रेलवे स्टेशन की दीवारों और सार्वजनिक शौचालयों में लड़कियों के नाम के साथ उनका मोबाइल नंबर लिखकर जनहित में यह बताने वालों की कमी नहीं है कि ये लड़कियां वेश्याएं हैं और आप इन नंबरों पर इनसे संपर्क कर चरम सुख पा सकते हैं.
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पब्लिक टॉयलेट में लड़कियों के नाम और नंबर देख मन में कुछ सवाल उठते हैं. इस तरह की कुंठित मानसिकता वाले इन मनोरोगियों में इतनी अमानवता आखिर आती कहां से है? ये निर्लज्ज ऐसा काम कर आखिर किस मुंह में अपनी मां और बहनों का सामना करते होंगे? इनकी भी बेटियां होंगी या भविष्य में ये भी किसी बच्ची के पिता बनेंगे, तो क्या उनसे नजरें मिला पाएंगे?
इन्हीं सवालों के जवाब देते हुए दिल्ली के एक निजी अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ तराना सैनी ने आईएएनएस से कहा, "यह एक तरह की बिगड़ी हुई मनोदशा ही है और यह मनोदशा उन्हीं लोगों में देखने को मिलती है, जो महिलाओं को हवस मिटाने की वस्तु के तौर पर देखते हैं. कई मामलों में इस तरह के लोग दोहरा जीवन जी रहे होते हैं. समाज के सामने यह सज्जनों की तरह बर्ताव करते हैं, लेकिन असल में भीतर से कुंठित मानसिकता के शिकार होते हैं."
नोएडा में एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करने वाली दिशा (काल्पनिक नाम) आईएएनएस के साथ अपनी आपबीती साझा करते हुए कहती हैं, "पिछले कुछ महीनों से मेरे पास ब्लैंक कॉल आ रहे थे. कॉल करने वाला बस मेरा नाम पूछता था और फोन काट देता था. यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा. एक दिन अचानक अंजान नंबर से मुझे एक व्हाट्सएप मैसेज मिला, जिसमें लिखा था कि आपके रेट क्या हैं? आप एक घंटे का कितना चार्ज करती हैं? जब मैंने यह पढ़ा तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. पूछने पर उस शख्स ने बताया कि उसे एक मेट्रो स्टेशन के पुरुषों के टॉयलेट की दीवार से मेरा नाम और नंबर मिला."
हैरत कि बात यह है कि दिशा के ऑफिस में काम करने वाली सुमेधा अग्रवाल का अनुभव भी कुछ इसी तरह का रहा है और दोनों ने समान रूप से प्रताड़ना झेली है. दिशा कहती हैं, "उस शख्स को जब मैंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की धमकी दी, तो वह डरकर माफी मांगने लगा और उसने मुझे टॉयलेट की दीवार पर लिखे लड़कियों के नाम और नंबर का स्क्रीनशॉट भेजा. इसमें मेरे ऑफिस की कलीग सुमेधा और एक और महिला मित्र का भी नाम और नंबर लिखा था."
जिस मेट्रो स्टेशन के टॉयलेट में ये सब लिखा गया, वह दिशा और सुमेधा के दफ्तर के पास ही है. दिशा कहती हैं, "हम दोनों पुलिस को इसकी जानकारी देने के बाद उस मेट्रो स्टेशन गए और वहां तैनात सीआईएसएफ के कर्मी को इससे अवगत कराया. बाकायदा, वहां तैनात सुरक्षा अधिकारी टॉयलेट में पहुंचे और उसका मुआयना किया और हमें बताया कि वहां दर्जनभर लड़कियों के नाम लिखे हुए हैं, जिसे हमने काले पेंट से मिटवाया."
देखिए लड़कियां क्या क्या झेल रही हैं
देखिए लड़कियां क्या क्या झेल रही हैं
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था 'सेव द चिल्ड्रन' के कुछ आंकड़े आपको हैरान कर सकते हैं. देखिए लड़कियों को क्या क्या झेलना पड़ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Rezayee
जबरदस्ती सेक्स
दुनिया भर में 15 से 19 साल की ऐसी लगभग डेढ़ करोड़ लड़कियां हैं, जिन्हें सेक्स के लिए मजबूर किया गया.
तस्वीर: Manuel Pedreza/AFP/Getty Images
एचआईवी
हर हफ्ते 15 से 24 साल की उम्र की लगभग सात हजार लड़कियां एचआईवी से संक्रमित हो रही हैं.
