केरल हाई कोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाहों पर फैसले में कहा है कि हर ऐसी शादी को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का खेल नहीं बनाया जा सकता है. लव जिहाद कहकर हिंदू-मुस्लिम संबंधों को खारिज करने वालों की भी कोर्ट ने खबर ली है.
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केरल की श्रुति और अनीस अहमद, खुशकिस्मत निकले कि आखिर उन्हें अदालत ने साथ रहने की अनुमति दे दी. इस दंपत्ति की खुशियां उस समय बिखर ही गयी थीं जब श्रुति के पिता ने रजिस्टर्ड शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया और अपनी बेटी को घर पर एक तरह से नजरबंद ही कर दिया. कन्नूर जिले के अनीस ने केरल हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डाली जिसकी सुनवाई करते हुए जस्टिस वी चिदम्बरेश और जस्टिस सतीश नाइनन की खंडपीठ ने ये अभूतपूर्व फैसला सुनाया.
कोर्ट ने प्रेम-विवाह की नैतिक और सामाजिक मान्यता पर अंगुली उठाने वालों को फटकार लगायी और कहा कि प्रेम को धर्म और जाति की संकीर्णता में बांधना बंद करो. केरल में सामुदायिक सौहार्द मत बिगाड़ों जो यूं ‘ईश्वर का अपना घर” कहा जाता है. श्रुति के साहस और धैर्य की प्रशंसा करते हुए कोर्ट ने प्रख्यात अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और कवयित्री माया एजेंलु की कुछ पंक्तियां उद्धृत की- "प्रेम नहीं पहचानता कोई अवरोध, वो पार कर लेता है बाधाएं, लांघ जाता है बाड़े, भेद देता है दीवारें, पहुंच जाता है उम्मीदों से भरे अपने गंतव्य पर.” कोर्ट ने संवैधानिक अधिकारों के साथ साथ नागरिक दायित्वों की याद भी दिलायी. उसने न सिर्फ स्त्री अधिकारों पर मुहर लगायी, निजता, मानवाधिकार, वयस्क अधिकार पर भी स्थिति स्पष्ट कर दी है. लोकतंत्र का निर्माण जिन उसूलों से होता है, कोर्ट ने उन उसूलों को ही एक तरह से अपने फैसले में पुनर्स्थापित किया है.
भारत की मशहूर हिंदू-मुस्लिम जोड़ियां
लव जिहाद जैसे जुमले भी भले ही सियासत में उछाले जाते हों, लेकिन अंतर धार्मिक शादियां धर्मों के बीच बढ़ रही दूरी को पाटने का एक अच्छा तरीका है. चलिए डालते नजर कुछ ऐसी ही जोड़ियों पर.
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शाहरुख खान-गौरी खान
बॉलीवुड के किंग कहे जाने वाले शाहरुख खान ने पंजाबी परिवार में जन्मी गौरी छिब्बर से 1991 में शादी की, जिसके बाद वह गौरी खान बन गईं. दोनों के तीन बच्चे हैं.
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ऋतिक रोशन-सुजैन खान
अभिनेता ऋतिक रोशन और सुजैन खान ने 2000 में शादी की. लेकिन 2014 में दोनों नो अलग होने का फैसला किया. सुजैन खान अभिनेता संजय खान की बेटी हैं. यहां उन्हें अभिनेत्री पूजा हेगड़े के साथ देखा जा सकता है.
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सलमान खान का परिवार
सलमान खान ने तो अब तक शादी नहीं की है. लेकिन उनके परिवार में कई शादियां ऐसी हैं जिनमें अलग अलग धर्म के लोग मिले. इसमें सलीम खान-सुशीला चरक, हेलेन, अलवीरा-अतुल अग्निहोत्री, अरबाज-मलाइका, सोहेल खान-सीमा सचदेव जैसी कई जोड़ियां शामिल हैं.
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सैफ अली खान-अमृता सिंह-करीना कपूर
अभिनेता सैफ अली खान और अमृता सिंह की शादी लगभग 13 साल चली. 2004 में वे अलग हो गए. इसके बाद उन्होंने 2012 में करीना कपूर से शादी की.
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इमरान हाशमी-परवीन साहनी
बॉलीवुड में अपने किसिंग सीन के लिए मशहूर इमरान हाश्मी ने 2006 में परवीन साहनी से शादी की. यह तस्वीर "डर्टी पिक्चर" की प्रमोशन के वक्त है जिसमें वह अभिनेत्री विद्या बालन के साथ दिख रहे हैं.
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मुमताज-मयूर माधवानी
गुजरे जमाने की सबसे हिट अभिनेत्रियों में से एक मुमताज का संबंध एक मुस्लिम परिवार से रहा है. 1974 में उन्होंने कारोबारी मयूर माधवानी से शादी कर अपना घर बसाया.
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नरगिस दत्त-सुनील दत्त
नरगिस का नाम पहले फातिमा राशिद था. पर्दे पर तो उनकी जोड़ी राजकपूर के साथ हिट थी लेकिन असल जिंदगी में उन्होंने सुनील दत्त को अपना हमसफर बनाया.
