लाइलाज होता टीबी
२३ मार्च २०१३विश्व स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार दवाइयों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता वाले टीबी के मामले दुनिया भर में सामने आ रहे हैं. इन्हें काबू करने के लिए डेढ़ अरब डॉलर की आवश्यकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और एड्स से लड़ने वाले ग्लोबल फंड के मिले जुले बयान में कहा गया है कि जल्द से जल्द अंतरराष्ट्रीय दाताओं को आगे आकर इस काम के लिए जरूरी धनराशि देने की आवश्यकता है ताकि इसकी समय पर जांच और रोकथाम हो सके. रूस और कुछ अन्य देशों में इन मामलों की तादाद 35 फीसदी तक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक मार्गरेट चैन ने कहा, "यह इस बात का संकेत है कि हम किस तरह कितने बड़े संकट के मुहाने पर खड़े हैं."
पहले भी थे ये मामले
दिल्ली में भारत के राष्ट्रीय टीबी एवं श्वास रोग संस्थान (एलआरएस) के निर्देशक डॉक्टर रोहित सरीन ने डॉयचे वेले को बताया कि टीबी का यह स्वरूप पहले भी मौजूद था लेकिन इसके बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं था और इसकी जांच पहले संभव नहीं थी. आधुनिक तकनीक के साथ हाल में इस तरह के ज्यादा मामले सामने आए है. इस समय भारत में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के लगभग एक लाख मरीज सालाना पाए जा रहे हैं. क्योंकि भारत की 70 फीसदी आबादी गांव में रहती है इसलिए यह कहना मुश्किल है कि अनुपात में ज्यादा मामले गांव के हैं या शहरों के.
अगर समय रहते इसे हराया नहीं गया तो इसके लाइलाज होने का खतरा भी हो सकता है. डॉक्टर सरीन मानते हैं कि अगर टीबी के लिए सही दवाइयां न मिलें तो भी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी हो सकता है. सही दवाई न मिलने से भी टीबी के कीटाणु दवाइयों से लड़ने की क्षमता हासिल कर लेते है.
आसान नहीं टीबी का इलाज
सामान्य टीबी से निबटना भी आसान नहीं है. टीबी मरीजों को छह महीने तक भारी दवाइयां लेते रहना होता है. कई बार लोग इतने लम्बे समय तक इलाज जारी नहीं रख पाते हैं. डॉक्टर सरीन ने बताया, "हम भारत के लिए तो यह नहीं कह सकते कि लोग इलाज के खर्च की वजह से इलाज बीच में ही रोक देते होंगे क्योंकि भारत में टीबी का इलाज मुफ्त है. इलाज ज्यादा लम्बा चलने की वजह से लोग इससे उकता जाते हैं और थोड़ा बेहतर होते ही दवाइयां खाना बंद कर देते हैं. जबकि उन्हें यह समझना चाहिए कि यह ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि इससे मरीज को ऐसी प्रतिरोधी क्षमता वाला टीबी हो सकता है जिस पर दवाइयां भी कारगर नहीं होतीं." कई बार नियमित खुराक से ज्यादा दवाइयां खाने से भी टीबी पर दवाओं का असर होना बंद हो जाता है. 2011 में 77 देशों में टीबी के ऐसे मामले पाए गए. यह संख्या लगातार बढ़ ही रही है.
एड्स के बाद सबसे बड़ा खतरा
टीबी को आम तौर पर बीते जमाने की बीमारी के तौर पर देखा जाता है. लेकिन पिछले एक दशक में बढ़ रहे ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के मामलों ने खतरे की घंटी बजा दी है. इस समय दुनिया भर में एड्स के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा मौतें टीबी से हो रही हैं. 2011 के आंकड़ों के अनुसार सत्तासी लाख लोग टीबी की चपेट में आए जिनमें से चौदह लाख की मौत हो गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि 2015 तक बीस लाख लोगों के ड्रग रेसिस्टेंट क्षमता वाले टीबी की चपेट में आने का खतरा है. इस समय ऐसे मरीजों की संख्या करीब साढ़े छह लाख आंकी जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक मार्गरेट चैन ने बताया कि हाल फिलहाल विश्व में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के 4 फीसदी नए मामले सामने आए है. यानि इसका संक्रमण एक से दूसरे व्यक्ति में विश्व भर में फैल रहा है.
भारत में युवा मामले ज्यादा
डॉक्टर सरीन ने बताया कि इस तरह के मामले बीस से चालीस वर्ग की आयु के लोगों के साथ ज्यादा हो रहे हैं. टीबी होने का प्रमुख कारण नशा, अत्यधिक शराब पीना, सिगरेट पीना या फिर किसी दूसरे मरीज से होने वाला संक्रमण है. अगर टीबी की जांच जल्दी हो जाती है तो शुरुआती तीन हफ्तों के इलाज के साथ ही इसके फैलने का खतरा कम हो जाता है. उन्होंने कहा कि हम अक्सर खांसी को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन मामूली खांसी भी कई बार टीबी की शुरुआत होती है. भारत में टीबी की जांच और इसका इलाज मुफ्त है. इसलिए इसमें किसी को भी देर नहीं करनी चाहिए.
फंडिंग की आस
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निम्न और मध्य वर्गीय आमदनी वाले देशों में टीबी से निबटने के लिए अभी भी डेढ़ अरब डॉलर की फंडिंग की आवश्यकता है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय दाताओं को आगे आना होगा. अगर यह फंडिंग समय रहते आ जाती है तो 2014 से 2016 तक साठ लाख लोगों को टीबी से मरने से बचाया जा सकता है. दवाई से भी काबू में न आने वाले टीबी से जूझ रहे देशों में रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका सबसे आगे हैं. लगभग दो तिहाई मामले सिर्फ इन्हीं इलाकों से हैं.
रिपोर्ट: समरा फातिमा
संपादन: महेश झा