से बात कीजिए.
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नींद ना आना
अगर किसी वजह से बच्चा कई कई रात सो नहीं पा रहा है या फिर बुरे सपनों की शिकायत कर रहा है, नींद से रोता हुआ जग रहा है, तो उससे उसके डर की वजह पूछिए.
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गुस्सा करना
हर उम्र में बच्चे अलग अलग तरह का बर्ताव सीखते हैं. कभी वे अचानक ही जिद्दी हो जाते हैं, कभी लड़ाके लेकिन अगर यह गुस्सा आम बर्ताव से बिलकुल ही अलग है, तो इसकी वजह समझने की कोशिश करें.
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अकेले रहना
अगर बच्चे के साथ कुछ ऐसा हुआ है, जिससे वह डर गया है, तो वह सबसे कट कर रहने लगता है क्योंकि उसे खुद से घृणा आती है. ऐसे में बच्चे को अकेला ना छोड़ें.
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किसी विशेष व्यक्ति या जगह से डर
अगर बच्चा स्कूल जाने से कतरा रहा है, परिवार के किसी मित्र या रिश्तेदार के पास जाने से मना कर रहा है, तो उससे प्यार से इसकी वजह पूछें. हो सकता है कि बच्चे के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा हो.
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खाना ना खाना
खाना खाने में लगभग सभी बच्चे नखरे करते हैं लेकिन भूख ना लगने की वजह या तो बीमारी हो सकती है या फिर मानसिक तनाव. छोटे बच्चों को तनाव से निकालना बेहद जरूरी है.
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बिस्तर गीला करना
रात में सोते समय अगर बच्चा बिस्तर गीला कर रहा है, तो उसे डांट फटकार कर और बुरे महसूस ना कराएं. बतौर माता पिता उसकी तह तक पहुंचने की कोशिश करें.
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सेक्स से जुड़े नये शब्द
टीवी और स्कूल के जरिये बच्चे नये शब्द सीखते हैं लेकिन अगर यह शब्दावली अश्लील शब्दों की ओर जा रही है, तो हो सकता है कि कोई बच्चे को ऐसा सिखा रहा हो और उसका फायदा उठाना चाह रहा हो.
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पेशाब के दौरान दर्द
अगर बच्चा पेशाब के दौरान दर्द की शिकायत करता है तो फौरन उसे डॉक्टर के पास ले जाएं और सुनिश्चित करें कि उसके साथ यौन दुर्व्यवहार तो नहीं हुआ है. डॉक्टर से कोई भी बात ना छिपाएं.
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जननांगों के इर्दगिर्द चोट
अपने बच्चे को जननांगों के बारे में जानकारी दें. बच्चे को नहलाते वक्त ध्यान दें कि गुप्तांगों के इर्दगिर्द कहीं किसी तरह की कोई चोट तो नहीं है. और सबसे बढ़ कर बच्चे से प्यार से बात कर जानकारी हासिल करें.
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महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी से मिले समर्थन पर उन्होंने कहा, "उन्होंने मेरे काम की सराहना की है और कहा कि यह काम काफी जरूरी है. मैंने उनसे एक स्टडी की मांग की थी, जिसमें यह देखना था कि बाल यौन उत्पीड़न की हमारे समाज में कितनी प्रबलता है और बच्चों और पुरुषों पर इसके क्या प्रभाव हैं. इसमें उनके संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है, उनकी मानसिकता और शारिरिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है. इस स्टडी के नतीजों से मुझे मापदंड तैयार करने हैं क्योंकि जब तक हम जड़ की जांच नहीं करेंगे, तब तक नहीं पता चलेगा कि यह क्यों हो रहा है."
बाल यौन उत्पीड़न मामलों में समाज की गलती के सवाल पर इंसिया ने कहा, "मानसिकता बदलना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर हम लोग मानसिकता नहीं बदल पाए तो कानून कितने भी सख्त हो जाएं, उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. जब भी कोई घटना होती है, तो हम सरकार, कानून और वकीलों को दोषी ठहराते हैं. लेकिन हमें कहीं न कहीं खुद को भी देखना चाहिए क्योंकि हमारे समाज में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग भूमिका तैयार कर दी गई है, जिसे उन्हें निभाना पड़ता है, इसे बदलने की जरूरत है."
भारत सरकार ने लिंग निष्पक्ष कानून बनाने के मद्दनेजर लड़कों के साथ होने वाले यौन शोषण को मौजूदा यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉस्को) अधिनियम में संशोधनों को मंजूरी दे दी है, जिसे कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा जाना बाकी है.
रिपोर्ट: जितेंद्र गुप्ता (आईएएनएस)
दिल्ली दुनिया का सबसे भयानक महानगर
दिल्ली दुनिया का सबसे भयानक महानगर
थॉम्पसन रॉयटर्स फॉउंडेशन के एक सर्वे में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में दिल्ली दुनिया के सबसे खराब महानगरों के तौर पर सामने आया.
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खतरनाक शहर
जून से जुलाई 2017 के बीच दुनिया के 19 महानगरों में यह सर्वे कराया गया था. दिल्ली में हुये निर्भया गैंगरेप की पांचवी बरसी से ठीक दो महीने पहले एक बार फिर सामने आया है कि दिल्ली महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक शहर है.
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चौथा स्थान
दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला दूसरा सबसे बड़ा महानगर है. इसकी आबादी लगभग 2 करोड़ 60 लाख है. इस सर्वे में बलात्कार, यौन अपराधों और उत्पीड़न के मामलों में दिल्ली को बेहद खराब स्थान मिला. नतीजों में दिल्ली दुनिया का चौथा सबसे भयानक महानगर साबित हुआ.
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बांग्लादेश से भी पिछड़ा
महिलाओं की सुरक्षा के मामले में दिल्ली की स्थिति बांग्लादेश के ढाका से भी बदतर निकली. सर्वे के नतीजों में ढाका को सातवां स्थान मिला वहीं लाओस को आठवां स्थान मिला .
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सबसे खतरनाक शहर
इस लिस्ट में दुनिया का सबसे खतरनाक शहर के तौर पर मिस्र के काहिरा का नाम सामने आया. वहीं महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में पाकिस्तान का कराची शहर दुनिया का दूसरा सबसे भयानक महानगर साबित हुआ.
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आर्थिक मामलों में भी खराब
महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों के अलावा आर्थिक स्त्रोत जैसे शिक्षा, जमीन में हिस्सा, बैंक अकाउंट आदि में भी महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर भी दिल्ली को नीचे से तीसरा स्थान मिला. इस सूची में लंदन सबसे बेहतरीन अंकों के साथ पहले पायदान पर रहा.
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स्वास्थ्य के मामले में भी बुरी हालत
दिल्ली की मातृ मृत्यु दर पर नियंत्रण सहित स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महिलाओं की पहुंच को लेकर भी स्थिति खराब है. दिल्ली फिर से नीचे से पांचवें स्थान पर है, जो लाओस से भी नीचे है, जबकि लंदन एक बार फिर शीर्ष पर रहा.
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सबसे सुरक्षित शहर
महिलाओँ के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के खतरों के मामले में टोक्यो सबसे सुरक्षित शहर के तौर पर सामने आया. दिल्ली की तुलना में यौन अपराधों के मामले में पाकिस्तान के कराची शहर को बेहतर माना गया.