हरफनमौला गायक और अभिनेता किशोर कुमार ने मशहूर अभिनेत्री मधुबाला से शादी की. मधुबाला का नाम पहले मुमताज जहान देहलवी था और उन्हें हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में गिना जाता है. मुगले आजम में अनारकली के किरदार में उन्होंने बखूबी जान डाली.
साठ और सत्तर के दशक की ग्लैमरस अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने भी भारतीय क्रिकेट के कप्तान मंसूर अली खान पटौदी को अपने जीवन साथी के रूप में चुना. पटौदी ने 70 साल की उम्र में 2011 में दुनिया को अलविदा कह दिया.
अपनी मुस्कान और शानदार अभिनय के लिए मशहूर वहीदा रहमान ने 1974 में अभिनेता शशि रेखी से शादी की जो बतौर अभिनेता कमलजीत के नाम से जाने जाते थे. लंबी बीमारी के बाद 2000 में उनके पति का निधन हो गया.
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उस्ताद अमजद अली खान- शुभालक्ष्मी
सरोद के सुरों से जादू करने वाले उस्ताद अमजद अली खान ने 1976 में भारतनाट्यम नृत्यांगना शुभलक्ष्मी बरुआ से शादी की. उनके दो बेटे अमान और अयान भी सरोद बजाते हैं.
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जरीना वहाब-आदित्य पंचोली
1980 के दशक की एक जानी मानी अभिनेत्री जरीना वहाब ने फिल्म अभिनेता आदित्य पंचोली के साथ विवाह रचाया. उनके बेटे सूरज पंचोली ने हीरो के साथ बॉलीवुड में कदम रखा.
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फराह खान-शिरीष कुंदर
कोरियोग्राफर से निर्देशन में उतरीं फराह खान ने 2004 में शिरीष कुंदर से शादी की. अपने बयानों से कई विवादों में रहे कुंदर की मुलाकात फराह से उनकी फिल्म मैं हूं ना पर काम करने के दौरान हुई.
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सुनील शेट्टी-माना शेट्टी
अभिनेता सुनील शेट्टी की पत्नी माना शेट्टी मुस्लिम पिता और हिंदू मां की संतान हैं. शादी से पहले उनका नाम माना कादरी था. 1991 में दोनों एक दूसरे के हो गए.
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मनोज बाजपेयी-शबाना रजा
सत्या, शूल, कौन, वीर-जारा, अलीगढ़ और राजनीति जैसी फिल्मों में अपने जौहर दिखाने वाले अभिनेता मनोज बाजपेयी ने 2006 में शबाना रजा से शादी की, जिसके बाद उन्होंने अपना नाम नेहा रख लिया.
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सचिन पायलट-सारा पायलट
कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट की पत्नी का नाम सारा पायलट हैं. सारा कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला की बेटी हैं. दोनों के दो बेटे आरान और विहान हैं.
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उमर अब्दुल्ला-पायल नाथ
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने 1994 में पायल नाथ से शादी की. लेकिन 2011 में वे अलग हो गए.
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मुख्तार अब्बास नकवी-सीमा नकवी
मुख्तार अब्बास नकवी बीजेपी नेता और पार्टी का एक अहम मुस्लिम चेहरा हैं. उनकी पत्नी का नाम सीमा नकवी है, जिनका संबंध एक हिंदू परिवार से रहा है.
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जहीर खान-सागरिका घटके
मशहूर क्रिकेटर जहीर खान ने अभिनेत्री सागरिका घटके के साथ शादी की है. सागरिका घटके चक दे, रश और जी भर के जी ले जैसी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं.
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लेकिन कोर्ट के इस उदार, पारदर्शी और दूरगामी प्रभाव वाले फैसले की रोशनी में आप अगर कुछ समय पीछे लौटें तो ठिठक जाएंगे क्योंकि इसी कोर्ट से न्याय की गुहार लगाने एक मुस्लिम युवा शफी जहां भी पहुंचा था जिसकी पत्नी को उसके घरवालों ने यह कहकर उससे अलग कर दिया था कि शफी ने झांसा देकर उनकी बेटी का धर्म परिवर्तन कराया और शादी की. वहीं अखिला से हदिया बनी युवती ने इसे अपनी पसंद का रिश्ता बताया था. उनकी शादी कोर्ट में दर्ज है. यह मामला इतना बढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी को आदेश दे डाला कि इसमें कोई अवांछित हरकत तो नहीं हुई है यानी कि धर्म परिवर्तन के जरिए आतंकवादी साजिश तो नहीं हो रही है.