तस्वीर: AP
महिला खतना
दुनिया भर में 20 करोड़ ऐसी लड़कियां और महिलाएं हैं जिनका खतना यानी एफजीएम किया गया है.
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बेघर बेटियां
अलग अलग युद्धों और संघर्षों के कारण बेघर होने वाली लड़कियों की संख्या तीस लाख से भी ज्यादा है.
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स्कूल में नहीं
शांतिपूर्ण देशों की तुलना में युद्धग्रस्त इलाकों में लड़कियों का स्कूल छूटने की संभावना दोगुनी होती है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
अंधकारमय भविष्य
आंकड़े बताते हैं कि 6.2 करोड़ लड़कियां ऐसी हैं जिनकी पढ़ने लिखने की उम्र है लेकिन वे स्कूल नहीं जा पा रही हैं.
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कम उम्र में शादी
हर साल 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही कर दी जाती है. पांच में से एक 18 साल से पहले ही मां भी बन जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki
खतरनाक ट्रेंड
ट्रेंड को देखें तो 2030 में ही एक करोड़ नाबालिग लड़कियों की शादी होगी, जिनमें 20 लाख की उम्र 15 साल से कम होगी.
तस्वीर: Stephanie Sinclair
शिक्षा से होगा सुधार
कार्यकर्ता कहते हैं कि लड़कियों को स्कूली शिक्षा पूरी करने दी जाए तो 2030 तक पांच करोड़ बाल विवाह रोके जा सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Verma
मुसीबतें ही मुसीबतें
छोटी उम्र में शादी होने से लड़कियां शिक्षा और बेहतर जीवन के अवसरों से वंचित हो जाती हैं. शोषण, बीमारियां और गरीबी उन्हें घेर लेती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Rezayee
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इसी मेट्रो स्टेशन पर तैनात सीआईएसएफ के एएसआई देवेंद्र सिंह ने आईएएनएस को बताया, "इस तरह की शिकायत को गंभीरता से लिया गया. हमने टॉयलेट की नियमित जांच के लिए बोल दिया है. अब हम आगे से सजग होकर काम करेंगे." वह आगे कहते हैं, "दरअससल, दिक्कत यही है कि आज का युवा बहुत बेशर्म हो गया है. उसे गलत और सही की समझ नहीं है. अब हम अंदर क्या हो रहा है या इस शख्स के दिमाग में क्या चल रहा है, इसे तो पढ़ नहीं सकते."
दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर शौचालयों के रखरखाव का ठेका सुलभ इंटरनेशनल के पास है. नोएडा मेट्रो लाइन पर सुलभ इंटरनेशनल के ठेकेदार सुबोध इस पर लीपापोती करने में जुट गए. पुलिस शिकायत पर वह मेट्रो स्टेशन पर नियमित चेकिंग की दुहाई देने लगे.
मामले की गंभीरता को देखकर दिल्ली मेट्रो के प्रवक्ता अनुज दयाल ने आईएएनएस को बताया, "मामला संज्ञान में आने के बाद हम दिल्ली में सभी मेट्रो स्टेशनों के शौचालयों में जांच करेंगे कि कहीं किसी और शौचालय में तो इस तरह की हरकत नहीं की गई."
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर तराना इस मामले पर रोशनी डालते हुए कहती हैं, "सबसे पहले यह सोचना बंद करना होगा कि एक शिक्षित और समाज में रसूख वाला शख्स इस तरह की हरकत नहीं कर सकता. एक ही ऑफिस की कुछ लड़कियों के नंबर एक साथ सार्वजनिक स्थान पर लिखे गए हैं, तो इसमें पूरी संभावना है कि ऑफिस के ही किसी शख्स ने द्वेष में यह हरकत की हो."
लड़कियों के नाम और नंबर शौचालयों में लिखकर कोई भी उन्हें समाज की नजर में सेक्स वर्कर नहीं बना सकता. जरूरी है कि लड़कियां इस से डर कर चुप हो कर ना बैठ जाएं, बल्कि दिशा और सुमेधा की ही तरह इसके खिलाफ आवाज उठाएं.
