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लाइट की तरह ऑन-ऑफ हो सकता है दर्द

ओंकार सिंह जनौटी
३० सितम्बर २०१७

दर्द जिंदगी को तबाह कर सकता है. कभी कभार इसका कारण भी पता नहीं चलता. खास तौर पर यदि क्रॉनिक पेन हो. ज्यादातर रोगी राहत की उम्मीद में एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर का चक्कर काटते रह जाते हैं.

Teenager mit Kopfschmerzen Illustration
तस्वीर: Colourbox

किसी चोट की वजह से दर्द होना असल में शरीर द्वारा दी जाने वाली चेतावनी है. इसकी मदद से चोट की तरफ ध्यान जाता है और इंसान इलाज के लिए प्रेरित होता है. लेकिन क्रॉनिकल पेन ऐसा नहीं होता. ऐसा दर्द शरीर को बचाता नहीं बल्कि उसे नुकसान पहुंचाता है. यह शरीर के अलॉर्म सिस्टम का खराब हो चुका हिस्सा बन जाता है.

इस समय डॉक्टरों का जोर इस बात पर है कि मरीजों की तकलीफ किस तरह कम की जाए. हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी की रोहिणी कुनेर क्रॉनिकल पेन का पीछा कर रही हैं ताकि लोगों को उसकी तकलीफ से बचाया जा सके.. यह अब तक साफ नहीं है कि दर्द के स्थायी दर्द बनने के दौरान मस्तिष्क में क्या होता है. वह बताती हैं, "सवाल था कि किस वजह से दर्द में बदलाव आता है. क्या मस्तिष्क की कोई कोशिका बेवजह हरकत में आने लगती है या कोई नया दर्द उठता है और साइनेप्स बनते हैं."

मस्तिष्क में लापरवाह कोशिकाओं और नर्वस सिस्टम के बीच संपर्क से क्रॉनिकल पेन होता है, एक यह सिद्धांत है. इसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए रोहिणी अपनी टीम के साथ दर्द की शुरुआत तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं. रोहिणी कहती हैं, "हम उन तरीकों की खोज कर रहे हैं, जिनकी मदद से हम मस्तिष्क की खिड़की के भीतर झांक सकें. हम यह लाइव देखना चाहते हैं कि तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं के बीच आपसी संवाद कैसे बदलता है."

हमेशा क्यों दुखते हैं कुछ अंगतस्वीर: colourbox

एक मल्टीफोटोमाइक्रोस्कोप की मदद से वैज्ञानिक रियल टाइम में दर्द के दौरान होने वाली हलचल को देख सकते हैं. महीनों से रोहिणी और उनकी टीम क्रॉनिकल पेन से जूझ रहे एक चूहे का अध्ययन कर रही है. और शोध में पता चला कि कोशिकाओं की सरंचना बदलती है. वे नए साइनेप्स बनाती हैं. ये साइनेप्स सामान्य स्थिति में भी मस्तिष्क को दर्द के संकेत भेजते हैं. दर्द के संकेत पहले से ही हमारे तंत्रिका तंत्र की स्मृति में रहते हैं. इसे समझाते हुए रोहिणी कहती हैं, "क्रॉनिकल पेन के मरीजों में दर्द वाले और दर्द न देने वाले सिम्युलेशन के बीच फर्क करने की प्रक्रिया खो जाती है. त्वचा पर एक हल्का स्पर्श भी दर्द दे सकता है."

तो क्या ऐसी कोशिकाएं ही लंबे समय से खोजी जा रहे क्रॉनिकल पेन का इलाज बन सकती हैं? एक नयी मेथड, ओप्टोजेनेटिक की मदद से वैज्ञानिक पहली बार सीधे दर्द की प्रक्रिया में दाखिल हो सकते हैं. बीमार नर्व फाइबर में दर्द पैदा करने वाला प्रोटीन असल में प्रकाश के प्रति बेहद संवेदनशील होता है. ऐसे में इसे लाइट के जरिये ऑन या ऑफ किया जा सकता है. बिल्कुल लाइट के स्विच की तरह.

रोहिणी का लक्ष्य है कि दर्द के डिफेक्टिव ट्रैक्ट्स को बनने ही न दिया जाए. उन्होंने दर्द को दूर करने के लिए लक्षित दवाएं बनाये जाने की नींव रख दी है. लंबे समय से पेन थेरेपी या पेन किलर और उनके साइड इफेक्ट्स झेल रहे लोगों को अब राहत मिल सकती है.

(दिन भर सीट पर बैठे रहने के नुकसान)

 

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