यह एक ऐसी बात थी जिसने शफी और हदिया की उम्मीदें बिखेर दीं. केरल सरकार ने उनका बचाव किया और सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह मामला इस तरह का नहीं है और एनआईए जांच की भी जरूरत नहीं है. हदिया भी अपने मातापिता के घर में एक तरह से नजरबंद ही है और शफी 30 अक्टूबर का इंतजार कर रहा है जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर सकता है. शफी की कहानी भी केरल हाई कोर्ट से गुजरी थी. हाई कोर्ट ने हदिया के मामले में परिवार और संस्कार की दलीलें दी थीं और कोर्ट कुछ ऐसी बातें कहता दिखता था मानो वो स्त्री आजादी और मानवाधिकारों को लेकर अनुदार हो. उसी कोर्ट की एक पीठ- 'लव जिहादियों' और रूढ़िवादियों को फटकार रही है तो हैरानी होती है. जाहिर है शफी और हदिया के मामले में यह आदेश भी एक नजीर की तरह काम कर सकता है.
रोजाना 20 हजार नाबालिग बनती हैं दुल्हन
दुनिया के तमाम देशों में बाल विवाह पर कानूनी बंदिशें हैं लेकिन इसके बावजूद रोजाना तकरीबन 20 हजार लड़कियों की शादी गैरकानूनी रूप से होती है. वहीं तकरीबन 10 करोड़ नाबालिग लड़कियों के पास इससे बचने के लिए कोई कानून नहीं है.
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बाल विवाह
वर्ल्ड बैंक और बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 75 लाख लड़कियां बाल विवाह का शिकार होती हैं और सबसे अधिक बाल विवाह पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में होते हैं.
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जिम्मेदार समाज
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे विवाहों का सबसे बड़ा कारण सामाजिक परंपराएं और धार्मिक प्रथायें हैं जिनके चलते बाल विवाह कानूनों को समाजिक स्वीकारता नहीं मिलती है और प्रथाओं के नाम पर ये समाज में बने रहते हैं.
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शिक्षा और स्वास्थ्य
रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह लड़कियों को न सिर्फ शिक्षा के अवसरों से वंचित करता है बल्कि उनकी सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं. इन लड़कियों पर घरेलू हिंसा और यौन प्रताड़ना का खतरा भी बना रहता है.
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गरीबी बनी वजह
स्टडी में गरीबी को इसकी एक बड़ी वजह बताया गया है. कई बार अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए भी मां-बाप अपनी लड़कियों की जल्दी शादी करा देते हैं और अफ्रीका में दुल्हन पर तो कीमत भी मिलती है.
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कानून भी नहीं
वर्ल्ड बैंक ने जून 2016 की एक रिपोर्ट में कहा था कि बाल विवाह पर रोक से जनसंख्या वृद्धि दर पर लगाम लगेगी और लड़कियों के शैक्षणिक स्तर में बेहतरी आयेगी. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की तकरीबन 10 करोड़ लड़कियों के पास ऐसे विवाहों से बचने के लिए कानून नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/A. Joyce
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कोर्ट का पिछला आकलन, उसका नया आदेश, और सुप्रीम कोर्ट के नजरिये के बीच गौर करने वाली बात यह भी है कि किस तरह देश अब भी पिछड़े मूल्यों और संस्कारों के नाम पर अनुदारवादियों के कब्जे में है. समाज में आधुनिकता तो आयी है लेकिन वैचारिक दरिद्रता जस की तस है. इसीलिए तो कभी प्रेम तो कभी विवाह कभी छुआछूत तो कभी रस्मभभूत के नाम पर- नागरिकों का दमन किया जाता है. दमन करने वाली शक्तियां भी नागरिकों के बीच से पनपती हैं और तमाम आजाद ख्याल मूल्यों को अपनी कट्टरता से ढांप लेती हैं. आखिर अदालतें ही कब तक इन मामलों मे दखल देती रहेंगी और फैसले सुनाती रहेंगी. हम लोग खुद कब जागेंगे और अपनी रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ेंगे. कब हम वास्तव में स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, उत्पीड़ितों के अधिकारों की हिफाजत करने वाला देश बन पाएंगे.
मेनस्ट्रीम राजनीतिक दलों और सरकारों से प्रगतिशीलता की अपेक्षा तो अब रही नहीं. वे स्वार्थों और कई किस्म के लाभों से संचालित हैं. उन्हें इस बात की परवाह क्योंकर होगी कि देश में नागरिक कितने अनेकों तरीकों से बदहाल हैं. लेकिन युवाओं की यही चुनौती सबसे बुनियादी है कि वे इस राजनीति को बदलें. राजनीतिक स्वरूप में आमूलचूल बदलाव लाना होगा और सामाजिक स्तर पर बहुत छोटी छोटी, बहुत दूर दूर बिखरी हुई लड़ाइयों में शरीक होना होगा. प्रतिरोध की चेतना का विकास करना होगा. परंपरा का सम्मान करना चाहिए लेकिन उसकी आड़ में मासूम और मुक्त स्वप्नों का शिकार नहीं कर सकते. एक छोटा सा प्रगतिशील जागरूक दखल आने वाले समय का एक बड़ा लोकतांत्रिक मूल्य बन सकता है- ये कभी नहीं भूलना चाहिए. फिर वो चाहे कोर्ट हो या अनीस-श्रुति या शफी-हदिया जैसे साधारण नागरिक.