रीतू तोमर (आईएएनएस)
यहां है टॉयलेट और रसोई एक साथ
यहां है टॉयलेट और रसोई एक साथ
क्या आप रसोई के साथ टॉयलेट शेयर करने के बारे में सोच सकते हैं. शायद नहीं. लेकिन हांगकांग में आज यह नजारा हकीकत बन चुका है. जगह की कमी ने लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
खाना बनाने की जगह
यहां टॉयलेट और चॉपिंग बोर्ड की दूरी में फासला बेहद ही कम है. तस्वीर में नजर आ रहा है कि कैसे चावल बनाने का कुकर, टीपॉट और किचन के दूसरे बर्तन टॉयलेट सीट के पास पड़े हुए है. हांगकांग के कई अपार्टमेंट में रसोई और टॉयलेट ऐसे ही एक साथ बने हुए हैं.
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किचन और बाथरूम
कैनेडियन फोटोग्राफर बेनी लेम ने हांगकांग में बने ऐसे अपार्टमेंट और यहां रह रहे लोगों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया. इन तस्वीरों की सिरीज "ट्रैप्ड" के तहत एक गैरलाभकारी संस्था द सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन (एसओसीओ) के साथ तैयार किया गया है. यह संस्था हांगकांग में गरीबी उन्मूलन और नागरिक अधिकारों के लिए काम करती है.
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जगह की कमी
75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में अब जगह की कमी होने लगी है. यहां घरों की कीमतें आकाश छू रही हैं. प्रॉपर्टी के मामले में हांगकांग दुनिया का काफी महंगा शहर है. कई लोगों के पास इस तरह से रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है. और शायद, लोगों ने भी ऐसे रहना सीख भी लिया है.
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अमानवीय स्थिति
एसओसीओ के मुताबिक, हांगकांग की जनगणना और सांख्यिकी विभाग की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो लाख लोग ऐसे ही 88 हजार छोटे अपार्टमेंट में अपना जीवन गुजार रहे हैं. स्वयं को ऐसी स्थिति में ढालने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
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दोगुनी कीमत
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग के प्रमुख इलाकों में साल 2007 से 2012 के बीच अपार्टमेंट की कीमत दोगुनी हो गई. इन छोटे-छोटे कमरों में रहने वालों कई लोग कहते हैं कि उन्हें यहां जाने से डर भी लगता है. वहीं कुछ कहते हैं कि उनके लिए यहां रहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उनके पास यहां सांस लेने के लिए खुली हवा भी नहीं होती.
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एक गद्दे का घर
अपने एक गद्दे के अपार्टमेंट में एक किरायेदार टीवी देखते हुए. यहां कम आय वालों के पास ऐसे रहने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है. अब इन लोगों ने ऐसे रहना सीख लिया है. भले ही वे इस जगह खड़े होकर न तो अंगड़ाई ही ले पाते हो या न ही सुस्ता पाते हों. लेकिन यहां रहते-रहते इन लोगों की कॉकरोच और खटमल से दोस्ती जरूर हो जाती है.
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पिंजरा या ताबूत
फोटोग्राफर लैम दो साल तक हांगकांग के ऐसे ही गरीब इलाके को कैमरे में कैद करते रहे हैं. इन इलाकों में गरीब और अमीर के बीच की खाई बहुत गहरी है. इन फ्लैट्स को अकसर पिंजरे और ताबूत की संज्ञा दी जाती है. जो होटल, मॉल्स, टॉवर वाले चमचमाते हांगकांग का चौंकानेवाला चेहरा उजागर करता है.
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सरकारी मशीनरी
रहने का यह तरीका लोगों की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर डालता है. हालांकि कई लोग सालों से ऐसे ही यहां गुजर-बसर कर रहे हैं. सरकारी प्रक्रिया के तहत घर मिलने में यहां औसतन पांच साल का समय लगता है. लेकिन यह इंतजार एक दशक तक बढ़ना बेहद ही आम है.
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मानवीय गरिमा का अपमान
संयुक्त राष्ट्र मानता है कि ऐसे पिंजरों और ताबूत के आकार वाले घरों में रहना, मानवीय गरिमा के विरुद्ध है. हालांकि हांगकांग सरकार कहती है कि साल 2027 तक यहां करीब 2.80 लाख नए अपार्टमेंट बनाए जाएंगे. एसओसीओ कहता है कि जो लोग इन अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं उनके लिए इस बीच भी कदम उठाए जाने चाहिए. (अयू पुरवानिग्से)